बदलती तकनीकों से आसान हो गया है पैनक्रियाटिक रोगों का इलाज, अब न्यूनतम शल्यक्रिया एंडोस्कोपिक तकनीक होने लगी है ज्यादा कारगर और लोकप्रिय युवा कामकाजी प्रोफेशनल्स में अल्कोहल सेवन, धूम्रपान के बढ़ते चलन और गॉल स्टोन के स्टोन के कारण पैनक्रियाटिक रोगों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. पैनक्रियाज से जुड़ी बीमारियों में एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस, क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस और पैनक्रियाटिक कैंसर के मामले ज्यादा हैं. लेकिन आधुनिक एंडोस्कोपिक पैनक्रियाटिक प्रक्रियाओं की उपलब्धता और इस बीमारी की बेहतर समझ और अनुभव रखने वाली विशेष पैनक्रियाटिक केयर टीमों की बदौलत इससे जुड़े गंभीर रोगों पर भी अब आसानी से काबू पाया जा सकता है.

आधुनिक पैनक्रियाटिक उपचार न्यूनतम शल्यक्रिया तकनीक के सिद्धांत पर आधारित है और इसे मरीजों के लिए सुरक्षित और स्वीकार्य इलाज माना जाता है.

पेट के पीछे ऊपरी हिस्से में मौजूद पैनक्रियाज पाचन एंजाइम और हार्मोन्स (ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने वाले इंसुलिन सहित) को संचित रखता है. पैनक्रियाज का मुख्य कार्य शक्तिशाली पाचन एंजाइम को छोटी आंत में संचित रखते हुए पाचन में सहयोग करना होता है. लेकिन स्रावित होने से पहले ही जब पाचन एंजाइम सक्रिय हो जाते हैं तो ये पैनक्रियाज को नुकसान पहुंचाने लगते हैं जिनसे पैनक्रियाज में सूजन यानी पैनक्रियाटाइटिस की स्थिति बन जाती है.

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एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस इनमें सबसे आम बीमारी है जो गॉलस्टोन, प्रतिदिन 50 ग्राम से ज्यादा अल्कोहल सेवन, खून में अधिक वसा और कैल्सियम होने, कुछ दवाइयों के सेवन, पेट के ऊपरी हिस्से में चोट, वायरल संक्रमण और पैनक्रियाटिक ट्यूमर के कारण होती है. गॉल ब्लाडर में पथरी पित्त वाहिनी तक पहुंच सकती है और इससे पैनक्रियाज नली में रुकावट आ सकती है जिस कारण एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस होता है. बुजुर्गोंं में ट्यूमर ही इसका बड़ा कारण है. इसमें पेट के ऊपरी हिस्से से दर्द बढ़ते हुए पीठ के ऊपरी हिस्से तक पहुंच जाता है. कुछ गंभीर मरीजों को सांस लेने में तकलीफ और पेशाब करने में भी दिक्कत आने लगती है.

इस बीमारी का पता लगने पर ज्यादातर मरीजों को इलाज के लिए अस्पताल में रहना पड़ता है. मामूली पैनक्रियाटाइटिस आम तौर पर एनलजेसिक और इंट्रावेनस दवाइयों से ही ठीक हो जाती है. लेकिन थोड़ा गंभीर और एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस जानलेवा भी बन सकती है और इसमें मरीजों को लगातार निगरानी और सपोर्टिव केयर में रखना पड़ता है. ऐसी स्थिति में मरीज को नाक के जरिये ट्यूब डालकर भोजन पहुंचाया जाता है. पैनक्रियाज के आसपास की नलियों से संक्रमित द्रव को  कई बार एंडोस्कोपिक तरीके से या ड्रेन ट्यूब के जरिये बाहर निकाला जाता है. उचित इलाज और विशेषज्ञों की देखरेख में एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस से पीड़ित ज्यादातर मरीज जल्दी स्वस्थ हो जाते हैं. इस बीमारी की पुनरावृत्ति से बचने के लिए अल्कोहल का सेवन छोड़ देना चाहिए और गॉल ब्लाडर सर्जरी के जरिये पथरी निकलवा लेनी चाहिए. लिपिड या कैल्सियम लेवल को दवाइयों से नियंत्रित किया जा सकता है.

इसके अलावा क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस की डायनोसिस और इलाज में एंडोस्कोपिक स्कारलेस प्रक्रियाओं की अहम भूमिका होती है. इसमें मरीज को लगातार दर्द या पेट के ऊपरी हिस्से में बार—बार दर्द होता है. लंबे समय तक बीमार रहने पर भोजन पचाने के लिए जरूरी पैनक्रियाटिक एंजाइम की कमी और इंसुलिन के अभाव में डायबिटीज होने के कारण डायरिया की शिकायत हो जाती है. पैनक्रियाज और इसकी नली की जांच के लिए इसमें एमआरसीपी और एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड जैसे टेस्ट कराने पड़ते हैं.

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पैनक्रियाटिक ट्यूमर भी धूम्रपान, डायबिटीज मेलिटस, क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस और मोटापे के कारण होता है. इसके लक्षणों में पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, पीलिया, भूख की कमी और वजन कम होना है. ऐसे मरीजों का सबसे पहले सीटी स्कैन किया जाता है. इसके बाद जरूरत पड़ने पर ईयूएस और टिश्यू सैंपलिंग कराई जाती है. इसमें लगभग 20 फीसदी कैंसर का पता लगते ही सर्जरी कराई जाती है, बाकी मरीजों को कीमोथेरापी दी जाती है. कीमोथेरापी के बाद बहुत कम  जख्म रह जाता है और फिर मरीज की सर्जरी की जाती है. कीमोथेरापी से पहले मरीज के पीलिया के इलाज के लिए कई बार ईआरसीपी और स्टेंटिंग भी कराई जाती है. ईआरसीपी के दौरान पित्त वाहिनी में स्टेंट डाला जाता है ताकि ट्यूमर के कारण आए अवरोध को दूर किया जा सके. पैनक्रियाटिक कैंसर से पीड़ित कुछ मरीजों को तेज दर्द भी हो सकता है, ऐसे में उन्हें दर्द से निजात दिलाने के लिए ईयूएस गाइडेड सीपीएन (सेलियक प्लेक्सस न्यूरोलिसिस) कराया जाता है.

डॉ. विकास सिंगला, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के निदेशक और प्रमुख, मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित.

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