बच्चे को जन्म देना किसी भी मां के लिए जीवन की सब से बड़ी अभिलाषा और अनुभव होता है. मगर बदलते वक्त में माताएं अब बच्चे को प्रकृति की मरजी के अनुसार जन्म देने के बजाय सीजेरियन तकनीक को अहमियत ज्यादा दे रही हैं. जन्म देने की पीड़ा को कम करने और मां की जान को सुरक्षित रखने के लिए भी यह औपरेशन किया जाता है. पहले यह काम बड़े शहरों में ज्यादा हो रहा था, लेकिन अब यह प्रवृत्ति कसबों और गांवों में भी बढ़ती जा रही है. यह विधि कभी सिर्फ जच्चा और बच्चा को बचाने के लिए प्रयोग होती थी, पर अब महिलाओं द्वारा एक आम सुविधा के तौर पर भी अपनाई जा रही है. कामकाजी महिलाएं इसे ज्यादा अपना रही हैं.

चंडीगढ़ के एक नर्सिंगहोम की चिकित्सक का कहना है कि आजकल हर काम में जल्दबाजी की जा रही है, मगर सीजेरियन के लिए न तो प्रसूतिका को जल्दबाजी करनी चाहिए और न ही प्रसव करवाने वाली डाक्टर को. होना यह चाहिए कि चिकित्सक प्रसूतिका और उस के घर वालों को सामान्य प्रसव के लिए प्रेरित करे. सीजेरियन तभी किया जाए जब किसी अनहोनी की आशंका हो.

फैशन बना सीजेरियन

हालत यह है कि सीजेरियन द्वारा जन्म दिलाना प्रसूतिका और चिकित्सक दोनों के लिए फैशन बनता जा रहा है. सीजेरियन द्वारा सामान्य प्रसव से कहीं ज्यादा मोटी रकम बटोरने के चक्कर में प्राइवेट नर्सिंगहोम प्रसूतिका को सीजेरियन की ही सलाह देते हैं. दरअसल, प्रसूतिका को वे जन्म देने वाली माता नहीं, बल्कि ग्राहक के रूप में देखते हैं. सीजेरियन से जल्दी पीड़ा से मुक्त करने का लालच इस तरह की सौदेबाजी को आसान कर देता है. प्रसूतिका ऐसी सलाह देने वाले को अपना सच्चा हितैषी मानती है.

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