कर्नाटक की रहने वाली 35 वर्षीया एक महिला, जो दोनों पैरों से पोलियो की शिकार थी, उस ने सरकारी सेवा में कार्यरत एक पुरुष से शादी की. वह मां बनना चाहती थी, लेकिन कोई उपाय सूझ नहीं रहा था. ऐसे में किसी ने उसे पद्मश्री डा. कामिनी राव के बारे में बताया, जो फर्टिलिटी ऐक्सपर्ट हैं. वहां जाने पर उसे आईवीएफ प्रौसेस से बच्चा मिला. लेकिन डा. कामिनी ने उस के अंडे को ले कर उस के पति के स्पर्म के साथ उसे डैवलप किया. उस की जांच की और उसी की बच्चेदानी में उसे रोपित कर दिया. 9 महीने के बाद उसे स्वस्थ बच्चा मिला. उस महिला की खुशी का ठिकाना नहीं था.
बैंगलुरु के मिलन फर्टिलिटी की फाउंडर डाइरैक्टर, डा. कामिनी राव भारत की पहली ऐसी महिला डाक्टर हैं, जिन्होंने ‘ऐसिस्टैड रिप्रौडक्शन ट्रीटमैंट’ के क्षेत्र में क्रांति ला दी है. इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें साल 2014 में पद्मश्री की उपाधि से भी नवाजा गया है. उन्होंने ही दक्षिण भारत में पहले ‘सीमन बैंक’ की स्थापना की थी.
27 साल से इस क्षेत्र में काम कर रहीं
डा. कामिनी के अनुसार, कोई भी महिला बांझ नहीं होती. समाज में यह एक टैबू है, जिस से
कई महिलाओं को गुजरना पड़ता है. कई महिलाओं को पति या परिवार वाले बांझ समझ कर घर से निकाल देते हैं. उस महिला को अगर सही इलाज मिले तो उसे बच्चा हो सकता है.
इस क्षेत्र में आने की वजह पूछे जाने पर वे बताती हैं कि विदेश में कई महिलाएं आ कर कहती थीं कि मुझे भारत लौट जाना चाहिए, क्योंकि वहां महिलाओं को बच्चा न होने पर प्रताड़ना सहनी पड़ती है. बस यही वह पल था जब मैं ने विदेश छोड़ कर भारत आने का फैसला कर लिया. भारत आ कर मैं ने ‘फ्रीज द एग’ नामक एक मुहिम चलाई है, जिस के अंतर्गत महिलाएं कम उम्र में भी एग्स फ्रीज कर अपनी आजादी का फायदा उठा सकती हैं और जब चाहे बच्चा पा सकती हैं. दरअसल, ऐसा कर मैं हर घर में बच्चे की किलकारियां सुनना चाहती हूं.