गीता की शादी को जब 3 साल हो गए और फिर भी वह मां नहीं बन पाई तो सास, ननद, भाभी से ले कर पासपड़ोस की महिलाओं तक के बीच कानाफूसी होने लगी. तरहतरह के प्रश्न पूछे जाने लगे तो गीता का चिंतित होना स्वाभाविक था. हालांकि उस के पति 1-2 साल और भी पिता बनने के मूड में नहीं थे, लेकिन पत्नी का दबाव पड़ने के बाद दोनों इन्फर्टिलिटी सेंटर गए. चिकित्सक ने दोनों का परीक्षण करने के बाद कुछ जांचें कराने को कहा. जांच रिपोर्ट आई तो पता चला कि उस के पति सुभाष की वीर्य रिपोर्ट में गड़बड़ी है. वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या नगण्य है. शुक्राणुओं का निर्माण हो ही नहीं रहा है. मतलब एजुस्पर्मिया की शिकायत है. चिकित्सक ने बताया कि इसी कारण वे पिता नहीं बन पा रहे हैं. पत्नी में किसी भी तरह की कमी नहीं है, न गर्भाशय में, न ट्यूब में और न ही ओवरी में. मासिक भी नियमित है और अंडा भी समय पर बन रहा है. उस के बाद चिकित्सक ने सुभाष को कुछ दवा लिख कर दी और कहा कि इसे ले कर देखिए, हो सकता है इस से कुछ फायदा हो. करीब डेढ़ साल तक इलाज चलता रहा, लेकिन फिर भी जब कोई फायदा नहीं हुआ तो अंत में गीता को कृत्रिम गर्भाधान कराने की सलाह दी गई.

क्या है कृत्रिम गर्भाधान

कृत्रिम गर्भाधान क्या होता है, यह कम लोगों को ही पता है. पुरुष के वीर्य में शुक्राणुओं की कमी के कारण होने वाले बां झपन को दूर करने की यह आधुनिक विधि है, जिस के अंतर्गत गर्भधारण के लिए महिलाओं के गर्भाशय में कृत्रिम विधि से बिना सहवास के शुक्राणुओं को प्रवेश कराया जाता है ताकि वे डिंब से फर्टिलाइज कर सकें और भ्रूण का निर्माण हो सके. यदि श्ुक्राणु को गर्भाशय के अग्रभाग यानी सर्विक्स में स्थापित कराया जाता है तो उसे इंट्रासर्वाइकल और यूटरस में कराया जाता है तो इंट्रायूट्राइन इन्सेमिनेशन कहा जाता है. यह विधि बां झपन दूर करने के लिए एसिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलोजी के अंतर्गत आती है. इस में पति के या फिर स्पर्म बैंक से किसी अनजान डोनर के शुक्राणु लिए जाते हैं.

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