नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी कंसलटेंट डॉ पारुल कटियार द्वारा लिखित.
इंफर्टिलिटी काफी आम समस्या है. इस समस्या से पूरी दुनिया के लगभग 15% कपल प्रभावित है. भारत जैसे विकासशील देश में यह समस्या और भी ज्यादा है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत में चार कपल्स में से एक कपल बच्चा पैदा करने में परेशानी का सामना करते हैं. बच्चे न पैदा कर पाना इमोशनल और सामजिक कलंक माना जाता है. ऐसे कपल अपनी इस समस्या के बारे में खुलकर चर्चा करने से हिचकते हैं जिसकी वजह से उनकी इस बीमारी के इलाज में बाधा आती है. पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इनफर्टिलिटी की बीमारी को दूर करने के लिए इसका ट्रीटमेंट खोजने का अथक प्रयास करते रहे हैं. इस मामलें सबसे बड़ी सफलता 25 जुलाई, 1978 को मिली जब इंग्लैंड में लुईस ब्राउन का जन्म हुआ. ब्राउन दुनिया में सक्सेसफुल आईवीएफ ट्रीटमेंट के बाद पैदा होने वाली पहली बच्ची है. यह सब डॉ पैट्रिक स्टेप्टो, रॉबर्ट एडवर्ड्स और उनकी टीम की सालों की कोशिश के बाद संभव हो पाया.
लुईस ब्राउन का जन्म इंफर्टिलटी ट्रीटमेंट के फील्ड में सबसे बड़े लैंडमार्क में से एक था. इन 42 सालों में 8 मिलियन से अधिक बच्चों का जन्म विभिन्न "असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्निक" के माध्यम से हुआ है. आईवीएफ के साथ-साथ कई अन्य टेक्निक तब से विकसित हुई हैं. हर साल 25 जुलाई को रिप्रोडक्टिव मेडिसिन में हुए महान अविष्कार को याद करने के लिए इसे 'वर्ल्ड आईवीऍफ़ डे' के रूप में हर साल मनाया जाता है.
इन्फर्टिलिटी होने के आम कारण क्या हैं?
महिलाओं को हमेशा से इन्फर्टिलिटी का वाहक माना जाता रहा है, हालांकि यह सिर्फ एक मिथक है. आज के समय में पुरुष भी उतना इन्फर्टिलिटी के लिए जिम्मेदार होता है जितना की महिला. इन्फर्टिलिटी के सामान्य कारण महिलाओं में फैलोपियन ट्यूब ब्लॉकेज, ओवुलेटरी डिसफंक्शन, एंडोमेट्रियोसिस आदि जैसे मेडिकल कारण शामिल होते हैं और पुरुषों में इन्फर्टिलिटी होने का कारण खराब शुक्राणु की क्वॉन्टिटी या क्वॉलिटी होती है. इन्फर्टिलिटी का दूसरा महत्वपूर्ण कारण लाइफस्टाइल से जुड़ी समस्याएं हैं जिसमें ज्यादा उम्र में शादी करना, डिलीवरी को पोस्टपोन करना, स्ट्रेस, अनहेल्दी फ़ूड, शराब और तंबाकू का सेवन शामिल होता हैं.
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