हमारे समाज के लोग भी बड़े अजीब हैं. उन की अपने से ज्यादा दूसरों के मामले में ताकनेझांकने में रुचि होती है. एक उदाहरण देखिए. जैसे ही किसी लड़की के विवाह की उम्र होने लगती है, लोग उस से यह पूछपूछ कर उसे परेशान कर देते हैं कि शादी कब कर रही हो? कब सैटल हो रही हो? अगर किसी तरह इन सवालों से पीछा छुड़ाने के लिए वह शादी कर ले, तो वे यह नया राग अलापना शुरू कर देते हैं कि खुशखबरी कब सुना रही हो? अरे भई, उसे अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का तो मौका दीजिए. अपनी जिंदगी में लोगों के पास अपने लिए सोचने लायक क्या कुछ भी नहीं है?
विवाह के बाद अगर लोगों को यह पता चल जाए कि वह मां बनने वाली है, तो सच मानिए वे अपनी नसीहतों का पुलिंदा देदे कर उसे पूरी तरह पका देंगे और अच्छेभले इनसान को बीमार बना देंगे.
गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं
दरअसल, हम बात कर रहे हैं गर्भावस्था के दौरान मिलने वाली ऐक्सपर्ट ऐडवाइजेज की. अरे भई, गर्भावस्था कोई बीमारी थोड़े न है, जो लोग बिना मांगे अपनी ऐक्सपर्ट हिदायतें दे कर अच्छीभली महिला को जिस के लिए मातृत्व एक सुखद अनुभव होना चाहिए, उसे बीमार बना दें. आम लोगों के साथ तो ऐसा ही होता है. लेकिन जब ऐसा ही कुछ फिल्म अभिनेत्री करीना कपूर के साथ हुआ और बारबार उन की प्रैगनैंसी पर मीडिया के अटैंशन के कारण जब उन की बरदाश्त करने की सीमा खत्म हो गई तो उन्होंने जम कर अपनी भड़ास निकाली और गुजारिश की कि मीडिया उन की प्रैगनैंसी को नैशनल कैजुअलिटी इशू न बनाए.
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