कई वजहों से किसी महिला को गर्भपात कराना पड़ जाता है. कई बार अनचाहे गर्भधारण के कारण भी ऐसा कदम उठाना पड़ता है, जबकि कई बार भ्रूण की कुदरती खामियों या गर्भधारण से जुड़ी घातक स्वास्थ्य स्थितियों के कारण दंपती गर्भ गिराने का फैसला लेते हैं. वजह चाहे जो भी हो, गर्भपात कराने से महिला पर मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से असर पड़ता है. गर्भपात किसी भी लिहाज से सुरक्षित नहीं है. कुछ शोध बताते हैं कि कुछ महिलाएं गर्भपात कराने के बाद राहत महसूस करती हैं, जबकि कुछ अनचाहे गर्भपात या मिसकैरिज के कारण अवसादग्रस्त हो जाती हैं. महिलाओं में राहत और अवसाद की वजह भी अलगअलग होती है.
गर्भपात कराने के बाद जितने शारीरिक साइड इफैक्ट्स होते हैं, उतने ही मानसिक साइड इफैक्ट्स भी होते हैं. गर्भपात कराने के बाद शारीरिक इफैक्ट्स से कहीं ज्यादा भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक असर देखा गया है और इस में मामूली खेद से ले कर अवसाद जैसी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. गर्भपात कराने के बाद किसी ऐसे अनुभवी प्रोफैशनल से सभी खतरों के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा कर लेना बहुत जरूरी है जो आप के सभी सवालों और उन से जुड़ी आशंकाओं का जवाब दे सके.
नकारात्मक, भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक असर से जुड़ा एक सब से महत्त्वपूर्ण फैक्टर यह है कि आप को यही लगता है कि आप के अंदर अभी भी बच्चा पल रहा है. कुछ महिलाओं में नकारात्मक भावनात्मक परिणाम विकसित होने की संभावना कम रहती है, क्योंकि गर्भधारण को ले कर उन का नजरिया बिलकुल अलग रहता है और वे समझती हैं कि भ्रूण एक अविकसित जीव है. हालांकि कुछ महिलाएं गर्भधारण के प्रति कुछ ज्यादा ही भावनात्मक लगाव पाल लेती हैं और अपने अंदर पल रहे बच्चे को जीव मान लेती हैं. ऐसी महिलाओं पर गर्भपात या मिसकैरिज के बाद कुछ ज्यादा ही नकारात्मक असर पड़ता है.