विश्व में प्रसव के बाद लगभग 13% महिलाओं को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें परेशान कर देता है. प्रसव के तुरंत बाद होने वाले डिप्रैशन को पोस्टपार्टम डिप्रैशन कहा जाता है. भारत और अन्य विकासशील देशों में यह संख्या 20% तक है.  2020 में सीडीसी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार यह सामने आया है कि 8 में से 1 महिला पोस्टपार्टम डिप्रैशन की शिकार होती है. विशेष रूप से टियर 2 और टियर 3 शहरों में  पोस्टपार्टम डिप्रैशन होने के चांसेज ज्यादा होते है.

इस संबंध में बैंगलुरु के मणिपाल हौस्पिटल की कंसलटैंट, ओब्स्टेट्रिक्स व गायनेकोलौजिस्ट डाक्टर हेमनंदीनी जयरामन बताती हैं कि महिलाओं में मानसिक समस्याएं होने पर वे अंदर से टूट जाती हैं. इन्हें परिवार के लोग भी समझ नहीं पाते हैं, जिस से वे खुद को बहुत ही असहाय महसूस करती हैं.

पोस्टपार्टम का मतलब बच्चे के जन्म के तुरंत बाद का समय होता है. प्रसव के तुरंत बाद महिलाओं में शारीरिक, मानसिक व व्यवहार में जो बदलाव आते हैं, उन्हें पोस्टपार्टम कहा जाता है. पोस्टपार्टम की अवस्था में पहुंचने से पहले 3 चरण होते हैं जैसे इंट्रापार्टम यानी प्रसव से पहले का समय और एंट्रेपार्टम यानी प्रसव के दौरान का समय तथा पोस्टपार्टम बच्चे के जन्म के बाद का समय होता है.

भले ही बच्चे के जन्म के बाद एक अनोखी खुशी होती है, लेकिन इस सब के बावजूद कई महिलाओं को पोस्टपार्टम का सामना करना पड़ता है. इस समस्या का इससे कोई संबंध नहीं होता है कि प्रसव नौर्मल डिलिवरी से हुआ है या फिर औपरेशन से. पोस्टपार्टम की समस्या महिलाओं में प्रसव के दौरान शरीर में होने वाले सामाजिक, मानसिक व हारमोनल बदलावों की वजह से होती है.

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