एक बच्चे को प्रीटर्म तब माना जाता है जब वह 37 सप्ताह की गर्भावस्था से पहले बच्चे जन्म ले लेता है इस समय के दौरान बच्चों के अंग पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं. इससे लॉन्ग टर्म इन्टलेक्चुयल (बौद्धिक) और डेवलपमेंट डिसएबिलिटी (विकासात्मक विकलांगता) हो सकती है और उनके फेफड़े, ब्रेन, आंखों और अन्य अंग भी किसी न किसी समस्या से ग्रसित हो सकते हैं.
किसी नवजात बच्चे में समस्या होना इस बात पर निर्भर करता है कि वे कितनी जल्दी पैदा हुए हैं और इन बच्चों को लाइफ सपोर्ट देने के लिए उन्हें नवजात शिशु गहन केयर यूनिट (एनआईसीयू) की जरुरत पड़ सकती है जहां पर मा के गर्भ के समान वातावरण बच्चे लिए बनाने की कोशिश की जाती हैं.
एनआईसीयू में प्रीटरम जन्म संबंधी कॉम्प्लीकेशंस से प्रभावी रूप से निपटा जा सकता है.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार 2017 से 2030 के बीच जीवन के पहले 28 दिनों के भीतर 30 मिलियन नवजात शिशुओं की मृत्यु हो जाएगी क्योंकि उनका जन्म नवजात अवधि (पैदा होने के जीवन के पहले 28 दिन) हो जायेगा. बचपन के दौरान अन्य अवधि के किसी भी दिन की तुलना में इस समय में मृत्यु दर का सबसे ज्यादा खतरा होता है. शिशु मृत्यु दर (IMR) में गिरावट के बावजूद नवजात मृत्यु दर ज्यादातर स्थिर ही रही है. इसलिए यह जरूरी है कि पहले महीने में नवजात बच्चों को ज्यादा देखभाल प्रदान की जाए ताकि नवजात बच्चों की मृत्यु एस्फीक्सिया, इंफेक्शन और अपरिपक्व जन्मों (प्रीटर्म बर्थ) के कारण न हो सके. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत नवजात बच्चों की मृत्यु दर में तेजी से कमी लाने के लिए कई पहल शुरू की गई हैं. नवीनतम मशीनों के साथ एडवांस निओनेटल केयर यूनिट की शुरूआत मैटरनिटी हॉस्पिटल में हाई एन्ड वेंटीलेटर और CPAP मशीन सहित कई कदम इस दिशा में उठायें गए हैं.
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