ऑटिज़्म को विकास सम्बन्धी बीमारी के रूप मे जाना जाता है. इसे ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) कहा जाता है. डॉ रोहित अरोड़ा , निओनैटॉलॉजी और पेडियाट्रिक्स हेड ,मिरेकल्स मेडीक्लीनिक और अपोलो क्रेडल हॉस्पिटल का कहना है कि, "यह डिसऑर्डर (विकार)  बच्चे के व्यवहार और बातचीत करने के तरीके पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. बच्चों में होने वाली  यह बीमारी तब नज़र आती है जब बच्चे की सोशल स्किल्स, एक ही व्यवहार को बार-बार दोहराना, बोलने तथा बिना बोलकर कम्युनिकेट करने में परेशानी महसूस होती है तो इसे ऑटिज़्म  का लक्षण माना जाता है.

एएसडी से साधारण सी दिक्कत तो हो ही सकती है साथ ही साथ इससे जीवन पर्यंत की विनाशकारी विकलांगता भी हो सकती है. इस तरह की विकलांगता होने पर फिर हॉस्पिटल केयर की आवश्यकता हो सकती है. ऑटिज़्म के संकेत आमतौर पर 2 या 3 वर्ष की आयु तक दिखाई देते हैं. हालांकि कुछ विकास संबंधी देरी होने पर यह समय से पहले भी दिखाई दे सकते है. 18 महीने का होने पर भी बच्चे को ऑटिज़्म से डायग्नोज्ड किया जा सकता है. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर में ऐसी कंडीशन शामिल होती हैं जिन्हें पहले इससे अलग माना जाता था. ऑटिज्म, एस्पर्जर्स सिंड्रोम बचपन का एक विघटनकारी डिसऑर्डर है. एस्पर्जर सिंड्रोम को ऑटिज्म का एक उग्र रूप माना जाता है."

ऑटिज्म के खतरे को बढ़ाने वाले फैक्टर

ऑटिज्म एक से ज्यादा कारणों की वजह से हो सकता है.

आनुवांशिक (जेनेटिक)

जेनेटिक डिसऑर्डर जैसे कि रिट्ट सिंड्रोम या फ्रेगाइल एक्स सिंड्रोम का ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से संबंध होने की संभावना है. म्यूटेशन के नाम से जाने जाने वाले आनुवंशिक परिवर्तन से ऑटिज़्म का खतरा बढ़ सकता है. कुछ आनुवंशिक परिवर्तन बच्चे को उसके माँ-बाप से मिल सकते हैं, जबकि अन्य परिवर्तन अनायास हो सकते हैं. अन्य जीन बच्चे के मस्तिष्क के विकास या मस्तिष्क कोशिकाओं के संचार के तरीके को प्रभावित कर सकते हैं, या वे लक्षणों की गंभीरता को बढ़ा सकते हैं.

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