आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास अपनों के लिए वक्त कहां हैं? लोग पैसे कमाने की धुन में इस कदर मशगुल हैं कि अपनी हर खुशी को नजरअंदाज कर जाते हैं. फिर एक समय ऐसा आता है जब काम का बढ़ता दबाव उनकी दिनचर्या पर असर डालने लगता है. वह उदास और दुखी रहने लगते हैं और फिर धीरे धीरे उनकी यह उदासी उनकी दिनचर्या का एक अहम हिस्सा बन जाता है.
व्यस्त जीवनशैली और काम के चलते उदास होना जाहिर सी बात है. लेकिन हाल ही में आए एक सर्वे से साफ हुआ है कि जो लोग अधिक दुखी और उदास रहते हैं उनमें प्रतिशोध की भावना अधिक पनपती है और यह भावना उनके सेहत पर काफी असर डालती है. यहा नहीं उनकी उदासी और खामोशी कई बड़ी बिमारियों का कारण भी बन सकती है.
रिसर्च में बताया गया है कि अब तक ये माना जाता था कि जो लोग दूसरों को चोट पहुंचाकर और उन्हें दुखी देखकर खुश होते हैं, उनमें प्रतिशोध की भावना उनसे ज्यादा होती है. जबकि ये सरासर गलत है. शोधकर्ताओं का कहना है कि परपीड़न प्रभावी व्यक्तित्व की विशेषता है, जिससे यह जाहिर होता है कि दुखी और उदास लोगों में दूसरों की अपेक्षा प्रतिशोध की भावना ज्यादा होती है.
दुखी और उदास रहने वाला व्यक्ति मानसिक तौर पर बिमार रहने लगता है, उनमें अपभ्रंश जैसी बिमारियो की शिकायत देखने को मिलती है. कई बार वह बिमार न होते हुए भी खुद को बिमार समझ लेते हैं ऐसे में वह तरह तरह की दवाईयां खाना शुरू कर देते हैं, जो कि आगे चलकर उनमें पेट से संबंधित बिमारियों को भी जन्म देते हैं.
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