था यराइड ग्रंथि शरीर की एक छोटी सी, लेकिन महत्त्वपूर्ण ग्रंथि है. इस के द्वारा स्रावित हारमोन शरीर की कई प्रमुख गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जब इस ग्रंथि द्वारा स्रावित हारमोन असंतुलित हो जाते हैं तो उस का प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है. जब ऐसा होता है तो शरीर कुछ संकेत देता है, लेकिन अकसर लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं क्योंकि इस तरह के संकेत कई और स्वास्थ्य समस्याओं में भी दिखाई देते हैं.

खानपान की गलत आदतों और खराब जीवनशैली के कारण युवा महिलाएं भी बड़ी तेजी से थायराइड से संबंधित गड़बडि़यों की शिकार हो रही हैं. थायराइड ग्रंथि से संबंधित समस्याएं महिलाओं और पुरुषों दोनों को हो सकती हैं. लेकिन इस के 60-70% मामले महिलाओं में ही सामने आते हैं. मीनोपौज की स्थिति में पहुंची महिलाओं में थायराइड की गड़बड़ी से ग्रस्त होने का खतरा युवा महिलाओं की तुलना में दोगुना हो जाता है.

थायराइड ग्रंथि

थायराइड एक तितली के आकार की छोटी सी ग्लैंड है जो गरदन के निचले हिस्से में पाई जाती है. इस का वजन तो औसतन 30 ग्राम होता है, लेकिन इस के कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. थायराइड ग्रंथि को मस्तिष्क में स्थित पिट्युटरी ग्रंथि नियंत्रित करती है. यह थौरौक्सिन (टी3), ट्राईडोथौयरोनिन (टी4) और टीएसएच हारमोंस का स्राव करती है.

ये हारमोन शरीर की मैटाबोलिक क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं. इसलिए इसे ‘मैटाबौलिज्म मैनेजर’ की संज्ञा दी जाती है. मैटाबौलिज्म की दर को स्थिर बनाए रखने के लिए इन हारमोंस का उचित मात्रा में स्रावित होना आवश्यक है. शरीर में इन हारमोंस के स्तर के कारण मैटाबौलिज्म की ‘दर तेज’ या ‘धीमी’ हो सकती है.

थायराइड ग्रंथि से संबंधित समस्याएं

थायराइड ग्रंथि से स्रावित हारमोंस में असंतुलन आने पर 2 तरह की समस्याएं हो जाती हैं:

हाइपरथायरोइडिज्म

हाइपरथायरोइडिज्म यानी थायराइड ग्रंथि की कार्यप्रणाली कम हो जाना. इस में थायराइड ग्रंथि इतनी सक्रिय नहीं रहती कि वह शरीर की आवश्यकता जितने हारमोंस स्रावित कर पाए. इन हारमोंस के कम स्राव से शरीर की मैटाबौलिक क्रियाएं धीमी पड़ जाती हैं.

लक्षण

– वजन बढ़ना.

– बाल झड़ना.

– नींद ज्यादा, दिनभर सुस्ती महसूस करना.

– ठंड ज्यादा लगना.

– शरीर फूल जाना.

– त्वचा रूखी हो जाना.

– पैरों में सूजन आना.

– मासिकधर्म के दौरान हैवी ब्लीडिंग होना

– कब्ज होना.

आप में ये सब लक्षण दिखें जरूरी नहीं है. इन में से 2-3 या फिर सभी लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं.

उपचार

हाइपरथायरोइडिज्म का उपचार केवल दवाइयों से ही संभव है. इस के लिए रोज कृत्रिम थायराइड हारमोन लेना होता है. मुंह से ली जाने वाली यह दवा शरीर में हारमोंस के स्तर को पर्याप्त बनाए रखती है और लक्षणों में भी सुधार आने लगता है.

उपचार न कराने से होने वाली जटिलताएं

अगर हाइपरथायरोइडिज्म का उपचार न कराया जाए तो कोलैस्ट्रौल का स्तर और रक्तदाब बढ़ जाता है, जिस से कार्डियोवैस्क्युलर डिज होने का खतरा बढ़ जाता है. गर्भधारण करने में परेशानी आती है. मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है और अवसाद की चपेट में आने का खतरा बढ़ जाता है.

हाइपरथायरोइडिज्म

हाइपर थायराइडिज्म में थायराइड ग्रंथि बहुत सक्रिय हो जाती है जिस से हारमोंस का स्राव सामान्य से अधिक मात्रा में होने लगता है. ये हारमोंस रक्त में घुल जाते हैं और कोशिकाओं के मैटाबौलिज्म को स्टिम्युलेट करते हैं.

लक्षण

– भूख अधिक लगने के बावजूद वजन कम होना.

– गरमी अधिक लगना और पसीना आना.

– दिल की धड़कनें तेज हो जाना.

– घबराहट होना.

– नींद आने में परेशानी होना.

– लूज मोशन होना.

– गर्भधारण करने में परेशानी होना.

– अगर गर्भधारण कर लिया है तो गर्भपात का खतरा होना.

– आंखों का उभर आना.

उपचार

उपचार इस पर निर्भर करता है कि समस्या कितनी गंभीर है, मरीज का स्वास्थ्य कैसा है और उसे कोई दूसरी बीमारी तो नहीं है. हाइपरथायरोइडिज्म केलिए 3 तरह के उपचार उपलब्ध हैं. रेडियोएक्टिव आयोडीन थेरैपी, ऐंटीथायराइड मैडिकेशंस और सर्जरी.

रेडियोऐक्टिव आयोडीन थेरैपी

रेडियोऐक्टिव आयोडीन थेरैपी में ओवरऐक्टिव थायराइड की कार्यप्रणाली को धीमा करने के लिए रेडियोऐक्टिव आयोडीन दी जाती है. रेडियोऐक्टिव आयोडीन थायराइड ग्रंथि द्वारा अवशोषित हो जाती है, जिस से थायराइड ग्रंथि थोड़ी सिकुड़ जाती है और हारमोंस का स्राव कम मात्रा में करने लगती है.

ऐंटीथायराइड मैडिकेशंस

ये दवाइयां थायराइड ग्रंथि को अधिक मात्रा में हारमोंस के स्राव से रोकती हैं. इस से धीरेधीरे लक्षणों में सुधार आने लगता है.

सर्जरी

सर्जरी के द्वारा थायराइड ग्रंथि को

निकाल दिया जाता है. आमतौर पर हाइपरथायरोइडिज्म के उपचार के लिए डाक्टर सर्जरी नहीं करते हैं. सर्जरी तभी की जाती है जब महिला गर्भवती हो और ऐंटीथायराइड मैडिसिन नहीं ले सकती है या मरीज को कैंसरयुक्त नोड्यूल है.

थायराइड टैस्ट

थायराइड फंक्शनिंग टैस्ट एक ब्लड टैस्ट है. इस के द्वारा यह पता लगाया जाता है कि आप की थायराइड ग्रंथि कितने बेहतर तरीके से काम कर रही है. इस में टी3, टी3आरयू, टी4 और टीएसएच टैस्ट शामिल हैं.

कब शुरू करें: 35 वर्ष के बाद

कितने अंतराल के बाद: साल में 1 बार, मगर कई डाक्टरों के अनुसार प्रतिवर्ष थायराइड की जांच कराना जरूरी नहीं है जब तक कि थायराइड से जुड़े कुछ सामान्य लक्षण दिखाई न दें.

-डा. सुंदरी श्रीकांत

निदेशक, इंटरनल मैडिसिन, क्यूआरजी सुपर

स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, फरीदाबाद –

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