जिनको ये लगता है कि टीबी सिर्फ फेफड़ों की बीमारी है, तो उन्हें अपनी सोच पर दोबारा विचार करने की जरूरत है! मेडिकल के आंकड़ों के अनुसार, भारत में टीबी के कुल मरीजों में से 5-10% मरीज हड्डी की टीबी से पीड़ित हैं और यह आंकड़ा नरंतर बढ़ता जा रहा है. स्पाइनल टीबी को लेकर जागरुकता में कमी ही इसका मुख्य कारण है. यही वजह है कि लोग अक्सर इसके लक्षणों को अन्देखा करते हैं, जिसके कारण टीबी का बेक्टीरिया हड्डियों और स्पाइन को प्रभावित करता रहता है. यदि हम संख्याओं की बात करें तो भारत में लगभग 1 लाख लोग ऑस्टियोआर्टिकुलर टीबी से पीड़ित हैं, जिसके कारण बढ़ते बच्चों के हाथ-पैर आवश्यकता अनुसार नहीं बढ़ पाते हैं और कुछ मामलों में पूरा शरीर लकवे की चपेट में आजाता है.
हालांकि, आमतौर पर टीबी फेफड़ों को प्रभावित करती है लेकिन यह बीमारी खून के जरिए शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल सकती है, जिसे आमतौर पर एक्सट्रापल्मोनरी या प्रसारित टीबी कहते हैं. आमतौर पर लंबी हड्डियों और वर्टीब्रा के छोर इस बीमारी की सामान्य साइट्स होती हैं और यह बीमारी किसी भी स्तर के व्यक्ति को हो सकती है.
यह बीमारी किसी भी हड्डी को प्रभावित कर सकती है लेकिन आमतौर पर यह स्पाइन और जोड़ों, जैसे हाथ, कलाई, कोहनी आदि पर पहले हमला करती है. इसमें होने वाले दर्द का प्रकार भी टीबी की जगह पर निर्भर करता है. उदाहरण, स्पाइन टीबी के मामले में दर्द पीठ के निचले हिस्से में होता है और यह दर्द इतना तीव्र होता है कि मरीज को चिकित्सक की मदद लेनी ही पड़ती है.