डॉ. सरोज शेलार (फैमिली फिजिशियन)

अभी हीरो फिल्मों के नहीं, बल्कि रियल लाइफ से जुड़े डॉक्टर्स, नर्सेज, सफाई कर्मी, पैरामेडिकल फोर्सेज और पुलिस है, जो पूरे देश में कोरोना संक्रमण या कोविड 19 के लगातार बढ़ते केसेज को दिनरात काम कर कम करने की कोशिश कर रहे है. महाराष्ट्र में जहाँ संक्रमितों की संख्या सबसे अधिक है. इन दिनों मुंबई की उपनगरीय क्षेत्र जिसमें मलाड, कांदिवली, बोरीवली, दहिसर आदि इलाकों में कोरोना संक्रमण की दर लगातार तेजी से बढ़ रही है. अस्पतालों में मरीजों को इलाज और बेड मिलना भी अब मुश्किल हो रहा है, ऐसी परिस्थिति में कई प्राइवेट डॉक्टर्स आगे आये है, जो लगातार करोना संक्रमण के मरीजों की संख्या को कम करने की कोशिश कर रहे है और जान जोखिम में डालकर उन्हें स्वस्थ भी कर रहे है. 35 साल की डॉ. सरोज शेलार भी ऐसी ही एक फॅमिली फिजिशियन है, जो बीएमसी के साथ मिलकर आसपास के तक़रीबन 25 से 30 कोरोना मरीज को पिछले कुछ दिनों में ठीक किया है. उनका नाम फ्रंटलाइन योद्धा की सूची में शामिल योग्य है. 

डॉक्टर सरोज कहती है कि शुरू-शुरू में मुझे लगा था कि लॉक डाउन से ये बीमारी कम होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और दो तीन दिन रुकने के बाद मैंने क्लिनिक में आना शुरू कर दिया. मुझे लगा कि मैं एक डॉक्टर हूँ और इस महामारी में घर पर बैठी नहीं रह सकती, क्योंकि लोगों को मेरी जरुरत है. मैंने कोरोना संक्रमण के लक्षण को देखते हुए इस पर अध्ययन किया और इलाज करना शुरू किया,जिसमें पाया कि समय से इसकी जांच और इलाज मिलने पर रोगी स्वस्थ आसानी से हो सकता है, पर समस्या यह है कि लोग अपनी बीमारी को छुपा रहे है और जब समस्या गंभीर होती है, तो डॉक्टर के पास आते है, जिसे ठीक करना मुश्किल होता है. लोगों को लगता है कि बीमारी को छुपाने से वे बच जायेंगे, जबकि इससे वे और अधिक लोगों को संक्रमित कर रहे है. पहले मलाड एरिया में संक्रमितों की संख्या कम थी ,जो अब तेजी से बढ़ रही है. इसका असर झुग्गियों से लेकर अब बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों में भी फ़ैल चुका है. हर दिन दो से तीन मरीज में कोरोना के लक्षण देखे जा रहे है. इनमें झुग्गियों में रहने वाले कई लोग इतने गरीब है कि उनके पास टेस्ट करवाने के पैसे नहीं होते. मैं उन्हें फ्री में भी इलाज कर रही हूं.

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वह आगे कहती है कि कोरोना संक्रमण के इलाज में सबसे पहले मैं रोगी के लक्षण देखती हूँ, जिसमें हाई फीवर के साथ-साथ बदन दर्द बहुत तेज होता है. इसके बाद कोरोना की जांच करवाई जाती है. इसमें मैं रोगी के सैंपल लेने के बाद उसे घर में क्वारेंटाइन करने के लिए कहती हूँ. पॉजिटिव रिजल्ट आने के बाद उसकी रिपोर्ट और दवा के लिए परिवार के किसी सदस्य को बुलाती हूँ और उसे सारी बातें विस्तार से समझाती हूँ. रोगी से बातचीत और उसकी देखभाल वीडियो कॉल के ज़रिये करती हूँ, अगर रोगी को कुछ समस्या आती है, तो तुरंत बीएमसी को इन्फॉर्म कर उन्हें गोरेगांव ईस्ट में स्थित नेस्को के क्वारेंटाइन सेंटर में भेज दिया जाता है, जहाँ दो हज़ार बेड्स के साथ व्यवस्था बहुत अच्छी है. अच्छा खाना, डॉक्टर्स, नर्सेज, साफ़ सफाई सबकुछ दुरुस्त है. अगर वहां पर जाने के बाद मरीज अधिक सीरियस होता है तो ट्रोमा सेंटर में भेजा जाता है. मुंबई में बीएमसी के अच्छा काम करने के वावजूद लोग उन्हें भला-बुरा कह रहे है, जबकि मेरे पास से गए सारे कोविड 19 के मरीज़ ठीक होकर घर लौट चुके है. इस बीमारी का लोड व्यक्ति की इम्युनिटी पर निर्भर होता है. इसके अलावा कुछ लोगों को कोरोना संक्रमण की मात्रा अधिक न होने पर वे जल्दी ठीक होजाते है. मेरा उन सभी संक्रमित व्यक्तियों से कहना है कि जब भी आपको हाई फीवर और बदन दर्द हो, तो डरे नहीं, डॉक्टर से मिलकर अपना टेस्ट जल्दी करवाएं. इससे कम खर्च में जल्दी इलाज़ हो सकेगा. 

इस काम के लिए डॉक्टर सरोज पीपीइ किट के साथ साथ पूरा सेफ्टी नॉर्म्स का पालन करती है, जिसमें, मास्क, ग्लव्स, कैप, फेस शील्ड आदि होते है. इसे वह हर रोह 8 से 9 घंटे तक पहनती है, जो आसान नहीं होता. हर रोगी के बाद वह अपने क्लिनिक को सेनिटाइज करती है, ताकि संक्रमण दूसरे मरीज में न फैले. वह कहती है कि इस बीमारी को लेकर लोग डरे हुए है और बुखार होने पर हमारे पास नहीं आते. एक व्यक्ति ने छुपाकर अपनी टेस्ट करवाई, ताकि उसके आसपास रहने वाले लोग उसके साथ बुरा बर्ताव न करें. लोग समझते नहीं है कि ये एक वायरल इन्फेक्शन है, इससे व्यक्ति पूरी तरह से ठीक हो सकता है और साधारण व्यक्ति की ही तरह सबके बीच में रह सकता है. सावधानी केवल संक्रमित व्यक्ति से कुछ दिनों के लिए ही करना पड़ता है, जिसमें सेनिटाइजेशन, मास्क और ग्लव्स पहनना आवश्यक होता है. 

डॉ. सरोज के इस काम में उसका परिवार पूरी तरह से साथ देता है. उसके घर में उसके बुजुर्ग सास-ससुर, पति सुयोग शेलार और दो बच्चे, तनिष्क (12 वर्ष) और तरुष (साढ़े चार वर्ष) का है. परिवार के सहयोग के बारें में पूछे जाने पर डॉ.सरोज कहती है कि पहले पति ने थोड़ी आनाकानी मेरे प्रैक्टिस को लेकर किया, पर मैंने उन्हें समझाई कि उन्होंने एक डॉक्टर से शादी की है, जिसका काम मरीजों को ठीक करना है. इसके बाद वे समझे और परिवार की देखभाल अपने काम के साथ करते है. बड़ा बेटा भी घर में दादा-दादी की देखभाल करता है. 

इस काम में सरोज को खुद की देखभाल भी बहुत करनी पड़ती है. क्लिनिक से जाने के बाद डॉ.सरोज सीधा बाथरूम में जाकर नहाती है और अपने कपडे गरम साबुन पानी से धोकर बाहर निकलती है और इनदिनों वह अपने बच्चों से थोड़ी दूरी बनाकर रखती है, ताकि परिवार सुरक्षित रहे. खाने में पौष्टिक आहार लेने के साथ-साथ एक अच्छी नींद भी लेती है.

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