डौ. कुशल बनर्जी
एम.डी. (होम्योपैथी), एमएससी (औक्सोन)
मौसम परिवर्तन के दौरान वायरल फीवर या वायरल संक्रमण का दौर शुरू हो जाता है. भारत के शहरों में आमतौर पर हर बीमारी को वायरल कहा जाता है, जबकि वो होती नहीं है. वायरल फीवर का मतलब होता है, वायरल संक्रमण के कारण होने वाला बुखार. सैद्धांतिक रूप से वायरल संक्रमण कैसा भी हो सकता है, जिससे बुखार उत्पन्न हो. व्यवहार में, हालांकि, वायरल बुखार वो बुखार होते हैं, जो इन्फ्लुएंज़ा वायरस के कारण होते हैं. यह शब्द उस बुखार के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है, जो सांस के अन्य वायरस के कारण उत्पन्न होता है. अक्सर इस शब्द का इस्तेमाल सांस की नली के बैक्टीरियल संक्रमण के लिए करते हैं, जैसे अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट का संक्रमण.
इस तरह के वायरल संक्रमण के लक्षणों में बुखार
आम तौर पर हल्का या तेज (एक सौ दो डिग्री फारेनहाईट तक), शरीर में दर्द, सरदर्द, कमजोरी, नाक बहना और खांसी या बिना खांसी के गले का संक्रमण शामिल हैं. मरीज को बुखार होने से पहले कभी कभी डाईजेस्टिव सिस्टम में भी खराबी हो सकती है, जैसे पेट में दर्द या दस्त. ये लक्षण आम तौर पर चैबीस से अड़तालीस घंटों तक रहते हैं और उसके बाद लुप्त होने लगते हैं. मरीजों को बुखार से एक या दो दिन पहले बीमारी का अहसास होने लगता है. पूरी तरह से सेहतमंद होने का अहसास बुखार जाने के दो से तीन दिन बाद ही प्राप्त होता है.
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ये लक्षण और बीमारी की अवधि उम्र एवं अन्य बीमारियों की मौजूदगी के अनुसार परिवर्तित हो सकती है. अट्ठाईस दिन से कम उम्र के बच्चों का बारीकी से निरीक्षण किए जाने की जरूरत होती है. वृद्ध मरीजों में लंबे समय तक लक्षण रहते हैं, जिनकी गंभीरता भी ज्यादा होती है. अन्य बीमारियों, जैसे ब्रोंकायल अस्थमा या हाईपर रिएक्टिव एयरवे डिज़ीज़ के कारण लक्षण और ज्यादा गंभीर हो सकते हैं. वायरल संक्रमण अक्सर लौट कर आता है, लेकिन इसके बाद अस्थमा या एलर्जिक खांसी होती है या फिर स्किन की एलर्जिक स्थितियां खराब हो सकती हैं, जिनके ठीक होने में ज्यादा समय लग सकता है. मौसम में परिवर्तन के दौरान वायरल संक्रमण बढ़ने से इसी अवधि में अस्थमा बढ़ सकता है और इस तरह की बीमारियों के बढ़ने में मदद मिल सकती है.
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