कोई महिला गर्भधारण करने की कोशिश कर रही होती है पर उस में सफल नहीं हो पाती, तो वह बहुत परेशान हो जाती है. कई बार डाक्टर अनेक जांच करते हैं लेकिन उन्हें गर्भधारण नहीं कर पाने का कोई स्पष्ट कारण नहीं मिल पाता. इसी स्थिति को बांझपन या अनऐक्सप्लैंड इनफर्टिलिटी (Infertility)  कहते हैं. अस्पष्ट बांझपन का मतलब यह कतई नहीं है कि आप कभी बच्चा पैदा नहीं कर पाएंगी. इस का मतलब सिर्फ इतना है कि डाक्टर अभी तक इस का सही कारण नहीं ढूंढ़ पाए हैं.

कई बार सही मार्गदर्शन और इलाज से इस समस्या का समाधान हो जाता है और कपल्‍स मातापिता बन जाते हैं. अगर आप भी इस स्थिति से गुजर रही हैं तो घबराएं नहीं. किसी अच्छे डाक्टर से सलाह और मार्गदर्शन लें.

अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी क्‍या होती है

डा. पारुल गुप्‍ता, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी, वसंत विहार का कहना है, “इसे इडियोपैथिक इनफर्टिलिटी भी कहा जाता है. यह उन कपल्‍स को बताया जाता है, जो कम से कम 1 साल तक गर्भधारण करने के प्रयास में सफल नहीं हुए हैं जबकि उन की फर्टिलिटी की जांचों के परिणाम सामान्‍य रहे हैं.  इस का मतलब यह होता है कि महिला का ओव्यूलेशन, फैलोपियन ट्यूब्‍स और यूट्रस सामान्‍य हैं और पुरुष का स्‍पर्म काउंट तथा क्‍वालिटी भी सामान्‍य हैं. दुनिया के इनफर्टाइल कपल्‍स में से लगभग 30% में अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी पाई जाती है.

अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी के कारण

अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी का असल कारण तो समझ में नहीं आता है, लेकिन ऐसे कई घटक होते हैं, जिन का उस में योगदान हो सकता है, जैसेकि ऐसी चिकित्‍सकीय स्थितियां, जिन का पता नहीं चला हो. एंडोमेट्रियोसिस एग या स्‍पर्म की गुणवत्ता में समस्‍या खराब समय पर किया गया इंटरकोर्स जीवनशैली के घटक जैसेकि धूम्रपान, बहुत अलकोहल लेना और मोटापा है.

अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी का इलाज

अच्‍छी बात यह है कि अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी वाले कपल्‍स के लिए इलाज के कई विकल्‍प उपलब्‍ध हैं। इलाज का सब से सही तरीका अलगअलग स्थितियों के अनुसार होगा, जैसेकि उम्र, मैडिकल हिस्‍ट्री और निजी पसंद.

इलाज के कुछ आम विकल्‍पों में शामिल हैं :

असिस्‍टेड रिप्रोडक्टिव टेक्‍नोलौजी यानि एआरटी एआरटी में फर्टिलाइजेशन और गर्भधारण को आसान बनाने के लिए लेबोरेट्री प्रक्रियाओं का इस्‍तेमाल होता है. एआरटी के सब से आम रूप हैं :

इंट्रायूटेरिन इंसेमिनेशन (आईयूआई) : इस प्रक्रिया में स्‍पर्म को सीधे यूट्रस में डाल दिया जाता है, ताकि फर्टिलाइजेशन की संभावनाएं बढ़ सकें.

इनविट्रो फर्टिलाइजेशन यानि आईवीएफ : इस प्रक्रिया में एग्‍ज को ओवरीज से ले कर लेबोरेट्री में स्‍पर्म के साथ फर्टिलाइज किया जाता है और नतीजे में मिलने वाले भ्रूण को यूट्रस में पहुंचा दिया जाता है.

प्रीइंप्‍लांटेशन जैनेटिक टैस्टिंग फौर ऐयूपलौइडी यानि पीजीटी-ए : यह एक जैनेटिक टेस्‍ट है, जो आईवीएफ से बनने वाले भ्रूण पर किया जाता है ताकि क्रोमोसोम की असामान्‍यताओं को जांचा जा सके. पीजीटी-ए से स्‍वस्‍थ भ्रूण की पहचान में मदद मिल सकती है और सफल गर्भधारण की संभावनाएं बढ़ती हैं, खासकर अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी के उन मामलों में, जहां छिपे हुए जैनेटिक कारण हो सकते हैं.

स्‍पर्म डीएनए फ्रैगमेंटेशन इंडैक्‍स यानि डीएफआई : डीएनए फ्रैगमेंटेशन इंडैक्‍स (डीएफआई) एक विशेष जांच होती है, जिस में स्‍पर्म डीएनए की इंटीग्रिटी का पता लगाया जाता है. अगर सीमेन एनालीसिस सामान्‍य रहता है, तब भी डीएफआई ज्‍यादा होने से उन समस्‍याओं का संकेत मिल सकता है, जो इनफर्टिलिटी का कारण हो सकती हैं. डीएफआई का लेवल ज्‍यादा होने को कम फर्टिलिटी से जोड़ कर देखा जाता है और इस में गर्भपात का ज्‍यादा खतरा होता है.

ज्‍यादा डीएफआई को जानना और सही करना अस्‍पष्‍ट इनफर्टिलिटी के इलाज में महत्त्वपूर्ण हो सकता है. इस से समझा जा सकता है कि सीमेन के मापदंड सामान्‍य होने पर भी गर्भधारण क्‍यों नहीं हुआ.

मैडिसिन

ओव्यूलेशन को प्रेरित करने और फर्टिलिटी में सुधार करने के लिए दवाएं दी जा सकती हैं. इन में शामिल हैं :

गोनाडोट्रोपिन्‍स : यह हारमोन एग का बनना और ओव्यूलेशन प्रेरित करते हैं.

क्‍लोमिफीन (क्‍लोमिड) : यह दवा ओव्यूलेशन को प्रेरित करती है और फर्टिलिटी में सुधार करती है.

लैट्रोजोल (फेमारा) : यह दवा ओव्यूलेशन को प्रेरित करती है और फर्टिलिटी में सुधार करती है. फर्टिलिटी ट्रीटमैंट के लिए इस का इस्‍तेमाल अकसर औफ लेवल होता है.

लाइफस्टाइल में बदलाव

जीवनशैली में स्‍वस्‍थ बदलावों से भी फर्टिलिटी में सुधार हो सकता है और गर्भधारण की संभावनाएं बढ़ती हैं. इन में शामिल हैं :

सही वजन बनाए रखना व संतुलित आहार लेना : तनाव कम करना, धूम्रपान और अत्‍यधिक शराब पीने से बचना और नियमित रूप से व्‍यायाम करना.

इंटरकोर्स का सही समय : इंटरकोर्स का सही समय जानने से भी फर्टिलिटी में सुधार हो सकता है। इस के लिये निम्‍नलिखित उपाय हैं :

बेसल बौडी टैंपरेचर (बीबीटी) चार्टिंग : इस में ओव्यूलेशन का पता लगाने के लिए शरीर के तापमान की निगरानी की जाती है.

ओव्यूलेशन किट्स : ओव्यूलेशन का पता लगाने वाले होम टेस्‍ट.

फर्टिलिटी ऐप्‍स : डिजिटल टूल्‍स, जो फर्टिलिटी का पता लगाते हैं और निजी मार्गदर्शन देते हैं.

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