कोरोना के और कई रूप एक- एक करके सामने आते जा रहे हैं….एक संक्रमण खतम होता नहीं है कि दूसरा मुसीबत बनकर सामने आ जाता है.ऐसे में देश कब तक इस संक्रमण से बाहर निकल पाएगा इस पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता है.डेल्टा प्लस जैसा वैरिएंट तो सामने आए ही हैं लेकिन उसके साथ ही ब्लैक फंगस, वाइट फंगस और यलो फंगस के बाद इंदौर में अब ग्रीन फंगस का एक मरीज मिला है.. देश में ग्रीन फंगस का यह पहला मामला सामने आया है साथ ही मंकीपॉक्स फंगस भी सामने आए हैं. दरअसल इंदौर में ग्रीन फंगस से ग्रसित मरीज की पुष्टी की गई थी…उसे इंदौर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन मरीज को बेहतर इलाज के लिए एयरलिफ्ट कर अब मुंबई भेजा दिया गया है.
दरअसल,ये मरीज माणिकबाग इलाके में रहने वाला 34 साल का मरीज है जो कि कोरोना से संक्रमित हुआ था, उसके फेफड़े में 90 फिसदी तक संक्रमण फैल चुका था… लेकिन दो महिने तक चले इलाज के बाद मरीज को अस्पताल से छुट्टी कर दी गई ये कहकर कि वो अब ठीक है साथ ही वो बेहतर भी महसूस कर रहा था… लेकिन 10 दिनों के बाद मरीज की हालत फिर से बिगड़ने लगी उसके दाएं फेफड़े में मवाद भर गया था….वहीं,उसके फेफड़े और साइनस में एसपरजिलस फंगस हुआ था, जिसके कारण उसे मुंबई भेजा गया. विशेषज्ञों के मुताबिक ग्रीन फंगस ब्लैक फंगस से ज्यादा खतरनाक बिमारी है. फेफड़े में ये ग्रीन कलर का दिखता है जिसके कारण इसे ग्रीन फंगस नाम दिया गया है.जिसकी वजह से मरीज की हालात लगातार बिगड़ती जाती है…कोरोना की रफ्तार तो कम हो चुकी है. लेकिन ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या में कमी नहीं आ रही है और ग्रीन फंगस का डिडेक्ट होना चिंताजनक है…हालाकिं उस मरीज को बेहतर इलाज के लिए मुंबई जरूर भेजा गया है लेकिन वो ठीक हो पाएगा या नहीं कहा नहीं जा सकता है.
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ग्रीन फंगस के लक्षण कुछ ऐसे होते हैं…
मरीज को खखार और गुदाव्दार से खून आने लगा है, बुखार भी 103 डिग्री हो जाता है, वहीं ग्रीन फंगस पर एम्फोटेरेसिन बी इंजेक्शन भी काम नहीं करता. प्रदेश में ग्रीन फंगस का ये पहला मामला है. जो कि पोस्ट कोविड मरीजों में देखा गया है.
अब बात आती है मंकीपॉक्स वायरस की. वैज्ञानिकों के सामने कोराना का पुख्ता इलाज ढूंढना अभी भी संभव नहीं हुआ है…वो अभी भी कोशिश कर रहे हैं …तो वहीं अब एक नए वायरस की एंट्री हो गई है और इस बेहद खतरनाक नए वायरस का नाम है मंकीपॉक्स. मंकीपॉक्स के दो मामले ब्रिटेन के वेल्स में मिले हैं… वैज्ञानिकों के मुताबिक यह वायरस ज्यादातर अफ्रीका में पाया जाता है. खास बात यह है कि जिन लोगों में इस नए वायरस की पहचान हुई है वे दोनों घर पर ही रहते थे…उनका कहीं भी घर से बाहर आना-जाना नहीं होता था इसके बावजूद भी वो इस वायरस के चपेट में आ गए. कोरोना के कहर के बीच मंकीपॉक्स वायरस की एंट्री ने देश को और भी ज्यादा खतरे में डाल दिया है.
क्या है ‘मंकीपॉक्स’ ?
एक रिपोर्ट के मुताबिक मंकीपॉक्स जानवरों से इंसानों में फैलने वाला वायरस है
सबसे पहले 1970 में अफ्रीकी देश कांगो में इसकी पहचान हुई थी. उसके बाद 2003 में मध्य और पश्चिमी अफ्रीकी देशों में , अमेरिका और दूसरे देशों में भी इसके ज्यादातर मामले सामने आए थें.मंकीपॉक्स में डेथ रेट 11 फीसदी तक जा सकती है. स्मालपॉक्स की वैक्सीन मंकीपॉक्स पर भी कारगर हो सकती है.
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‘मंकीपॉक्स’ के लक्षण
क्या हैं ?
स्मॉलपॉक्स यानी चेचक की तरह ही इसके लक्षण
हैं, शरीर पर लाल चकत्ते होने लगते हैं, फिर वो चकत्ते घाव में तब्दील हो जाते हैं.
बुखार आता है, सिर दर्द होने लगता है, कमर में दर्द ,
मांसपेशियों में अकड़न और कमजोरी
होने लगती है.