Pregnancy : प्रैगनेंसी के वक्त जब मां के गर्भ में बच्चा पलबढ़ रहा होता है, तो यह समय एक मां के लिए जितना सुखदायी होता है उतना ही कठिन भी, क्योंकि 9 महीने की प्रैगनेंसी में हर महीने महिला अलगअलग प्रैगनेंसी लक्षणों को झेल रही होती है. कभी अत्यधिक उलटियां, कमरदर्द, पैरों में सूजन, थकावट, कब्ज, वजन बढ़ना, जोड़ों में दर्द, ऐसिडिटी, तो कभी हार्टबर्न.
ये तो बस कुछ ही परेशानियां हैं, जानें कितनी ही दिक्कते हैं जिन का एक औरत मातृत्व की इस यात्रा में सामना करती है.
इस दौरान हिम्मत देने और जन्म से पहले शिशु से इमोशनली जुड़ने में अल्ट्रासाउंड काफी मददगार साबित होते हैं. जो न सिर्फ आप के बच्चे की सही ग्रोथ और सेहत को दिखाते हैं, जब आप अल्ट्रासाउंड के दौरान बच्चे के हाथपैर देखती हैं, उस की धड़कनों को पहली बार सुनती हैं तो उस से आप का आप के बच्चे से लगाव बढ़ जाता है.
अल्ट्रासाउंड से आप को प्रैगनेंसी के रिस्क या बच्चे को गर्भ में कुछ परेशानी तो नहीं, यह सब भी पता चल जाता है. गर्भावस्था में कौन से अल्ट्रासाउंड कराने चाहिए, इस के बारे में हम यहां जानेंगे :
अर्ली प्रैगनेंसी या डेटिंग स्कैन : यह गर्भधारण के शुरुआती दिनों जैसे 7 से 11 हफ्तों के अंदर किया जाता है. यह बताता है कि आप का बच्चा गर्भ में सही है. यहां आप को पहली बार अपने बच्चे की धड़कन सुनने का मौका मिलता है. हालांकि आप का बच्चा यहां मूंग की दाल के दाने के बराबर साइज का होता है, लेकिन आप उसे जीताजागता देख सकते हैं.
अल्ट्रासाउंड के टर्म्स की बात करें, तो यहां आप को रिपोर्ट में ईडीडी (EDD) यानी कब आप का बच्चा डिलिवर होगा, (फ्यूटस) Featus से अर्थ है आप का बच्चा, (एफएचआर) FHR से मतलब होता है बच्चे की धड़कन, जैसे टर्म्स देखने को मिलेंगी.
NT/NC स्कैन : यह आप के गर्भधारण के 11 से 13वें हफ्ते में किया जाता है. यह स्कैन बहुत जरूरी है। इसलिए आप को किसी भी हालत में इस को मिस नहीं करना चाहिए. इस में आप के बच्चे का साइज एक स्ट्राबैरी के बराबर हो जाता है और मेजर और्गन्स बनना, हाथपैर, रीड की हड्डी बनना शुरू हो जाती है. बच्चे की नाक की हड्डी की लंबाई को भी इस में मापा जाता है.
यह स्कैन इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इस दौरान आप के बच्चे में ऐडवर्ड सिंड्रोम, डाउन सिंड्रोम जैसी मानसिक बीमारियां तो नहीं हैं, पता लगाया जाता है. इस स्कैन के साथ ही डबल मार्कर, ब्लड टैस्ट कराने की सलाह भी डाक्टर आप को देते हैं जिस से बच्चे में मानसिक स्थिति का सही पता लगाया जा सके.
ऐनामौली स्कैन : यह 14-18 हफ्तों की बीच कराया जाता है. इस में आप का बच्चा ऐवाकाडो के साइज का हो चुका होता है. यही स्कैन 19-22वें हफ्ते के बीच भी दोहराया जाता है ताकि बच्चे के अंग सही से ग्रो कर रहे हैं या नहीं, उस का पता लगाया जा सके. आप के शरीर में ऐमनियोटिक फ्लूड, यानी गर्भ में जिस पानी से बच्चा घिरा रहता है वह ज्यादा या कम तो नहीं, इस की भी जांच की जाती है.
गर्भ में पानी ज्यादा या कम होने से बच्चे की सेहत पर प्रभाव पड़ता है. अत्यधिक पानी होने पर कई बार डाक्टरों को इंजैक्शन से ऐमनियोटिक फ्लूड को निकालना पड़ता है. बच्चे में स्पाइना बिफिडा जैसी बीमारी, जिस में सही से बच्चे की रीड की हड्डी नहीं बन रही हो, उस की भी जांच की जाती है.
यह स्कैन आप के लिए जरूरी है क्योंकि इस में आप को बच्चे के हाथपैर, उंगलियां आदि आप को देखने को मिलेंगी.
गर्भावस्था के आखिरी 3 महीनों (तीसरा ट्राइमेस्टर) में ग्रोथ स्कैन और डौपलर स्कैन किए जाते हैं. ग्रोथ स्कैन यह देखने के लिए होता है कि बच्चा ठीक से बढ़ रहा है या नहीं, उस का वजन और स्थिति सही है या नहीं. डौपलर स्कैन गर्भनाल और प्लेसेंटा में खून के प्रवाह की जांच करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चे को पूरी तरह से पोषण मिल रहा है.
प्रैगनेंसी के दौरान होने वाले सभी अल्ट्रासाउंड न सिर्फ बच्चे के लिए बल्कि आप के लिए भी जरूरी हैं क्योंकि जब आप बच्चे की धड़कन सुनते हैं, तो मातापिता सभी को बच्चे से भावनात्मक रूप से जुड़ने का मौका मिलता है.
जन्म से पहले बच्चे से लगाव प्रैगनेंसी के दौरान खड़ी होने वाली परेशानियों को तो कम नहीं करता, लेकिन बच्चे को देख कर आप को सभी दिक्कतें झेलने की ताकत मिलती हैं, क्योंकि अल्ट्रासाउंड से परिणाम आप को अपनी आंखों के सामने नजर आता है जोकि काफी सुखद अनुभव होता है.