कोरोना महामारी के समय लोगों के जीवन में भारी बदलाव देखने को मिले. उस दौरान लोगों को महामारी से खुद को बचाए रखने के लिए मजबूरन घरों में आइसोलेट होना पड़ रहा था. महामारी में होने वाली मौतों के कारण लोगों ने अपनों को खोया और वे डिप्रैशन का शिकार हुए.
अकसर देखा गया है कि डिप्रैशन अकेलेपन को जन्म देता है. डिप्रैस्ड व्यक्ति अकेला रहना चाहता है, भीड़ से कटने लगता है, अपने दिलोदिमाग में पनप रहे खयालों को किसी से शेयर करने से कतराने लगता है.
ब्रेकअप के बाद भी लोग एकांत में चले जाते क्योंकि किसी बहुत खास व्यक्ति को खोना किसी की मानसिक स्थिति को बहुत प्रभावित कर सकता है.
द्य सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल से भी ऐसा होता है. लोग घंटों सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं. ऐसे लोगों को फौलो कर रहे हैं जो अधिकतर अकेला रहने की हिदायतें देते हैं. इस से भी लोगों की बाहरी दुनिया में रुचि कम हो सकती है.
लंबी बीमारी से जू?ा रहे लोग अकसर खुद को बाहरी दुनिया से अलगथलग पाते हैं. उन के दोस्त रिश्तेदार उन से पहले की कि तरह मेलजोल नहीं रखते तो वे खुद भी दूसरों से स्वाभाविक दूरी बना लेते हैं. कभीकभी अनजाने में उन का सैल्फ आइसोलेशन गहरा हो जाता है, वे खुद को हीन सम?ाने लगते हैं.
‘‘बचपन में जब रोना आता है तो बड़े बोलते हैं आंसू पोंछो. जब गुस्सा आता है तो बड़े कहते हैं मुसकराओ ताकि घर की शांति बनी रहे. नफरत करना चाहे, तो इजाजत नहीं दी और जब प्यार करना चाहे तो पता चला यह साला इमोशनल सिस्टम ही गड़बड़ा गया, काम नहीं कर रहा, काम नहीं कर सकता. रोना, गुस्सा, नफरत कुछ भी खुल के ऐक्सप्रैस नहीं करने दिया. अब प्यार कैसे ऐक्सप्रैस करे?’’