एक रिपोर्ट के अनुसार रजोनिवृत्ति के दौरान हुए हारमोनल परिवर्तन महिलाओं में अत्यधिक वजन बढ़ने का कारण बन सकते हैं. सिनसिनाटी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने यह खोज निकाला है कि वसा का वितरण कहांकहां होगा. दरअसल, इसे नियंत्रित करने में ऐस्ट्रोजन का मस्तिष्क में एक गुप्त, छिपा हुआ रोल है.

मनोचिकित्सक असिस्टैंट प्रोफैसर डेबरा क्लेग का अनुसंधान बताता है कि रजोनिवृत्ति के बाद ऐस्ट्रोजन उत्पत्ति में कमी, मस्तिष्क के एक विशेष क्षेत्रों में जो भोजन की ग्रहणता और वसा को रखने की जगह निर्धारित व उसे नियंत्रित करता है, पर असर करता है.

विशेषरूप से हाइपोथैलेमस के वे ऐस्ट्रोजन रिसेप्टर्स, जो मस्तिष्क का वह क्षेत्र जो शरीर के तापमान, भूख और प्यास को नियंत्रित करता है, वजन बढ़ने व वजन के वितरण में प्रत्यक्ष रोल अदा करते हैं.

क्लेग का कहना है कि यह अनुसंधान वैज्ञानिक ज्ञान में एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि है. यह बिना स्वास्थ्य संबंधी खतरों के आज की तकलीफों से जुड़ी स्तन व ओवेरियन कैंसर और कार्डियोवैस्कुलर रोगों, हृदय की नाडि़यों से जुड़ी आजकल की रिप्लेसमैंट तकनीकों की हारमोन थेरैपीज में सुधार कर सकती है.

स्वास्थ्य के लिए खतरनाक

जब नारियां रजोनिवृति का अनुभव करती हैं तो एस्ट्रोजन की उत्पत्ति कम हो जाती है और उन का वजन बढ़ जाता है. अधिकतर नारियों में रजोनिवृत्ति के बाद वसा ‘फैट’ जो पहले कूल्हों के क्षेत्र में एकत्रित होती थी, उस का स्टोरेज स्थान में जमा होने की जगह अब पेट, उदर हो जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए और भी ज्यादा खराब है.

क्लेग का कहना है कि जब नारियों में कूल्हों और जांघों के क्षेत्र से हट कर, जो अपेक्षाकृत ज्यादा सुरक्षित स्थान है वसा का ट्रांसफर उन के उदर, पेट में हो जाता है तब मोटापे से संबंधित रोगों के खतरों के बढ़ने की बहुत बड़ी संभावना हो जाती है.

एक रहस्य भी है

यह एक रहस्य होता था कि वसा के सेल्स कैसे यह निर्णय लेते हैं कि शरीर के किस स्थान में वे अपना घर बनाएं, निवास करें.

क्लेग की टीम ने रीढ़ की हड्डी के पास, खोपड़ी के आधारस्थल पर हाइपोथैलेमस में ऐस्ट्रोजन रिसेप्टर्स को केंद्रित पाया है.

जवानी के उत्तरार्द्ध में मादा चूहों का इस्तेमाल करते हुए विशेषज्ञों ने वे न्यूरोलोजिकल रिसेप्टर्स जो ऐस्ट्रोजन को सेल में प्रवेश करने देते हैं, शांत कर दिया. जब रिसेप्टर्स आरएनए इंटरफिएरैंस तकनीक द्वारा बंद कर दिए गए, चुहियों का वजन बढ़ने लगा और वसा का वितरण उदर के क्षेत्रों में होने लगा. क्लेग का कहना है कि चुहियों के मस्तिष्क के ऐस्ट्रोजन रिसेप्टर्स को बंद करने से वही स्थिति पैदा होती है जो रजोनिवृत्ति के बाद नारियों में जिन का हाइपोथैलेमस, जैसेजैसे उन के शरीर के उत्पादन में कमी होती जाएगी, हारमोन से वंचित होता जाएगा.

यह अनुसंधान उन हारमोन रिप्लेसमैंट थेरैपीज की ओर अग्रसर कर सकता है जो मस्तिष्क के सिर्फ उस भाग को लक्ष्य करेगा जो शरीर के वजन वितरण को नियंत्रित करता है.

मोटापे के लिए जिम्मेदार

क्लेग का कहना है कि इस प्रकार से किया इलाज स्तनों के स्तर पर प्रभाव नहीं डालेगा और न ही हृदय के स्तर पर ही प्रभाव डालेगा, जैसाकि वर्तमान की हारमोन रिप्लेसमैंट थेरैपीज से खतरा है.

कैनेडियन संस्थान के हैल्थ रिसर्च के फिजियोलौजिस्ट, जीन मार्क लावोई का कहना है कि यह बहुत रुचिकर तथ्य है क्योंकि यह रजोनिवृत्ति के बाद वजन बढ़ने पर बहुत महत्त्वपूर्ण नया प्रकाश डालता है. पर अभी तक वे इस बात से निर्णयात्मक रूप से सहमत नहीं हो पाए हैं कि हाइपोथैलेमस में ऐस्ट्रोजन की कमी वजन वितरण के लिए जिम्मेदार है.

लावोई का कहना है, ‘‘वसा उदर क्षेत्रों में ही क्यों ज्यादा जाती है, अन्य क्षेत्रों में क्यों नहीं. यह इसलिए भी हो सकता है कि ऐस्ट्रोजन रिसेप्टर्स वसा के टीसूज के बिलकुल पास हैं, जरूरी नहीं है कि वे मस्तिष्क में हैं.’’

पौष्टिक भोजन और व्यायाम

जो भी हो रजोनिवृत्त महिलाओं के लिए कम से कम यह आशा तो बन ही गई है कि यदि अभी नहीं तो कम से कम इस दिशा में काम शुरू हो जाने से भविष्य तो सुनहरा दिखने ही लगा है. इस प्रक्रिया से भविष्य में उन के भी छरहरे दिखने की संभावना है.

पर साथ ही भविष्य के सपने चाहे कितने भी रंगीन क्यों न हों, वर्तमान की ठोस धरा पर जीवन जीना भी जीवन की एक बहुत बड़ी आवश्यकता है. इसलिए रजोनिवृत्त महिलाओं को भी आज की परिस्थितियों से सम झौता कर अपने मोटापे को पौष्टिक भोजन और व्यायाम से नियंत्रित करना पड़ेगा.

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