किडनी के क्षेत्र में अधिक जानकारी देने, इसे स्वस्थ रखने और लोगों की जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ल्ड किडनी डे को हर साल मार्च महीने की दूसरी गुरुवार को पूरे विश्व में मनाया जाता है, जो इस बार यह 12 मार्च को है. किडनी की बीमारी को लगातार बढ़ते रहने की वजह से इसे मनाया जाना बहुत जरुरी है. हर साल यह एक थीम पर आधारित इस दिन को ‘किडनी हेल्थ फॉर एवरी वन एवरी व्हेयर’ दिया गया है . इस बारें में वोकहार्ड हॉस्पिटल्स के नेफ्रोलोजिस्ट डॉ. असीम थाम्बा का कहना है कि ये बीमारी हर साल बढ़ रही है, इसमें हमारी कोशिश ये है कि ये नॉन कोम्युनिकेबल डिसीज होने और थोड़ी ध्यान रखने से इस बीमारी को रोका जा सकता है, जो संभव है. किडनी की बीमारी हमारे देश में होने पर गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों को बहुत समस्याओं से गुजरना पड़ता है, क्योंकि इस बीमारी के इलाज में खर्चा अधिक होता है. इसमें डाईलिसिस और किडनी की ट्रांसप्लांटेशन खास होती है, जो किडनी के फेल हो जाने पर करना पड़ता है. ये अधिकतर क्रोनिक किडनी डिसीज स्टेज 5 में ही किया जाता है, जिसमें किडनी पूरी तरह से काम करना बंद कर देती है.
क्या है वजह
भारत में इस बीमारी के होने की मुख्य कारण डायबिटीज और ब्लड प्रेशर है. इसके अलावा किडनी स्टोन, बिना सोचे समझे जरुरत से अधिक दवा खुद से ले लेना, पेनकिलर लेना आदि कई है. जिससे किडनी ख़राब होती रहती है. इसे रोकने में समर्थ होने पर खर्च कम होगा और व्यक्ति कई सारी समस्याओं से बच सकता है. रोकथाम पर अधिक ध्यान देने की जरुरत आज सभी को है, क्योंकि ये साइलेंट बीमारी है और शुरुआत में किसी को कुछ पता नहीं चल पाता. जब केवल 20 प्रतिशत किडनी बची हो, तभी इसके लक्षण दिखाई पड़ते है.
लक्षण
लक्षण निम्न है
- पैर और चेहरे पर सूजन,
- खाना न खा पाना,
- सीढ़ी चढ़ने में सांस फूलना,
- खून की कमी का होना,
- काम करने में मेहनत महसूस होना,
- रात को बार-बार पेशाब लगना आदि है. इसे अगर शुरू में नोटिस कर लिया जाय तो डायलिसिस या ट्रांसप्लांट से बचा जा सकता है.
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इसके आगे डॉ. असीम कहते है कि इसके प्रिवेंशन भी कई तरह के होते है,
- प्राइमरी प्रिवेंशन,
- सेकेंडरी प्रिवेंशन और
- टर्शीयरी प्रिवेंशन
- प्राइमरी में किडनी की बीमारी के शुरुआत से ही इसे रोक लेना,
- सेकेंडरी में जल्दी जाँच और इलाज का शुरू करना, ताकि बीमारी बढ़े नहीं,
- टर्शीयरी में बीमारी होने पर उसका इलाज सही से करना और उसके कॉम्प्लिकेशन को अवॉयड करना होता है.
जाँच
प्रिवेंशन में भी दो छोटे जांच के द्वारा बीमारी है या नहीं इसे देखना होता है.
- यूरिन टेस्ट में देखना पड़ता है कि प्रोटीन लॉस हो रहा है या नहीं,क्योंकि नार्मल यूरिन टेस्ट में प्रोटीन का नहीं जाना सबसे अच्छा माना जाता है, ये कही भी कम खर्च में किया जा सकता है.
- खून की जांच के द्वारा क्रिएटिनिन के स्तर को देखना. ये दोनों ही टेस्ट किसी भी व्यक्ति की किडनी की सुरक्षा के लिए करना काफी होता है, इसके अलावा शुगर और ब्लड प्रेशर की भी जांच करना आवश्यक होता है. ये स्क्रीनिंग हर व्यक्ति की नियमित स्वास्थ्य सम्बन्धी जांच में शामिल होना आज बहुत जरुरी हो चुका है. इससे किडनी की इलाज और इसकी रोकथाम काफी हद तक संभव हो सकेगा.
डॉ. असीम का आज की लाइफस्टाइल को देखते हुए कहते है कि कई बार हमारे देश में लोग हाई ब्लड प्रेशर और शुगर के साथ काम काज करते रहते है और उन्हें किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं होती, ऐसे में अधिकतर किडनी रोगी मेरे पास तब आते है जब उनकी किडनी पूरी तरह से फेल हो जाती है और ऐसे मरीज का इलाज मुश्किल हो जाता है. इसलिए किसी भी प्रकार के लक्षण होते ही तुरंत जांच करवाएं. किसी भी प्रकार की सिरदर्द में केवल दर्दनिवारक दवा न लेकर अपने ब्लड प्रेशर की जांच अवश्य करवाएं. इसके अलावा जिम में जाने वाले यूथ को भी ये जानने की जरुरत है कि जल्दी अपनी बॉडी या सिक्स पैक बनाने की होड़ में बहुत अधिक प्रोटीन सप्लिमेंट और स्टेरॉयड सप्लीमेंट लेने से उसका असर किडनी पर काफी पड़ता है, उन्हें एक्युट किडनी इंज्यूरी होने का खतरा रहता है.
ध्यान देने योग्य बातें,
- हर इंसान को नियमित व्यायाम करना जरुरी,
- पेशाब को कभी रोके नहीं, बार-बार पिशाब रोकने से यूरिन ब्लाडर की इलास्टिसिटी चली जाती है जिसका असर किडनी पर पड़ने लगता है,
- हेल्दी और संतुलित भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, ताजे फल, सब्जी आदि अवश्य शामिल करें.
आगे डॉ. कहते है कि आर्टिफीसियल किडनी यानि बायो इम्प्लांटेबल किडनी पर रिसर्च अभी चल रहा है. इसे रोगी को अभी ऑफर नहीं किया जा रहा है, ज्योंही इसकी सारी ट्रायल्स प्रक्रिया पूरी होगी, इसका प्रयोग किया जायेगा और ये किडनी के मरीजों के लिए अच्छा आप्शन है.
किडनी रिजेक्शन की क्या है खास वजह
किडनी सूट न करने की ख़ास वजह कई है. किडनी दो प्रकार से ट्रांस्पलांट की जाती है.
- लाइव रिलेटेड जिसमें परिवार या एक्सटेंडेड फॅमिली से किडनी लिया जाता है,
- केडेवेरिक किडनी ट्रांसप्लांट, जो ब्रेन डेड के बाद डोनेशन मिलने के बाद किया जाता है.
लाइव रिलेटेड ट्रांसप्लांट में किडनी देने वाले की कई सघन टेस्ट किये जाते है, जिसमें डोनर की फिजिकल फिटनेस और किडनी लेने वाले की मैचिंग को देखते है और उसके आधार पर किडनी दी जाती है, क्योंकि किडनी देने के बाद डोनर को तकलीफ नहीं होनी चाहिए. इसके नियम बहुत कठिन है और सबकुछ करने के बाद ही ट्रांसप्लांट किया जाता है. इसके बावजूद भी कई बार रिजेक्शन हो सकता है, क्योंकि कई दूसरे भी कारक होते है, जिसकी वजह से किडनी मेल नहीं खा पाती. इसकी वजह भी दो होते है, रिजेक्शन और इन्फेक्शन जो यहाँ बहुत अधिक होता है. इसके लिए नियमित देखभाल और कई सावधानियां बतानी पड़ती है, कई दवाएं जीवन पर्यंत लेना पड़ता है. डोज कम होता जाता है, पर लेना अवश्य पड़ता है. इसमें दिए जाने वाले स्टीरोइड्स की मात्रा को लगातार मोनिटर किया जाता है. इतना ही नहीं जरुरत पड़ने पर इसे दिए बिना भी ट्रांसप्लांट किया जाता है. इसकी खुराक रोगी की स्वास्थ्य और उम्र पर निर्भर करता है.
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किडनी ट्रांसप्लांट होने के बाद सही तरह से उसकी देखभाल करने पर किडनी की 90 प्रतिशत से अधिक सरवाईवल के चांस रहती है. डोनर की किडनी जितना फिट होगी, उतना ही उसका रिजल्ट अच्छा होगा. किडनी लेने वाले रोगी की हड्डी, हार्ट और शुगर लेवल आदि सब सही हो, तो उसे भी किडनी मिलने पर उसका सरवाईवल नार्मल इंसान की तरह ही रहता है.
क्रोनिक किडनी बीमारी बहुत जल्दी-जल्दी हमारे देश में फ़ैल रहा है और बहुत सारे लोगो को डायलिसिस की जरुरत आज लोगों को हो रही है, इससे लोगों को घबराने की जरुरत नहीं होती. अच्छा और सही समय पर सप्ताह में 3 दिन डायलिसिस किया जाय तो वे 20 साल तक भी इसके बाद जीवित रह सकते है. अच्छे सेंटर पर डायलिसिस करने पर अंजाम हमेशा अच्छा होता है.