अपने जीवन के 55 वसंत देख चुकी नीता आंटी आजकल अपने अकेलेपन से परेशान हैं. वजह बच्चे अपनी जौब के कारण उन से दूर दूसरे शहर में हैं. पति अपनी जौब की जिम्मेदारियों के कारण उन्हें प्रौपर समय नहीं दे पा रहे हैं. बेचारी नीता आंटी करें तो क्या करें.
अब इस उम्र में नीता आंटी कोई नई जौब तो नहीं कर सकतीं. खाली समय में उन्हें अकेलापन काटने को दौड़ता. यह स्थिति आज की इस व्यस्त जीवनशैली में कई गृहिणियों की हो गई है. शुरू में वे घर व बच्चों की जिम्मेदारियों को निभाने के कारण जौब नहीं कर पाती हैं. बाद में जिम्मदारियों के पूरा हो जाने के बाद अपने जीवन में खालीपन सा महसूस करती हैं.
अब वे अपने इस अकेलेपन को दूर करने में स्वयं को असहज पाती हैं. वे सम?ा नहीं पाती हैं कि आखिर करें तो क्या करें. बहुत कम महिलाएं अपनी जीवन के इस मोड़ पर एक नई शुरुआत के बारे में सोचती हैं. उन्हें लगता है कि अब तो जीवन की सांध्य बेला हो चली है, अब क्या किया जा सकता है. अब क्या करना कुछ नया कर के.
प्रकृति हर इंसान को किसी न किसी हुनर के साथ इस दुनिया में भेजती है. आवश्यकता बस अपने उस हुनर को पहचानने की होती है. हमारे आसपास ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे. हमें उन से प्रेरणा लेने की आवश्यकता भर होती है. इस बात को अकसर सत्य कर दिखाया कुमारी दीपशिखा ने. वे एक गृहिणी होने के साथसाथ पिछले 10 वर्षों से अपना खुद का सिलाई संस्थान भी चला रही हैं. वे अपने घर के एक कमरे में युवतियों व महिलाओं को सिलाई का काम सिखाती हैं. इस से उन्हें बेहद खुशी मिलती है. उन का कहना है कि हम महिलाएं अपना सारा जीवन घर को संवारने में लगा देते हैं. अपना ध्यान ही नहीं रहता. जबकि हमें भी अपने शौक व हुनर को सामने लाना चाहिए. वैसे भी आज जमाना आत्मनिर्भरता का है.