लेख- निरंजन धुलेकर
घर में घुसते ही श्रीमतीजी, जो रोज हाथ से ब्रीफकेस ले कर मुसकराती थीं आज मुंह घुमा कर अंदर चली गईं. मैं समझ गया कि आज श्रीमतीजी नाराज हैं. किस बात पर, जानने के लिए मुझे मेहनत करनी पड़ेगी.
इन से पूछा, ‘‘क्या बनाऊं खाने में?’’ जवाब में बिना बोले अखबार पटक कर उठ कर चले गए. फौरन समझ गई कि सवेरे की नाराजगी गई नहीं है अब तक.
मांजी से पूछा, ‘‘कुछ लाना है बाजार से?’’ और वे फौरन अनसुना करते हुए कुछ गुनगुनाने लगीं. मैं समझ गई कि आज माताश्री का मूड खराब है.
बेटा स्कूल से लौटा और बिना कुछ बोले बैग पटक कर अपने कमरे में चला गया. इस का मतलब आज टिफिन का खाना पसंद नहीं आया छोटे नवाब को.
भीड़ में राकेश ने मुझे देखा तो जरूर पर अनदेखा करते हुए निकल गया. आज उसे मेरे पैसे जो लौटाने थे.
सुरेश अपनी बीवी के साथ रैस्टोरैंट में बैठा दिखा, हलके से मुसकरा कर बातों में व्यस्त हो गया. मैं समझ गया कि डिस्टर्ब न करूं इसी में खैरियत है.
हमेशा फौर्मल से मिलने वाले हरजीत ने मुझे देखा और गले ही लगा लिया. समझ गया कि आज कुछ मतलब है इस का. आप जोड़ते चलिए, ये है हावभाव की भाषा यानी बौडी लैंग्वेज.
आप ने अकसर महसूस किया होगा कि कुछ लोग आप को देख कर नजरें फेर लेते हैं, गरदन घुमा लेते हैं या आप
के ऊपर से निगाहें इस तरह फेर लेंगे कि आप को एहसास हो जाए कि उन्होंने इग्नोर कर दिया.
आप ने यह भी देखा होगा कि कुछ लोगों से नजरें मिलते ही दोनों के पैर एकदूसरे की तरफ बढ़ने लगते हैं. हाथ हाय की मुद्रा में ऊपर उठ जाते हैं और होंठों पर मुसकान भी आ जाती है.