लेखक- डा. अर्जनिबी युसुफ शेख
कमरे से धड़ाम से प्लेट फेंकने की आवाज आई. बैठकरूम में टीवी देख रहे भाईबहनों के बीच से उठ कर आसिम आवाज की दिशा में कमरे में चला गया. आसिम के कमरे में जाते ही उस की बीवी रजिया ने फटाक से दरवाजा बंद कर दिया. यह आसिम की शादी का दूसरा ही दिन था.
आसिम की बीवी रजिया देखने में बड़ी खूबसूरत थी. उस की खूबसूरती और बातों पर फिदा हो कर ही आसिम ने उस से शादी के लिए हां भर दी थी. वैसे वह आसिम की भाभी की बहन की बेटी थी. बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हुई. घर में नई भाभी के आ जाने से आसिम के भाई और आसिम के मामू के बच्चे यानी मुमेरे भाईबहन भी बहुत खुश थे.
आसिम के घर में सगे और ममेरे भाईबहनों के बीच कोई भेद नहीं था. एक बाड़े में भाईबहन के अलगअलग घर थे परंतु साथ ऐसे रहते थे जैसे सब एक ही घर में रहते हों.
सब साथ खाना खाते, साथ खेलते, साथ मेले में जाते थे. फूप्पी भाई के बच्चों को भी अपने बच्चों की तरह संभाला करती और भाभी भी ननद के बच्चों को अपने बच्चों जैसा ही प्यार करती. वास्तव में बच्चों ने भेदभाव देखा ही नहीं था. इसलिए उन्हें यह कभी एहसास हुआ ही नहीं
कि वे सगे भाईबहन नहीं बल्कि मामूफूप्पी के बच्चे हैं.
अगले दिन शाम के समय जब फिर सब भाईबहन टीवी देखने बैठे तो आसिम कमरे में ही रहा. वह सब के बीच टीवी देखने नहीं आया. इस के अगले दिन फिर सब एकत्रित अपनी पसंद का सीरियल देखने साथ बैठे ही थे कि आसिम की बीवी दनदनाती आई और रिमोट से अपनी पसंद की मूवी लगा कर देखने बैठ गई.