कोरोना का कहर सिर्फ उन लोगों तक सीमित नहीं है जो इसके संक्रमण से काल कवलित हो गये हैं या जिनकी अच्छी खासी नौकरियां इसके संक्रमण के बाद छूट गयीं. कोरोना से वे लोग भी प्रभावित होंगे, जिन पर इसके मौजूदा संक्रमण का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. सिर्फ आज नहीं आने वाले अगले दसियों सालों तक कॅरियर के मामले में कोरोना का प्रभाव देखा जायेगा.
ऐसा नहीं है कि अब कभी वे दिन नहीं आएंगे, जब कोरोना के खौफ से दुनिया मुक्त नहीं होगी. लेकिन शायद कामकाज के ऐसे दिन पूरी तरह से लौटकर कभी न आएं, जैसे दुनिया कोरोना संक्रमण के पहले थे. दुनिया के किसी भी देश ने कभी इतने बड़े पैमाने पर लाॅकडाउन नहीं किया, जितने बड़े लॉकडाउन कोरोना के चलते दुनिया के अलग अलग देशों ने देखे और झेले हैं. कोरोना ने पारंपरिक दुनिया को अपने गुरिल्ला आक्रमण से इस कदर झकझोर दिया है कि दुनिया का कोई भी देश उसका मुकाबला नहीं कर सका, चाहे वह अमरीका जैसा बहुत ताकतवर देश ही क्यों न हो?
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अब उसके इस हमले का असर आने वाले दिनों में कुछ ऐसी नौकरियों के रूप में सामने आयेगा, जो नौकरियां ऐसे अप्रत्याशित हमलों से मुकाबले के लिए ही डिजाइन की जाएंगी. पश्चिम की दुनिया ने कोरोना के चलते पैदा हुए अप्रत्याशित संकट को ‘ब्लैक स्वान’ की संज्ञा दी है. जो उस परिस्थिति को कहते हैं, जिससे प्रभावित होने वाला व्यक्ति पूरी तरह से अपरिचित होता है. यहां तक कि उसने इसकी दूर दूर तक कल्पना भी नहीं की होती. ऐसे में दुनिया भविष्य की ऐसी ही ब्लैक स्वान गतिविधियों से तैयार रहने के लिए हर महत्वपूर्ण क्षेत्र में ‘क्विक रिस्पोंस’ टीमें गठित करेगी. दुनियाभर की सरकारें और प्रशासनिक संस्थान ऐसी टीमों को डिजाइन करने में लग गई हैं. ये क्विक रिस्पोंस टीमें भविष्य में कोरोना जैसी ही किसी और परिस्थिति के पैदा होने पर सक्रिय होंगी और दुनिया को इस तरह से अपंग नहीं होने देंगी, जिस तरह से दुनिया कोरोना संक्रमण के चलते हुई है.
कोरोना से सबक लेते हुए अब कई क्षेत्रों की मसलन बैंकिंग (वित्त), एनर्जी (खास तौरपर आणविक एनर्जी), यातायात (विशेषकर हवाई यातायात), शिक्षा (विशेषकर प्रतियोगी और डिग्री परीक्षा) तथा मेडिकल और खानपान से संबंधित ऐसी एक्सपर्ट टीमें या इन क्षेत्रों में एक छोटा विशेष प्रभाग खोला जायेगा, जो ऐसी किसी भी आपदा के समय सक्रिय होगा, जिससे दुनिया का सामान्य कारोबार अस्त व्यस्त नहीं होगा. जिस तरह से तमाम सेनाओं और पैरामिलिट्री फोर्सेस के बाद भी स्पेशल कमांडोज की एक छोटी और त्वरित टुकड़ी होती है, जो सबसे खतरनाक टारगेट को अप्रत्याशित सफाई से सम्पन्न करती है. भविष्य में कोरोना जैसे भौंचक कर देने वाले किसी संकट से निपटने के लिए ऐसी टुकड़ियां बनायी जाएंगी. दूसरे शब्दों में हर क्षेत्र में कमांडोज टुकड़ियां बनेंगी.
कोरोना के बाद जैसा कि अब तक हम सब जान गये हैं पूरी दुनिया में तकरीबन 40 फीसदी से ज्यादा दफ्तरी कर्मचारियों को दफ्तर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ना पड़ेंगा, उन्हें वर्क फ्रौम होम या फ्रीलांस के बतौर काम करना होगा. क्योंकि हर कोई वर्क फ्रौम होम नहीं कर सकता, हर काम घर से नहीं किया जा सकता. जो काम घर से संभव नहीं होंगे, वे काम आमतौर पर फ्रीलांसरों के पास चले जाएंगे या ऐसी छोटी यूनिटों के पास जो बड़ी कंपनियों के लिए ठेके पर काम करेंगी. लब्बोलुआब यह है कि कोरोना के बाद पूरी दुनिया में जिस तरह से सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी हो गई है, उसके कारण औफिस चलाना अब पहले से कहीं ज्यादा महंगा हो गया है. नतीजतन बड़े पैमाने पर मौजूदा कर्मचारियों को घर से काम करने की हिदायत दी जायेंगी. जो लोग इसके लिए तैयार नहीं होंगे, उन्हें अगर बहुत जरूरी नहीं हुआ तो हिसाब कर लेने के लिए कहा जाएगा. फिर वो अपने निजी तौरपर चाहे अपनी कंपनी के लिए या दूसरी कंपनी के लिए काम करेंगे.
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कोरोना के मौजूदा कुरूप चेहरे को देखकर न सिर्फ आम लोग बल्कि पारंपरिक जीवन व्यवस्था भी खौफजदा हो गई है. इसलिए खाने पीने से लेकर मिलने जुलने और मनोरंजन की गतिविधियां तक सब उलट पुलट होने की तैयारी में हैं. कोरोना का यह कहर देखने के बाद लंबे समय तक भारत ही नहीं इटली, स्पेन और फ्रांस के उन रेस्त्रांज की भी सांसें नहीं लौटेंगी, जहां कोरोना के पहले तक भारी भीड़ हुआ करती थी और अपनी इस भीड़ को ये रेस्त्रां अपनी खूबी के रूप में भुनाया करते थे. ऐसे रेस्टोरेंट के मालिक यह कहते नहीं थकते थे कि उनके रेस्त्रांओं में तिल रखने तक की जगह नहीं होती. भारत में तो इसके खास अनुभव है. ऐसा कोई मुहल्ला नहीं होगा, जहां कम से कम एक खानेपीने का ऐसा प्वाइंट न हो, जहां बाकी जगहों के मुकाबले भीड़ का आलम देखा जाता था. अब ये भीड़ हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो गई कहानी हो जायेगी.
कहने का मतलब यह है कि कोरोना जाने के बाद भी होटल और खास तौरपर रेस्टोरेंट इंडस्ट्री दोबारा से उस शेप में नहीं लौटेगी, जहां लोग एक के ऊपर एक बैठकर खाते पीते थे. अब टेक अवे डिलीवरी रेस्त्रांओं का मुख्य तरीका बन जायेगा. अब बहुत नामी गिरामी रेस्त्रां ही, जिनके पास बहुत स्पेस होगा, लोगों को बैठा के खिला सकते हैं. हौस्पिटैलिटी या टूरिज्म और इसके कई रूप भी इस कोरोना संकट के बाद पहले जैसे नहीं रहेंगे. वैसे तो पर्यटन उद्योग के दावे हैं कि अगले पांच सालों तक भी 2019 के स्तर का पर्यटन दुनिया में नहीं लौटेगा. लेकिन जो लौटेगा भी वह वैसा नहीं होगा, जैसा वह कोरोना के पहले था. कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि कोरोना से सिर्फ आज ही प्रभावित नहीं है, इसका बड़ा और स्थायी प्रभाव भविष्य के कामकाज में दिखेगा.