प्राचीनकाल में पत्थरों, सीपियों, हाथीदांत, तांबे व अन्य धातुओं से बने भारीभरकम आभूषणों को महिलाएं पहनती थीं. लेकिन आज भी आभूषणों पर रूढिवादी परंपराओं और अंधविश्वासों की मुहर लगी है. आजकल ऐडवर्टाइजिंग, मौडलिंग, ऐक्टिंग जैसे कैरियर में शृंगार व आभूषणों को प्राथमिकता दी जाती है. वैसे भी आज की हर नारी खूबसूरत व स्मार्ट दिखना चाहती है. उसे और आकर्षक बनाने के लिए शृंगार व आभूषणों की खास जरूरत पड़ती है. उसे मांगटीका, नथ, झुमके, मंगलसूत्र, बाजूबंद, कमरबंद, चूडि़यां, कंगन, पायल यानी माथे से ले कर पैरों तक आभूषण इसलिए पहनाए जाते हैं ताकि वह और आकर्षक लगे.
आभूषणों को खासकर सुहागचिह्नों को निरर्थक अंधविश्वासों और झूठी मान्यताओं से जोड़ दिया गया है. यदि कोई स्त्री शृंगार करती है, आभूषण पहनती है, तो सिर्फ अपने रूपसौंदर्य को और आकर्षक बनाने के लिए. आभूषण नारी की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं. वैवाहिक जीवन में पतिपत्नी के बीच प्यार के अटूट रिश्ते को मजबूत बनाने में आभूषण अहम भूमिका निभाते हैं. किसी महिला की आर्थिक स्थिति कमजोर हो, तीजत्योहारों पर रूढिवादी परंपराओं व कुरीतियों को निभाने के लिए उस के पास आभूषण न हों,? तो वह क्या करेगी? रूढिवादी परंपराओं को निभाने के लिए कहां से लाएगी आभूषण?
आभूषण सिर्फ और सिर्फ नारी के सौंदर्य का ही अटूट हिस्सा हैं. परंपराओं व झूठी मान्यताओं से इन का दूरदूर तक कोई सरोकार नहीं है. हम ने इस विषय में समाज की कुछ खास महिलाओं से मुलाकात कर उन के विचार जाने. शबाना सिद्दीकी डीएवी स्कूल में काउंसलर हैं और समाज सुधार के लिए प्रयासरत हैं. आइए, जानते हैं उन के विचार: