मसाबा गुप्ता देश के युवा और होनहार फैशन डिजाइनरों की लिस्ट में शुमार हो चुकी हैं. कभी टैनिस खिलाड़ी, कभी डांसर तो कभी संगीतकार बनने की मंशा रखने वाली मसाबा को आखिर फैशन डिजाइनिंग से पहचान मिली. ऐक्ट्रैस नीना गुप्ता और वैस्टइंडीज के क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स की बेटी मसाबा को 2009 में लैक्मे फैशन वीक में इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट औफ फैशन डिजाइनिंग की ओर से मोस्ट प्रौमिसिंग डिजाइनर का खिताब मिला, जिस ने मसाबा के लिए फैशन डिजाइनिंग में कामयाबी के दरवाजे खोल दिए. इंडियन और वैस्टर्न फैशन का फ्यूजन पेश करने में माहिर मसाबा खुद सादगी से रहना पसंद करती हैं.
पिछले दिनों एक मशहूर ब्रैंड के शोरूम के उद्घाटन के मौके पर पटना पहुंचीं मसाबा ने बातचीत के दौरान बताया कि मसाबा का मतलब प्रिंसेज होता है और यह नाम उन के पिता विवियन ने दिया था. मुंबई में जन्मी मसाबा ने पढ़ाई के बाद कैरियर की शुरुआत भी वहीं से की. डिजाइनिंग कैरियर के बारे में वे कहती हैं कि जब वे 8 साल की थीं तो टैनिस खेलने का शौक था. उस के बाद डांस में रुचि बढ़ी और श्यामक डाबर गु्रप जौइन कर लिया. उस में मन नहीं रमा तो लंदन जा कर क्लासिकल म्यूजिक सीखना शुरू किया और आखिरकार फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र को अपनाया.
डिजाइनर का अवार्ड
मसाबा बताती हैं कि शुरुआत में उन्होंने 8 ड्रैस पीस बनाए और सभी को लैक्मे जेन नेक्स-2009 के लिए भेज दिया. अच्छी बात यह रही कि सभी पीसों को चुन लिया गया. फैशन की दुनिया में 3 महीने गुजारने के बाद ही मोस्ट प्रौमिसिंग डिजाइनर का अवार्ड मिल गया. इस से हौसला बढ़ा और जीजान से फैशन डिजाइनर की फील्ड में रम गईं. उस के बाद अपना ब्रैंड ‘मसाबा’ लौंच किया.
क्या मातापिता की तरफ से कैरियर को ले कर कोई दबाव था? प्रश्न के जवाब में मसाबा कहती हैं कि किसी की तरफ से कोई प्रैशर नहीं था. जो मन में आया करती गई. स्टेट लैवल पर टैनिस खेलने के बाद डांस में कैरियर बनाने की सोची. उस से मोहभंग हुआ तो क्लासिकल म्यूजिक सीखने लंदन चली गई. भारत लौटने के बाद म्यूजिक से लगाव खत्म हो गया. फिर फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर लिया.
अपने कलैक्शन की खासीयत के बारे में वे कहती हैं कि उन में इंडियन और मौडर्न फैशन का संगम है. वे साडि़यों के कई कलैक्शन लौंच कर चुकी हैं. उन्होंने हमेशा भारतीय महिलाओं को ध्यान में रख कर ही कलैक्शन तैयार किया है. साड़ी उन का मनपसंद पहनावा है.
आम लोगों की फैशन की समझ और ट्रैंड के बारे में मसाबा की राय है कि आम लोग फैशन को ले कर काफी कन्फ्यूज होते हैं. हीरोइीरोइनों के पहनावे को ही फैशन समझ कर आंख मूंद कर उस की नकल करने की कोशिश करते हैं. इस से कई बार वे हंसी का पात्र बन जाते हैं.
कोई फैशन पुराना नहीं
मसाबा कहती हैं कि मोटे, दुबले और छोटे कद के लोग पहनावे को ले कर बहुत परेशान रहते हैं. कम हाइट के लोगों को हौरिजैंटल टाइप की ड्रैस पहननी चाहिए. वहीं ज्यादा मोटे लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे डार्क और ज्यादा प्रिंटेड कलर न पहनें. इस से उन का शरीर और ज्यादा हाईलाइट हो जाता है. मोटे लोगों को हैवी कपड़े पहनने से भी परहेज करना चाहिए. दुबलेपतले लोगों को ढीले कपड़े पहनने के बजाय स्मार्ट फिटिंग वाली ड्रैस पहननी चाहिए.
फैशन शोज में आमतौर पर जिस तरह की ड्रैसेज दिखाई जाती हैं, वे आम जिंदगी में नहीं पहनी जाती हैं? सवाल के सवाल पर मसाबा कहती हैं कि फैशन चैनलों और फैशन शोज पर दिखाए जाने वाले कपड़ों को सच में आम जिंदगी में नहीं पहना जा सकता है. दरअसल, फैशन आर्ट को नया लुक देने के लिए प्रयोग होते रहते हैं. फैशन डिजाइनर इसी आर्ट को ध्यान में रख कर ड्रैसेज को कमर्शियली रैंप पर उतारते हैं और यह किसी न किसी थीम पर आधारित होता है. अकसर फैशन शोज के बाद कुछ ऐसे कलैक्शन को भी दिखाया जाता है जो आम लोगों के लिए भी होता है.
फैशन के चलन और उस में बदलाव आने के बारे में मसाबा का मानना है कि कोई भी फैशन कभी पुराना नहीं होता है. कुछ समय के बाद वह दोबारा आता है. मिसाल के तौर पर कुछ साल पहले बैलबौटम को आउट औफ फैशन करार दे दिया गया था, पर वह फिर से फैशन में आ रहा है. फैशन एक सर्किल की तरह होता है, जो तय समय के बाद वापसी करता है. अब 80 और 90 के दशक का रैट्रो फैशन दोबारा फैशन के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है.