क्या आप प्रतिदिन खुद के नहाने, घर में झाड़ूपोंछा करने और बरतनों व कपड़ों की सफाई को ही घर का रोगाणुरहित होना मानती हैं? अगर हां तो आप गलत हैं. कभी आप ने सोचा है कि ऐसा करने के बावजूद आप या घर के दूसरे सदस्य बारबार बीमार क्यों पड़ते हैं? उदाहरण के लिए आप नहाने की ही बात करें तो क्या जिस बालटी व मग का प्रयोग आप नहाने के लिए करती हैं या शावर से नहाती हैं उसे प्रतिदिन ऐंटीसेप्टिक लोशन से साफ किया जाता है? यहां भी बैक्टीरिया पनपते हैं.

यद्यपि बढ़ते प्रदूषण और बदलते लाइफस्टाइल के चलते घर को जर्म फ्री रखना किसी चुनौती से कम नहीं है और फिर वातावरण को पूरी तरह से नहीं बदला जा सकता पर फिर भी घर व घर के सदस्यों का थोड़ीबहुत सूझबूझ व थोड़ा सा ज्यादा समय लगा कर बचाव तो किया ही जा सकता है. रोगाणुरहित बनना है तो शारीरिक हाइजीन, पर्सनल हाइजीन व घर के हाइजीन के बारे में जानना ही होगा.

1. घर को बनाएं जर्म फ्री

घर की बात करें तो लिविंगरूम या ड्राइंगरूम, बैडरूम, किचन और बाथरूम का जिक्र अनिवार्य है. यहां पर ही पनपते हैं जर्म्स और इन के संपर्क में आने से हम हो जाते हैं बीमार.

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2. लिविंगरूम/ड्राइंगरूम

इस जगह का प्रयोग घर के सदस्यों के द्वारा सर्वाधिक किया जाता है. यहां की खिड़कियां, दरवाजे अकसर लोग बंद रखते हैं ताकि धूल अंदर न आए. पर ऐसा होता नहीं है. कुशन कवर, सोफे की गद्दियों, सैंटर टेबल, डाइनिंग टेबल कवर पर धूल जम ही जाती है, जो हमें दिखाई नहीं देती. कालीन तो सब से अधिक धूल अब्जौर्ब करता है. इसी तरह परदों पर भी धूल इकट्ठा होती रहती है. आप भले ही कितनी डस्टिंग करें धूल पुन: उड़ कर आ जाएगी और इसी से उपजते हैं बैक्टीरिया. पंखे, स्विचबोर्ड आदि पर भी धूल की परत साफ देखी जा सकती है.

रोकथाम

सब से अधिक जरूरी यह है कि ड्राइंगरूम की खिड़कियों को कुछ देर खुला रखें ताकि ताजा हवा का सर्कुलेशन अच्छी तरह हो.

वैज्ञानिकों का कहना है कि कमरे में इनडोर प्लांट्स रखें, जो वायु क्वालिटी को बढ़ाते हैं और टौक्सिन को अब्जार्ब कर लेते हैं. इनडोर प्लांट्स में मनी प्लांट सब से अधिक उपयुक्त हैं.

कारपेट बिछाया है तो उसे सप्ताह में एक बार अवश्य वैक्यूम क्लीनर से साफ करें व 1 या 2 महीने बाद ड्राईक्लीन करवाएं. या फिर 1 महीने बाद धूप अवश्य दिखाएं.

कुशन कवर, टेबल कवर आदि को 10 दिनों बाद अवश्य धोएं.

परदों को हर महीने धोएं और अच्छा हो यदि सूती परदों का इस्तेमाल करें.

लकड़ी के फर्नीचर को प्रतिदिन पहले गीले कपड़े से और फिर सूखे से पोछें. हर चौथे महीने वार्निश करवाएं.

सजावटी सामान को भी प्रतिदिन ऐंटीसैप्टिक लोशन लगा कर कपड़े से पोंछें.

एअरकंडीशन की जाली को सप्ताह में 1 बार अवश्य धोएं. पंखों की सफाई सप्ताह में 1 बार जरूर करें.

फर्श की रोज सफाई करें. इस के लिए पानी में थोड़ा सा डिसइन्फैक्टैंट क्लीनर अवश्य डालें.

मेनडोर पर धूलमिट्टी सोखने वाला डोरमैट लगाएं. इस से घर में बाहर से आने वाली डस्ट से बचा जा सकता है.

सप्ताह में कम से कम 2 बार घर की खिड़कियों को अच्छी तरह साफ करें. अंदर वाले हिस्सों को लंबाई में व बाहर वालों को चौड़ाई में साफ करें. ऐसा करने पर अगर दागधब्बा न छूटा हो तो यह पता चल जाता है.

स्विचबोर्ड, खिड़कियों के हैंडल आदि को डिसइन्फैक्टैंट कपड़े से प्रतिदिन साफ करें, क्योंकि दिन में कितनी ही बार हमारे हाथ इन चीजों के संपर्क में आते हैं. अत: इन का साफसुथरा रहना बहुत जरूरी है.

3. बैडरूम

बैडरूम में धूल के कणों से उपजे कीटाणु गद्दों और तकियों में अपनी जगह बनाते हैं. इन्हीं में ये अपना भोजन लेते हैं. डा. फिलिप टियरनो ने अपनी पुस्तक ‘द सीक्रेट लाइफ औफ जर्म्स’ में लिखा है कि बिस्तर पर पसीना और वीर्य के अलावा कुछ और पदार्थ भी गिरते रहते हैं, जिन से बैक्टीरिया पनपते हैं.

दिल्ली के अपोलो अस्पताल ईएनटी स्पैशलिस्ट डा. कविता नागपाल का भी यह मानना है कि त्वचा संबंधी रोगों व ऐलर्जी होने का मुख्य कारण बैक्टीरिया ही है.

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रोकथाम

तकियों और गद्दों पर कवर चढ़ाएं. हर महीने गद्दों को पलट दें. महीने में 1 बार धूप दिखाएं.

तकियों व गद्दों के कवरों को सप्ताह में 1 बार गरम पानी से धोएं ताकि कीटाणु नष्ट हो सकें.

ध्यान रहे, एक तकिए की उम्र 3 से 5 साल होती है. इंटरनैशनल कंज्यूमर हाइजीन सर्वे के अनुसार 5 साल में 1 तकिए में 10% धूल जमा हो जाती है. अत: 5 साल बाद उसे जरूर बदल देना चाहिए.

पिलो कवर, चादर व बैड कवर को हर हफ्ते बदलें.

ओढ़ने वाली चादरों को भी सप्ताह में 1 बार धोएं. कंबल को भी सप्ताह में 1 बार वैक्यूम क्लीनर से साफ करें और 1 महीने बाद ड्राइक्लीन करवाएं अथवा उस पर भी कवर चढ़ा कर रखें और उसे नियमित धोएं.

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