नोटबंदी के ऐलान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि जनता उन्हें सिर्फ 50 दिन दे दे, उस के बाद उस की सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी. लेकिन 50 दिनों की समयसीमा खत्म होने के बाद दिन और महीने बीते, देश और जनता को महसूस हुआ कि नकली करैंसी और कालेधन के खिलाफ अभियान के तौर पर कोई तैयारी किए बिना की गई नोटबंदी से सिर्फ उस की परेशानी ही बढ़ी.

जिस बैंकिंग प्रणाली के बल पर ब्लैकमनी के खात्मे का अंदाजा लगाया गया था, वह न केवल मुंगेरीलाल के हसीन सपने जैसा साबित हुई, बल्कि नकली करैंसी की रोकथाम का मंसूबा भी धरा रह गया. इस की तसदीक 24 जनवरी को भारतीय रिजर्व बैंक ने यह स्वीकारते हुए की कि नोटबंदी के 11 हफ्ते बाद भी उस के पास इस का कोई आंकड़ा नहीं है कि नकली नोटों का क्या हुआ.

नोटबंदी का एक उलटा असर यह जरूर हुआ कि बैंक में बैठे बाबुओं ने इसे अपनी अवैध कमाई का जरिया बना लिया. बैंकिंग के भ्रष्टाचार ने एक तरफ सरकार को चूना लगा दिया, तो दूसरी तरफ जनता को लाइनों में धक्के खाने को मजबूर कर दिया. इस दौरान कई ऐसी घटनाएं सामने आईं जिन के चलते बैंकों पर दशकों से जनता का कायम भरोसा टूट कर बिखर गया.

नोटबंदी के जो दुखदर्द थे, वे तो अपनी जगह थे ही, पर धीरेधीरे यह भी साफ हुआ कि बिना विचारे लिए गए इस फैसले की कितनी बड़ी कीमत देश व उस की अर्थव्यवस्था को चुकानी पड़ी है. मोदी सरकार ने ऐलानिया अंदाज में कहा था कि नोटबंदी से देश को कई फायदे एकसाथ होने जा रहे हैं. आतंकवाद का पोषण करने वाली नकली करैंसी थमेगी और ब्लैकमनी बाहर आ जाएगी.

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