संस्कारधानी के नाम से प्रसिद्ध मध्य प्रदेश के महाकौशल इलाके के प्रमुख शहर जबलपुर में मिठाइयों की एक पुरानी और मशहूर दुकान चंद्रकला स्वीट्स है. सालों पहले चंद्रकला स्वीट्स एक छोटी सी दुकान हुआ करती थी पर धीरेधीरे यह बड़ी और आधुनिक हो गई. पिछले 10 वर्षों से इस दुकान का संचालन कपिल गोकलानी कर रहे हैं जिन्हें जमाजमाया पुश्तैनी व्यवसाय मिला था.
शुरुआत में तो कपिल अपने पिता की तरह सफलतापूर्वक दुकान संभालते रहे पर साल 2013 में उन्हें कारोबार बढ़ाने के लिए कुछ रुपयों की जरूरत पड़ी तो उन्होंने बजाय बैंकों से कर्ज लेने के सरल रास्ता यानी शौर्टकट चुना और परिचित कारोबारियों से ब्याज पर पैसा ले लिया. किसी भी शहर में कारोबारियों के बीच ब्याज पर लाखों का लेनदेन कतई हैरत की बात नहीं है. चंद्रकला स्वीट्स की साख और कारोबार देखते हुए कपिल के कारोबारी दोस्तों ने उसे जरूरत के मुताबिक पैसा दे दिया.
कपिल को सपने में भी अंदाजा नहीं था कि शहर के जिन करोड़पति दोस्तों को वह अपना हमदर्द समझ रहा है वे उस के कारोबार को ब्याज की शक्ल में दीमक बन कर चाट जाएंगे. जब पानी सिर से गुजरने लगा और कंगाली की नौबत आने लगी तो 8 अक्तूबर को कपिल ने हिम्मत जुटा कर जबलपुर के ओमती थाने में सूदखोरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई.
अपनी रिपोर्ट में कपिल ने लिखा कि मिक्की इलैक्ट्रौनिक्स के संचालक दीपक भाटिया के अलावा दूसरे नामी बिल्डर्स और कारोबारी संजय खत्री, इंद्रजीत सिंह कोहली, पराग ग्रोवर, सनी जग्गी और जेके जग्गी जबरन उसे धमका रहे हैं. कोरे स्टांप पेपरों पर उस से सिर्फ दस्तखत ही नहीं बल्कि उन्होंने कई कोरे चैक भी दस्तखत करवा कर अपने पास रख लिए थे. ये कथित आरोपी लगातार उसे धमकी दे रहे थे कि अगर वक्त पर ब्याज नहीं दिया तो वे लोग उस के पिता की जायदाद अपने नाम करा लेंगे.
जानकर हैरानी होती है कि 4 साल पहले लिए 50-60 लाख रुपयों के कर्ज पर ये सूदखोर कपिल से कोई 2 करोड़ रुपए ब्याज के एवज में वसूल चुके थे और इतना ही नहीं उन्होंने जबलपुर के अलगअलग इलाकों में स्थित कपिल के नाम की 4 दुकानें और आदर्श नगर स्थित एक मकान अपने नाम करवा लिया था.
ब्याज पर उधार लेने के बाद कुछ महीने तो कपिल ईमानदारी से किस्तें चुकाता रहा पर इस के बाद उसे समझ आया कि जल्दबाजी में उस ने बहुत महंगे ब्याज पर कर्ज ले लिया है. जितना यानी 8-10 लाख रुपए के करीब महीने में वह मिठाई की दुकान से कमाता है वह सब इन सूदखोरों की तिजोरियों में चला जाता है. इस पर भी मूल रकम ज्यों की त्यों बनी हुई थी, लेकिन कोरे चैक और स्टांप पर दस्तखत कर वह कानूनीतौर पर फंस चुका था. इन सूदखोरों के चंगुल में नैतिक रूप से तो वह उसी दिन फंस चुका था जिस दिन उस ने कारोबार बढ़ाने के लालच में बगैर सोचेसमझे लाखों रुपए ब्याज पर ले लिए थे.
कपिल के मुताबिक जब आरोपियों को लगने लगा कि ब्याज चुकाना भी उसे मुश्किल पड़ रहा है तो उन्होंने उसे पैसा कमाने का आसान रास्ता क्रिकेट पर सट्टा लगाने का सुझाव दिया. ब्याज के दलदल में धंसे और एक झटके में बहुत सा पैसा कमाने के लालच में आए कपिल को लगा कि अगर एक दांव भी सटीक बैठ गया तो एक बार में ही न केवल ब्याज चुकता हो जाएगा बल्कि मूल भी अदा हो जाएगा.
महंगा पड़ा लालच
यह लालच भी कपिल को महंगा पड़ा. सट्टे के लालच में इन्हीं सूदखोरों से उस ने जो 50 लाख रुपए लिए थे वे एक झटके में डूब गए. यह रकम तो और भी महंगे ब्याज पर दी गई थी.
अब कपिल पूरी तरह सूदखोरों के चंगुल में फंस चुका था. वे उसे जायदाद हड़पने के साथसाथ जान से मरवा देने की धमकी भी दे रहे थे. कपिल इन रसूखदार कारोबारियों की पहुंच और इन के कानून से भी लंबे हाथों से वाकिफ था इसलिए जितना बन पड़ा ब्याज देता रहा.
जब अति हो गई तो हिम्मत जुटाते वह रिपोर्ट लिखाने थाने पहुंचा. कपिल को फंसाने के लिए इन्हीं हमदर्दों ने कुछ दिन पहले ही ओमती थाने में उस के खिलाफ झूठी रिपोर्ट दर्ज करा दी थी जिस से वह और दबा रहे. हालांकि उस की शिकायत पर 2 आरोपी गिरफ्तार तो हुए, लेकिन जल्द ही कपिल की सांसे यह देख कर फूलने लगीं कि ये सूदखोर खुली हवा में घूम रहे हैं.
गिरफ्तारी के डर से बाकी आरोपी फरार हो गए थे लेकिन पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों को यह कहते छोड़ दिया कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक ऐसे मामलों में किसी भी आरोपी को गिरफ्तार करने के बजाय उसे नोटिस दे कर कोर्ट में हाजिर होने के लिए कहा जाता है. इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का ही पालन किया गया है.
अब प्रियअप्रिय कुछ भी हो लेकिन इस हाइप्रोफाइल मामले ने सूदखोरों की देशभर में जमीन में गहरे तक धंसी जड़ें दिखा दी हैं कि वे आज भी हैं. बस, सूदखोरों की पोशाक, हुलिया और लेनदेन का तरीका बदल गया है. जो रकम देना जानता है वह उसे वसूलने की कूवत भी रखता है. रही बात कानून की तो देश में ऐसा कोई कानून कभी नहीं बन पाया जो कैक्टस की तरह उगे सूदखोरों पर कोई अंकुश लगा पाए यानी जबतक कपिल गोकलानी जैसे जरूरतमंद और लालची लोग हैं तब तक ये सूदखोर भी वजूद में रहेंगे और ऐसी कई वजहें हैं जिन के चलते इन का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता.
यत्रतत्र सर्वत्र और वीभत्स
होशंगाबाद जिले का एक छोटा सा कस्बा है सोहागपुर जहां आएदिन कोई न कोई किसान, व्यापारी या छोटामोटा नौकरीपेशा आदमी खुदकुशी कर लेता है. आदिवासी बाहुल्य इस इलाके में सूदखोरों की तादाद सैकड़ों में है. ये सूदखोर चलअचल संपत्ति और मकान व जमीनजायदाद वगैरह गिरवी रख कर महंगे ब्याज पर जरूरतमंदों को पैसा देते हैं. इस कसबे में कई लोग कंगाली की कगार पर हैं. यहां के एक युवा समाजसेवी रतन उमरे की मानें तो सूदखोरी का लाइसैंस मध्य प्रदेश साहूकारी अधिनियम की धारा 1954 के तहत आसानी से मिल जाता है.
लेकिन गैर लाइसैंसधारी सूदखोरों की तादाद कहीं ज्यादा है. रतन बताते हैं कि हालांकि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितने लाइसैंस और कितने गैरलाइसैंसधारी सूदखोर हैं, क्योंकि इन की जांच कभी नहीं होती. रतन के मुताबिक सूदखोरी कइयों की रोजीरोटी का जरिया बन चुकी है. अगर वक्त पर ब्याज न मिले तो ये लोग गरीबों का रहना मुश्किल कर देते हैं. इस पर भी दिक्कत यह है कि इन के संबंध राजनेताओं और अफसरों से होते हैं, क्योंकि चुनाव के वक्त ये भारीभरकम चंदा राजनीतिक पार्टियों को देते हैं और अपने कर्जदारों पर मनचाही पार्टी या उम्मीदवार को वोट देने के लिए दबाव भी बनाते हैं.
पैसों की जरूरत हर किसी को पड़ती है. बीमारी में, पढ़ाई के लिए, शादीब्याह के लिए या फिर फसल के लिए. पर बड़ी दिक्कत अब यह दिखने लगी है कि लोग जुए, सट्टे, नशे व अय्याशी के लिए ब्याज पर कर्ज लेने लगे हैं.
लोग इन के जाल में फंसे रहे इस बाबत अब सूदखोर नएनए प्रपंच रचने लगे हैं. ओडिसा, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों के कोलमाइंस वाले इलाकों के मजदूरों और छोटे कर्मचारियों को जुए व शराब की लत लगाने में ये सूदखोर पीछे नहीं रहते.
इन से एक बार जिस ने पैसा ले लिया फिर वह कभी बगैर बिके या मरे इन के शिकंजे से नहीं निकल पाता. कई दफा तो मरने के बाद दूसरी पीढ़ी इन का कर्ज चुकाती रहती है. ‘मदर इंडिया’ फिल्म के एक किरदार सूदखोर लाला जिसे चरित्र अभिनेता कन्हैयालाल ने जीवंत किया था, को आज भी शिद्दत से याद किया जाता है. वजह, कई सुक्खी लाला आज भी मौजूद हैं.
सूदखोरों की कोई तयशुदा ब्याज दरें नहीं होतीं, बल्कि ये लेने वाले की जरूरत पर निर्भर करती है. आमतौर पर इन की ब्याज दर 10 से ले कर हैरतअंगेज तरीके से 40 फीसदी तक होती है वह भी वार्षिक नहीं बल्कि मासिक यानी अगर कोई जरूरतमंद किसी सूदखोर से 1 लाख रुपए लेता है तो लिखित या मौखिक करार के मुताबिक वह हर महीना 8 हजार से ले कर 40 हजार रुपए तक ब्याज देता है.
न देने पर दबंग सूदखोर कर्जदार की जमीनजायदाद हड़प लेते हैं. महिलाओं के गहने पोटली में बांध कर भर ले जाते हैं. और तो और बरतन तक भी नहीं छोड़ते. इन कामों के लिए खुद सीधे झगड़े में पड़ने के बजाय सूदखोर अब पगार पर गुंडे पालने लगे हैं. कपिल गोकलानी से तो ये ब्याज में मिठाई तक ले रहे थे. विलाशक अपना दिया पैसा वसूलना हर किसी का हक है पर अफसोस की बात अनापशनाप ब्याज की चट्टान है जिस के नीचे दब कर कोई बाहर नहीं आ पाता.
कुछ नहीं बिगड़ता इन का
शहरी इलाकों के सूदखोर कर्जदारों के एटीएम कोरी दस्तखत की हुई चैकबुक और जमीनजायदाद के असल कागज भी रख लेते हैं जिस से लेने वाला फंसा रहे. बड़ी रकम की ये लोग स्टांप पेपर लिखापढ़ी करवा लेते हैं यानी बचने का कोई मौका नहीं देते. अब से कुछ महीने पहले जबलपुर के ही जगदीश चौधरी नाम के शख्स की हत्या का शक सूदखोरों पर गया था, लेकिन इस से सूदखोर खत्म नहीं हो गए और न ही सूदखोरी खत्म हो गई, उलटे उन की दहशत और बढ़ गई.
मध्य प्रदेश में किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं के मद्देनजर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सूदखोरी कानून में बदलाव की बात कही थी, पर आज तक पुराना कानून चला आ रहा है जिस में सूदखोरों को अनापशनाप छूट मिली हुई है. साल 2014 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी मौजूदा कानून को बदलने की बात कही थी पर वहां भी कुछ नहीं बदला.
बीती 24 अक्तूबर को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीसामी को भी ऐसी घोषणा करना पड़ी थी कि कलैक्टर और पुलिस कमिश्नरों को निर्देश दिए गए हैं कि वे सूदखोरों के खिलाफ कार्यवाही करें.
पर बचना तो खुद पड़ेगा
जो सूदखोर सरकार चलाते हों और खुद के बचाव के लिए किसी न किसी राजनीतिक दल के कुछ न कुछ होते हों, उन्हें कोई रोक पाएगा ऐसा सोचने की कोई वजह नहीं. जरूरत तो इस बात की है कि लोग खुद इन से बच कर रहें.
सूदखोरी बैंकिंग व्यवस्था और कार्यप्रणाली को ठेंगा दिखाता उस से भी बड़ा सिस्टम है जिसे पुलिसिया प्रशासनिक और राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ रहता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री अरुण जेटली भले ही फ्लौप नोटबंदी और भस्मासुर बनती जीएसटी को आर्थिक क्रांति बताते गाल बजाते रहें पर हकीकत में ऐसे फैसलों का सूदखोरों पर कोई फर्क नहीं पड़ता जो आम लोगों की गाढ़ी कमाई को मुफ्त के भाव चाट रहे हैं.
जरूरत और उम्मीद कभी दिल्ली से इस आवाज के आने की है कि आज रात 12 बजे से सूदखोर और सूदखोरी खत्म, क्योंकि इन की वजह से हर साल लाखों लोग खासतौर से किसान बेमौत मरते हैं और करोड़ों लोगों को सुरसा के मुंह जैसा ब्याज चुकाना पड़ रहा है.
पर चूंकि ऐसा कुछ होगा नहीं इसलिए सूदखोरों के मकड़जाल से बचने का इकलौता रास्ता यही है कि इन से पैसा लिया ही न जाए. फिर भले ही कोई अस्पताल या घर में दम तोड़ दे, बेटी का विवाह न हो पाए या फिर बेटे की पढ़ाई के लिए फीस का इंतजाम न हो.
वह पैसा जिसे ले कर चुकाना जीतेजी मुमकिन न हो उसे न लेना ही बेहतर है. निश्चित रूप से यह सूदखोरी के सामने हथियार डालने जैसी बात है, क्योंकि कोई बैंक या सरकार आधी रात को सेलाइन की बोतल और अस्पताल की फीस के लिए कर्ज नहीं देते. मुसीबत के वक्त अपने सगे फोन उठाना बंद कर देते हैं और यारदोस्त कन्नी काटने लगते हैं.
इतना जरूर हर कोई कर सकता है कि जरूरत के वक्त के लिए बचत करे, लालच और शौर्टकट के पैसे से दूर रहे और जरूरत बड़ी हो तो बेहतर है कि बजाय सूदखोरों से कर्ज लेने के औनेपौने में गहने या जायदाद बेच दी जाए.
कपिल गोकलानी जैसा करोड़पति कारोबारी इसी गैरजरूरी जरूरत और लालच के चलते सूदखोरों के हत्थे चढ़ कर कंगाली की कगार पर खड़ा है उस से सबक तो सीखा ही जा सकता है.
ऐसे बचें
- सूदखोरों से ब्याज के बाबत स्पष्ट बात करें. ये लोग बात तो 10 फीसदी सालाना की करते हैं पर लिखापढ़ी वार्षिक के बजाय मासिक की करते हैं.
- पहले से टाइप की हुई लिखापढ़ी बगैर पढ़े और बिना सोचेसमझें दस्तखत न करें, यह कोई बैंक का छपा हुआ फार्म नहीं होता.
- कभी भी कोरे कागज या स्टांप पेपर पर दस्तखत न करें.
- नशा, जुआ, सट्टा और वेश्यावृत्ति से खुद को बचाएं.
- कोरे दस्तखत किए गए चैक तो हरगिज न दें. वजह, आजकल चैक बाउंस होने का कानून काफी सख्त हो गया है और बैंक को किसी ग्राहक की मजबूरी से कोई मतलब नहीं होता.
- गवाह अपने रखने की कोशिश करें.
- जमीन जायदाद या जेवरात गिरवी रखें तो उन का अनुमानित वर्तमान बाजार मूल्य जरूर दर्ज कराएं.
- अदा किए गए प्रत्येक भुगतान की रसीद अवश्य लें और ब्याज का भुगतान अकाउंट पेयी चैक से करें जिस से सनद रहे.
- अगर सूदखोर नाजायज ब्याज के लिए खुद या गुर्गों के जरिए डराए या धमकाए तो पुलिस के पास जाने में देर न करें. वक्त पर यानी पहली दफा ही यह ऐक्शन न लेने पर वह आप पर हावी होता चला जाता है.
- अपना एटीएम व उस का पासवर्ड किसी सूदखोर को कतई न दें और याद रखें कि ली गई रकम पर आप ब्याज देते हैं, उस लिहाज से सूदखोर आप पर कोई एहसान नहीं करता है. इसलिए उस से डरें नहीं न ही किसी किस्म का लिहाज करें.
- अगर सूदखोर जमीनजायदाद की नीलामी की धौंस दे तो भी न डरें. इस की शिकायत भी पुलिस और दूसरे अधिकारियों से करें.