इटहर गांव के रहने वाले किसान रामसूरत कई दिनों से किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने के लिए बैंक का चक्कर लगा रहे थे, लेकिन बैंक वालों द्वारा कोई न कोई कमी निकाल कर हर बार उन्हें लौटा दिया जाता था. रामसूरत ने थकहार कर किसान क्रेडिट कार्ड न बनवाने का फैसला लिया, जिस की वजह से उन के बोए गए गन्ने की फसल को समय से खाद व पानी न मिल पाया. इस वजह से गन्ने की फसल अच्छी नहीं हुई.
एक दिन रामसूरत की मुलाकात बैंक के एक दलाल से हुई, जिस ने रामसूरत को बिना झंझटों के ही किसान के्रडिट कार्ड बनवाने का तरीका बताया. बैंक दलाल के बताए तरीके के अनुसार रामसूरत ने बैंक वालों को रिश्वत दी और फिर उन का क्रेडिट कार्ड आसानी से बन गया.
इसी तरह किसान सुरेंद्र ने भैंस खरीदने के लिए बैंक से कर्ज लेने की अर्जी दी, लेकिन बैंक वालों ने उसे कोई कारण बताए बिना ही उस की अर्जी खारिज कर दी. बैंकों द्वारा किसानों को कर्ज न देने के लाखों बहाने बनाए जाते हैं. किसानों के लिए चलने वाली तमाम योजनाओं में बैंकों की महत्तवपूर्ण भूमिका होती है. बैंकों को खेती किसानी के लिए आसान शर्तों पर कर्ज देने को भारत सरकार ने कहा है, लेकिन बैंक किसानों को आसानी से कर्ज नहीं देते हैं.
कई बार किसानों को अपनी खेती की जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंक से कर्ज लेने के लिए सालों तक चक्कर लगाना पड़ता है, लेकिन बैंकों द्वारा सिर्फ उन्हीं किसानों को कर्ज देने में दिलचस्पी दिखाई जाती है, जो पढ़े-लिखे होते हैं या पहुंच वाले होते हैं. भोले-भाले किसान बैंक से कर्ज तभी ले पाते हैं, जब वे किसी दलाल की मदद लेते हैं.
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