नया वित्त वर्ष फिक्स्ड डिपौजिट निवेशकों के लिए अच्छा रह सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि डिपौजिट पर ऊंची ब्याज दरें मिल रही हैं. कुछ हफ्तों पहले स्टेट बैंक औफ इंडिया (एसबीआई) ने फिक्स्ड डिपौजिट पर सभी अवधियों के लिए 10 से 25 बेसिस प्वाइंट्स की बढ़ोतरी की थी. उम्मीद की जा रही है कि अन्य बैंक भी इसी तरह की घोषणाएं कर सकते हैं.
4 अप्रैल, 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक नौन बैंकिंग फाइनेंस कंपनीज (एनबीएफसी) जैसे श्रीराम ट्रांस्पोर्ट फाइनेंस, महिंद्रा एंड महिंद्रा फाइनेंशियल सर्विसेज और एचडीएफसी ने चुनिंदा अवधियों पर पांच से 50 बीपीएस की बढ़ोतरी की थी. 12 अप्रैल को यह घोषणा की गई कि महिंद्रा फाइनेंस निवेशकों को औनलाइन कंपनी की वेबसाइट के डिपौजिट करने पर 25 बीपीएस अतिरिक्त का ब्याज दे रही है.
यह ऐसे निवेशकों के लिए अच्छी खबर हो सकती है जो फिक्स्ड इनकम निवेश के विकल्प ढूढ़ रहे हैं. हालांकि, सवाल यह है कि आपको किसका चुनाव करना चाहिए- बैंक एफडी या कंपनी डिपौजिट. अधिकांश बैंक एफडी कंपनी डिपौजिट की तुलना में कम ब्याज देती हैं, लेकिन फिक्स्ड डिपौजिट से कम जोखिम होता है.
जानिए क्या होता है कंपनी डिपौजिट : कंपनी डिपौजिट नौन बैंकिंग फाइनेंस कंपनीज (एनबीएफसी) और मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों की ओर से जारी किये जाते हैं. इस तरह के डिपौजिट जारी कर कंपनी फंड जुटाती है. ये एक तरह से अनसिक्योर्ड लोन होते हैं जो डिफौल्ट कि स्थिति में निवेशक को कोई गारंटी नहीं देते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि बैंक डिपौजिट की तुलना में कंपनी डिपौजिट ज्यादा ब्याज देती है और इनमें एफडी की तुलना में ज्यादा जोखिम होता है. उच्च ब्याज दरों के चलते इसकी ओर कई रिटेल निवेशक आकर्षित होते हैं, खासतौर से वरिष्ठ नागरिक.
कितना मिलता है कंपनी डिपौजिट पर ब्याज : कंपनी डिपौजिट पर फिक्स्ड डिपौजिट की तुलना में 50 से 100 बीपीएस ज्यादा मिलता है. वरिष्ठ नागरिकों को सामान्य रेट्स से 25 से 40 बीपीएस ज्यादा मिलता है. इनकम टैक्स कटने से पहले एसबीआई मौजूदा समय में एक साल से 10 साल की अवधि पर 6.4 फीसद से 6.75 फीसद का ब्याज देता है. वहीं वरिष्ठ नागरिको के लिए यह दर 6.9 फीसद से 7.25 फीसद की है. इसकी तुलना में एनबीएफसी जैसे दीवान हाउसिंग फाइनेंस (डीएचएफएल) अपने कौरपोरेट डिपौजिट पर 7.7 फीसद से 8 फीसद तक ब्याज देता है. वरिष्ठ नागरिकों के लिए ये दर 7.95 से 8.25 के बीच है.
कितना होता है इनमें जोखिम : बैंक एफडी काफी सुरक्षित वित्तीय प्रोडक्ट है. इसी कारण निवेशक इसमें निवेश करना पसंद करते हैं. वहीं, सार्वजिनक क्षेत्र के बैंक की ओर से पेश की गई एफडी और भी सुरक्षित होती है क्योंकि इन को सरकार से समर्थन मिला हुआ होता है. बैंक एफडी कंपनी डिपौजिट से ज्यादा सुरक्षित होता है क्योंकि इनपर भारतीय रिजर्व बैंक के नियम लागू होते हैं. हालांकि, अगर बैंक डिफौल्ट हो जाता है तो डिपौजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कौरपोरेशन के तहत बैंक में आपके जमा एक लाख रुपये तक का इंश्योरेंस मिल जाता है. लेकिन यही चीज कंपनी एफडी पर लागू नहीं हो सकती. रिटर्न बेशक बैंक एफडी से ज्यादा मिलता है लेकिन जोखिम भी अधिक होता है. कंपनी के डिफौल्ट होने पर आप अपने सारे पैसे से हाथ धो बैठते हैं.
कंपनी डिपौजिट में ही करना हो निवेश तो क्या करें : अगर आप कंपनी डिपौजिट में ही निवेश करना चाहते हैं तो ऐसी कंपनी में निवेश करें जिसे हाई क्रेडिट रेटिंग मिली हुई है. रेटिंग एजेंसी CARE, Crisil, ICRA, Brickwork कंपनी डिपौजिट को रेटिंग देते हैं.
अपरिपक्व निकासी : आम तौर पर कंपनी डिपौजिट और बैंक एफडी में से टेन्योर खत्म होने से पहले निकासी कर सकते हैं. इसपर पेनल्टी भी लगती है. यह हर संस्थान पर निर्भर करता है. ध्यान रखें कि कुछ बैंक बिना अपरिपक्व निकासी के एफडी देते हैं. जानकारी के लिए बता दें कि अपरिपक्व निकासी पर कंपनी डिपौजिट अधिक पेनल्टी लगाता है.
कराधान : बैंक एफडी और कंपनी डिपौजिट पर लगने वाला टैक्स इनकम टैक्स के आधार पर लगता है. इसलिए जितना ज्यादा टैक्स ब्रैकेट होता है वे उतना ज्यादा टैक्स का भुगतान करते हैं. इनकम टैक्स एक्ट 1961 के तहत बैंक एफडी पर 10,000 रुपये से ज्यादा के ब्याज पर टीडीएस कटता है. वहीं कंपनी डिपौजिट पर ये लिमिट 5000 रुपये है. आप अपना टीडीएस फौर्म 15जी भरकर क्लेम कर सकते हैं.
बैंक एफडी सात दिन से लेकर 10 वर्षों तक की कराई जा सकती है. हालांकि एनबीएफसी में छह महीने से 10 वर्षों तक के लिए होती है. एफडी या कंपनी डिपौजिट उन लोगों के लिए हैं जिन्हें नियमित आय चाहिए और जो निम्नतम टैक्स ब्रैकेट में हैं.
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