भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने हाल ही में शरीया कानून के सिद्धांतों पर चलने वाली इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था शुरू करने के प्रस्ताव पर आगे न बढ़ाने का फैसला किया है. आरबीआई ने अपने फैसले पर तर्क देहुए कहा था कि सते भी लोगों के सामने बैंकिंग एवं वित्तीय सेवाओं के समान अवसर पर विचार करने के बाद ही यह निर्णय लिया गया है. हम अपनी इस खबर में आपको बताने की कोशिश करेंगे कि आखिरी इस्लामिक बैंकिंग कहते किसे हैं और फिलहाल कितने देशों में काम कर रही है.

क्या है इस्लामिक बैंक: इस्लामी कानून यानी शरिया के सिद्धांतों पर काम करने वाली बैंकिंग व्यवस्था को इस्लामिक बैंकिंग कहा जाता है. इन बैंकों की खासियत यह है कि इनमें किसी तरह का ब्याज न तो लिया जाता है और न ही दिया जाता है. इसमें बैंक को होने वाले लाभ को इसके खाताधारकों में बांट दिया जाता है. नियम के मुताबिक, इन बैंकों के पैसे गैर इस्लामी कार्यों में नहीं लगाए जा सकते.

आधुनिक दुनिया में इस्लामी बैंकिंग: दुनिया के 75 देशों में 350 इस्लामी वित्तीय संस्थान संचालित हैं. आधुनिक इस्लामी बैंकिंग प्रणाली की शुरूआत 1963 में अहमद अल नज़र ने मिस्र में की थी. वहीं दुबई इस्लामिक बैंकिंग की शुरुआत साल 1975 में की गई. यह पहला ऐसा इस्लामिक बैंक माना जाता है जिसने इस्लामिक अर्थशास्त्र के सिद्धांतों को अपने अभ्यास में शामिल किया है.

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कैसे काम करता है इस्लामिक बैंक:

इस्लामिक बैंकिंग के अंतर्गत इस तरह के खाते खोले जा सकते हैं...

  • सेविंग अकाउंट
  • इन्वेस्टमेंट अकाउंट
  • जकात अकाउंट

इस्लामी बैंकिंग में, एक ग्राहक अपने पैसे को एक विशिष्ट खाते में जमा करवाता है और बैंक ग्राहक के पैसे वापस करने की गारंटी देता है, लेकिन सेविंग अकाउंट पर कोई भी ब्याज नहीं दिया जाता है. बैंक ग्राहक का पैसा रखने के लिए इस पर कोई चार्ज लगा सकता है और बैंक उसे उपहार स्वरूप अपने ग्राहक को लौटा सकता है. बैंक ग्राहकों को मांग के आधार पर पैसे निकालने की अनुमति है.

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