कुछ दशक पहले तक बैंकों से केवल पुरुषवर्ग ही जुड़ा रहता था. व्यक्ति चाहे वह व्यवसायी हो या नौकरीपेशा, अपना या अपनी फर्म का खाता बैंक में खुलवाता था तथा स्वयं ही उस का संचालन करता था. महिलाओं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की पहुंच बैंक तक थी ही नहीं और न ही उन्हें बैंक से जुड़ी किसी प्रक्रिया की जानकारी थी. आज परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है. लड़कियां और महिलाएं न केवल अपने खाते बैंकों में खुलवा रही हैं बल्कि उन्होंने बैंकिंग प्रक्रिया को समझा भी है. यही नहीं, बड़ी संख्या में महिलाएं बैंकों में नौकरी भी करने लगी हैं. जाहिर है, इन सब से महिलाओं के आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता में वृद्घि हुई है.

पहले पुरुष ही अपने नाम से बैंकों में बचत खाते खुलवाते थे. यदि वे अपनी पत्नी या बेटी के नाम से खाते खुलवाते भी थे, तो उन का संचालन वे स्वयं ही करते थे. महिलाओं को बैंक में प्रवेश करने में शर्म व झिझक होती थी. लेकिन पिछले 10 सालों में ही बैंकों में बचत खाते खोलने वाली महिलाओं की संख्या में तीनगुना वृद्घि हुई है.

देश में 13 राज्यों में महिलाओं से जुड़े 8 मुद्दों का 114 पैमानों पर एक सर्वे हुआ, जिस में एक मुद्दा बैंक में बचत खाते से संबंधित भी है. सर्वे के मुताबिक, 2005-06 की तुलना में 2015-16 में बैंक में बचत खाता खुलवाने वाली 15 से 49 वर्ष की महिलाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्घि हुई है. इस मामले में 82.8प्रतिशत के साथ गोवा की महिलाएं सब से आगे हैं. यदि प्रतिशत की बात करें तो इस हिसाब से सब से ज्यादा 400 प्रतिशत बढ़ोतरी मध्य प्रदेश में दर्ज की गई.

आज महिलाओं के न केवल बैंकों में खाते हैं, बल्कि वे नैटबैंकिंग या ई बैंकिंग का इस्तेमाल भी कर रही हैं. अधिकांश खातेदार महिलाओं के पास अपने एटीएम कार्ड भी हैं, जिन से वे जब चाहे अपनी जरूरतों के मुताबिक धनराशि निकाल लेती हैं.

लड़कियों में बैंकिंग के प्रति रुझान उस समय शुरू हो जाता है जब वे स्कूलकालेजों में पढ़ती हैं. तरहतरह की सरकारी छात्रवृत्ति योजनाएं तथा अन्य हितग्राही योजनाओं की राशि या तो सीधे उन के खाते में जमा होती है या फिर उन्हें चैक से भुगतान किया जाता है. दोनों ही स्थितियों में बैंकों में खाता होना जरूरी है. बड़ी हो कर जब वे किसी नौकरी या पेशे को जौइन करती हैं तो भी उन्हें नकद के बजाय बैंकों के माध्यम से खाते में ही भुगतान किया जाता है. इस कारण भी वे अपना खाता बैंक में खुलवाने लगी हैं.

कुछ दशक पहले तक महिलाओं को बैंक की पर्चियां भरना तक नहीं आता था. बात चाहे रुपए या चैक जमा करने की हो या रुपए निकालने की, पर्चियां या फौर्म भरने के लिए उन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था. वे अपना अंगूठा लगाती थीं या अधिक से अधिक अपने दस्तखत कर देती थीं. लेकिन शिक्षा के प्रचारप्रसार और महिलाओं में बढ़ती जागरूकता के कारण वे बैंकिंग प्रक्रिया में माहिर हो चुकी हैं. उन्हें अब कोई मूर्ख नहीं बना सकता है.

पहले महिलाएं अपने रुपए, पैसे या गहने या तो घर की तिजोरी में रखती थीं या फिर अपने खेत या घरों में गाड़ कर छिपा देती थीं लेकिन आज वे अपने रुपएपैसे बैंक में जमा कराने लगी हैं तथा गहने बैंक लौकर में रखती हैं. उन्हें बैंक के लौकर का संचालन भी भलीभांति आने लगा है और अब वे स्वतंत्र रूप से अकेली बैंक लौकर का संचालन करती हैं.

बैंक से ऋण या कर्र्ज लेने की प्रक्रिया से भी आज की महिलाएं अनजान नहीं हैं, क्योंकि उन्हें स्वरोजगार आदि के लिए कर्ज की आवश्यकता होती है. महिलाएं अपनी बचत को मियादी जमा, आवर्ती जमा आदि में भी रखने लगी हैं. इस कारण उन्हें विभिन्न तरह के खातों से रूबरू होना पड़ता है.

आज किसी भी महिला को बैंक की दहलीज पर जाने में घबराहट नहीं होती और वे सहज रूप से बैंक में प्रवेश कर अपना आर्थिक लेनदेन कर सकती हैं. बैंकों में कार्यरत महिलाकर्मी पुरुषों से बेहतर काम करती हैं. इन सब बातों से स्पष्ट है कि आज की महिलाएं स्मार्ट ही नहीं, दबंग भी हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...