बेटी की शादी में इतना खर्च हो जाता है कि मां बाप उस के भविष्य के लिए कुछ जोड़ ही नहीं पाते. आमतौर पर मध्यवर्गीय परिवार बेटी के नाम पर जो बचत करता है वह उस की शादी में ही खर्च कर देता है. आजकल बेटी की शिक्षा भी पहले से बेहतर होने लगी है. ऐसे में मां बाप के पास इतना पैसा बचता ही नहीं कि वह शादी के बाद बेटी के नाम निवेश करने की हालत में रहे.

इस के लिए जरूरी है कि बेटी के नाम पर पहले से ही थोड़ी थोड़ी बचत करते रहे. यह बचत 3 हिस्सों में हो. पहला हिस्सा ऐेसा हो जिस में बेटी की शिक्षा के लिए पैसा जुटाया जाए जो उस की पढ़ाई पर खर्च हो सके. इस के बाद उस की शादी के हिसाब से बजट तय करें. यह रकम अलग रखें.

तीसरे हिस्से में कुछ पैसा ऐसा रखें जो शादी के बाद उस को पूंजी के रूप में दिया जा सके. असल में देखें तो यही सब से जरूरी हिस्सा होता है. पहले जो स्त्री को जेवर दिए जाते थे उन को स्त्रीधन कहा जाता था जिन का उपयोग वह अपने जरूरी काम के लिए कर सके.

शादी के बजट को कम से कम रखें. शादी में होने वाला खर्च एक तरह से दिखावा होता है. ऐसे में हरसंभव कोशिश यह रहे कि शादी कम से कम बजट में की जाए. पढ़ाई और शादी के बाद की जरूरतों के लिए बचत को तमाम योजनाओं के जरिए कर सकते हैं.

आमतौर पर बेटी के नाम की गई बचत को शादी में खर्च कर दिया जाता है. बेटी की शादी के बाद माता पिता के पास कुछ बचता ही नहीं कि वह बेटी के लिए पूंजी के रूप में कुछ निवेश कर दें. बेटी की पढ़ाई में भी अब खर्च बढ़ गया है. ऐसे में पढ़ाई का खर्च तो बेटी के स्कूल जाते ही शुरू हो जाता है. मुख्य रूप से बेटी की शादी और शादी के बाद दी जाने वाली पूंजी के लिए उचित निवेश करना जरूरी हो जाता है.

पहले बेटी को पराया धन माना जाता था. तब शादी के बाद बेटी ससुराल चली जाती थी. माता पिता के ऊपर से बेटी की आर्थिक जिम्मेदारी खत्म हो जाती थी. अब ऐसा नहीं है. शादी के बाद भी बेटी के कैरियर को ले कर माता पिता की चिंता बनी रहती है. ऐसे में जरूरी है कि लंबे समय की बचत हो जिस से बेटी की शादी के बाद मदद कर सके.

तरह तरह की बचत योजनाएं

आमतौर पर 20 से 25 साल के बीच बेटी की शादी होने लगी है. ऐसे में बेटी को दी जाने वाली पूंजी की बचत करते समय लंबे समय की बचत करें. सामान्य परिवार एक बार में ही पैसा फिक्स डिपौजिट नहीं कर सकते. ऐसे में रेकरिंग डिपौजिट योजना कारगर हो सकती है. इस के तहत किसी बैंक या पोस्ट औफिस में खाता खोल कर हर माह एक तय रकम खाते में जमा कर सकते हैं.

खाता बेटी के नाम भी खुल सकता है. जब बेटी बालिग हो जाएगी तो वह खुद खाते का संचालन कर सकेगी. रेकरिंग डिपौजिट का एक लाभ यह है कि बैंक खाता खोलते समय ब्याज देने की जो सीमा तय कर लेगा वही बाद में देगा. ब्याज दर घटने पर वह ब्याज दर को घटा नहीं सकता है. अब बैंकों में पीएफ अकाउंट भी खोले जा सकते हैं. इस में जमा होने वाला पैसा टैक्स फ्री होता है. पीएफ खाते में ब्याज की दर सामान्य खातों से अधिक होती है.

बैंक के अलावा शेयर बाजार में एसआईपी यानी सिस्टमैटिक इन्वैस्टमैंट प्लान में भी पैसा जमा किया जा सकता है. एसआईपी में लंबे समय के लिए खाता खोलने में मुनाफा ज्यादा होता है. सामान्य रूप से इस में लंबे समय के लिए खाता खोलने से पीएफ और बैंक से ज्यादा ब्याज मिलने की संभावना रहती है. बैंक, डाकघर और म्यूचुअल फंड में इस तरह की अलगअलग योजनाएं बेटियों को ले कर भी बनने लगी हैं. ऐसे में आप बचत का तरीका अपनी जरूरत के हिसाब से चुन सकते हैं. हर खाते की समय सीमा इस तरह से तय की जाए कि शादी के बाद वह काम आ सके.

अगर शादी के समय या शादी के पहले यह बचत खाता पैसा दे रहा हो तो वह पैसा बेटी के नाम फिक्स डिपौजिट करा दे. इस से पैसा खर्च नहीं होगा और बेटी को जरूरत के समय पूरा पैसा मिल जाएगा.

सरकार बेटियों के लिए सुकन्या समृद्धि योजना चला रही है, जिस के तहत साल में 1 हजार से ले कर डेढ़ लाख रुपए सालाना तक जमा किया जा सकता है. बेटी के नाम से खोला जाने वाला यह खाता केवल 2 बेटियों के लिए ही खोला जा सकता है. इस का ब्याज पीएफ से अधिक होता है. समय पूरा होने पर मिलने वाली रकम आयकर की धारा 80सी के तहत कर मुक्त होती है. ऐसे में कर नहीं देना पड़ता है.

सरकार की गारंटी होने के कारण इस पर लोगों का ध्यान ज्यादा जाता है. लोग इसे सुरक्षित निवेश मानते हैं. कई बार लोग बेटी के नाम पर प्रौपर्टी खरीद लेते हैं. प्रौपर्टी का हस्तातंरण मुश्किल होता है. उसे समय पर सही कीमत पर बेचना आसान नहीं होता है. ऐसे में पैसों का निवेश ही सही तरह से पूंजी को लगाने का होता है. कुल मिला कर बेटी को भी बेटे की तरह ही निवेश की सौगात दे कर उस का भविष्य सुरक्षित करना समझदारीभरा कदम होगा.

ससुराल वालों को दें निवेश की जानकारी

शादी के बाद बेटी को निवेश के पूरे पेपर और सही जानकारी दें. अगर खाते में कुछ लिखापढ़ी को ले कर बदलाव हो तो करवा दें. शादी के बाद पति को नौमिनी बना सकते हैं. पत्नी के निवेश में पति का कानूनी हक होता है. इस के साथ ही साथ पति के नौमिनी बनने से पतिपत्नी के बीच एक भरोसे का रिश्ता बनता है. पति को यह नहीं लगता कि पैसा केवल पत्नी को ही दिया गया है. ऐसे में तालमेल सरल हो जाता है.

आज के दौर में लड़कियों को पढ़ाने के लिए एजुकेशन लोन भी मिलता है. अगर ऐसा कोई लोन लड़की के नाम पर हो तो उस की जानकारी भी ससुराल वालों विशेष कर पति को जरूर होनी चाहिए. पतिपत्नी के बीच भरोसे को बनाए रखने के लिए आर्थिक समझदारी और पारदर्शिता होनी जरूरी होती है. आर्थिक समझदारी होने से भविष्य की योजनाएं बनाने में मदद मिलती है.

इन्वैस्टमैंट की जरूरतों को पूरा करने के लिए पोर्टफोलियो मैनेज करने वाले जानकार विशेष राय का कहना है, ‘‘शादी के बाद बेटी के नाम और पते में कई तरह के बदलाव होते हैं. ऐसे में खातों में उन को ठीक कराना जरूरी होता है. कई बार लड़कियों के सरनेम बदल जाते हैं. इस को देख लें. आजकल लिखापढ़ी से बचने के लिए लोग नाम के साथ सरनेम में बदलाव नहीं करते हैं. शादी के बाद बेटी के खाते या निवेश के दूसरे पेपर में बैंक को पूरी जानकारी दे कर उन को भरोसे में ले लें, जिस से किसी तरह के बदलाव में बैंक का सहयोग मिलता रहेगा.’’

वैसे बेटी हो या बेटा उस को शादी से पहले अपने पैरों पर खड़ा कर दें. जिस से उसे किसी और पर निर्भर रहने की जरूरत ही न पडे़. इस के बाद भी बेटी को देने के लिए पैसों का उचित प्रबंधन करें, जिस से यह पैसा बेटी को अपनी जरूरतों को पूरा करने में मदद कर सके. बेटी को अपने पैसों और उस के खाते की पूरी जानकारी होगी तो उसे किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पडे़गा. शादी के बाद भी वह अपने सपनों को उस निवेश के बल पर पूरा कर सकेगी

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...