अपने बढ़ते नौनिहालों को महंगी शिक्षा देने व उन्हें नंबर वन पर रखने का हर मातापिता का सपना होता है. लेकिन महंगाई का मुकाबला करते हुए इस सपने को पूरा करने के लिए पैसों का सही समय पर व सही जगह निवेश कैसे करें, बता रहे हैं अमरीश सिन्हा.
भारत में बच्चों को केंद्र में रख कर निवेश करने की परंपरा नहीं रही है. जब से देश और दुनिया में उदारीकरण व बाजारवाद ने दस्तक दी तब से शिक्षा, पैसा व कैरियर अधिक महत्त्वपूर्ण होते गए. यही वजह है कि 20वीं सदी तक तो ऐसी गिनीचुनी निवेश योजनाएं ही देश में उपलब्ध थीं जो विशेषकर बच्चों के लिए हों. इन के बारे में भी शहरी निवेशकों या किसी दूसरे प्रकार के बीमा लेने वालों को ही पता होता था.
चाइल्ड इंश्योरैंस प्लान के अधिकतर ग्राहक वे ही होते थे जो या तो स्वयं बीमा कंपनी में कार्यरत थे या उन के मित्र व रिश्तेदार होते थे. बच्चों के भविष्य की निवेश योजनाएं बहुत ही ‘लो प्रोफाइल’ यानी कम लोगों के बीच प्रसारित होती थीं. वे तो गनीमत रहे 20वीं सदी के समापन के वर्ष और 21वीं सदी के शुरुआती साल जब उदारवाद की कोख से कई सारे घटनाक्रमों ने जन्म लिया. उन में से एक यह था कि लोगों में अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए निवेश करने की जागरूकता पनपी.
अश्विनी गरोडि़या तभी तो अपने इकलौते पुत्र को आईआईएम अहमदाबाद में प्रवेश दिलाने के वास्ते जीजान से जुटे हैं. बेटा होशियार भी है. उस का दाखिला एक नामीगिरामी कोचिंग संस्था में भी कराया गया है. अश्विनी वहां की फीस और फिर मैनेजमैंट में चयन के बाद पूरे 3 साल के आवासीय शिक्षण शुल्क आदि को मिला कर करीब 20 लाख रुपए जुटा चुके हैं.
मुकुंद गाडगिल का बेटा अतुल इसी साल साइंस इंस्टीट्यूट, भोपाल में चुना गया है जहां सभी छात्रों को सरकार की तरफ से 5 हजार रुपए माहवार छात्रवृत्ति मिलती है. वे काफी खुश हैं क्योंकि बतौर फीस मोटी रकम जुटा पाना उन के लिए मुमकिन नहीं था. दरअसल, पिछली सदी तक 1 बच्चे की पढ़ाई में मामूली रकम (कुछ विशेष विषयों की पढ़ाई को छोड़ कर) खर्च होती थी और वह नौकरी भी पा जाता था. लेकिन अब प्रतिस्पर्धी माहौल में पढ़ाई आसान नहीं रह गई है. महत्त्वाकांक्षाएं दिनबदिन बलवती हो रही हैं. हालांकि औरों को पीछे छोड़ आगे बढ़ने के मार्ग में कई निजी व सामाजिक खतरे भी हैं लेकिन उन्हें एक ओर रखते हुए सिर्फ आर्थिक पहलू पर गौर करें तो यह कहा जाना जरूरी है कि बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अभिभावकों को आर्थिक तौर पर सबल बनना होगा.
बच्चों के भविष्य उन के अध्ययन के कोर्स, डिग्री, इंस्टीट्यूट आदि पर निर्भर होते हैं. ये सभी उच्च कोटि के हों, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप का बच्चा कितना होशियार है व आप श्रेष्ठ संस्थाओं में उस के अध्ययन का खर्च उठा पाने में सक्षम हैं या नहीं. शायद यही वजह है कि कई अभिभावक अपने बच्चों की बेहतर पढ़ाई हेतु बजट बनाने व पैसों का जुगाड़ करने को अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा समझते हैं. हो भी क्यों न, राजेश सिन्हा अपने पुत्र को एमबीए में दाखिला दिलाना चाहते हैं. पर जिस किसी नामी संस्थान से संपर्क करते हैं, उन्हें पढ़ाई का कुल खर्च 12-13 लाख के आसपास बताया जाता है. वे अपने पुत्र निशांत को आईआईएम अहमदाबाद या एसएलआरआई जमशेदपुर के लिए तैयार कर रहे हैं.
चाइल्ड इंश्योरैंस प्लान
चाइल्ड इंश्योरैंस योजना की एक बड़ी खासीयत है. यदि बच्चे के एक निश्चित आयु तक पहुंचने से पहले ही बीमाधारक की मृत्यु हो जाती है तो भी बीमा अपनी मैच्योरिटी तिथि तक जारी रहता है जबकि उस के बाद सारे प्रीमियम माफ हो जाते हैं. प्रीमियम बीमा कंपनी द्वारा खुद भरे जाते हैं. पौलिसी के मैच्योर होने पर सारे लाभ आप के बच्चे को पूर्ववत मिलेंगे. यह पौलिसी काफी उपयोगी है व सभी बीमा कंपनियों के पास ऐसी पौलिसी उपलब्ध है.
अमूमन यह पौलिसी 2 तरह की होती है. पहली पौलिसी मार्केट से जुड़ी होती है यानी इस में अदा किया जाने वाला प्रीमियम ‘इक्विटी’ और ‘डेट’ दोनों में निवेश किया जाता है जबकि दूसरी पौलिसी पारंपरिक होती है. इस में निवेश सिर्फ ‘डेट’ में होता है. दोनों में से कौन सा विकल्प आप को पसंद है. इस का चुनाव बीमा लेते वक्त आप को करना होता है. जहां पहले विकल्प में ‘जोखिम’ अधिक होने की वजह से मैच्योरिटी पर मिलने वाली रकम अधिक हो सकती है, वहीं दूसरा विकल्प ‘रिस्क फ्री’ होता है. पर इस में ‘मैच्योरिटी वैल्यू’ अपेक्षाकृत कम हो सकती है.
निवेश की शुरुआत
बच्चे के जन्म लेते ही उस के लिए निवेश के रास्ते तय करने शुरू कर देने चाहिए. ज्यादातर माता पिता अपने बच्चों के नाम लंबी अवधि के लिए फिक्स्ड डिपौजिट या आरडी (रेकरिंग डिपौजिट) अकाउंट खुलवाते हैं लेकिन ये काफी नहीं हैं. ये मुद्रास्फीति को मात नहीं दे पाते और लंबी अवधि के एफडी में आप की रकम लंबे समय के लिए ब्लौक हो जाती है.
समझदारी इस में है कि अपने नौनिहालों के लिए निवेश के विभिन्न ‘सेगमैंट’ तय कर लिए जाएं. यह सेगमैंट निर्धारण आप के लक्ष्य के मुताबिक हो. मसलन, लड़के या लड़की के विवाह का खर्च, विवाह की अनुमानित आयु, पढ़ाई पर होने वाला अनुमानित व्यय आदि. अब इन लक्ष्यों के मुताबिक अपनी वर्तमान आय व भविष्य की आय को ध्यान में रख कर निवेश करें. निवेश के कई सेगमैंट हो सकते हैं, जैसे चाइल्ड इंश्योरैंस प्लान, रियल एस्टेट या चुनिंदा कंपनियों के शेयरों में निवेश, पीपीएफ खाते में निवेश. पीपीएफ में माहवार जमा की जाने वाली रकम 15 वर्षों बाद बड़ी रकम में तबदील हो जाती है. रिटर्न का गोल्ड ईटीएफ भी अच्छा विकल्प है.
मुंबई के चेंबूर इलाके में रहने वाले हरीश रावजियानी शेयरों में निवेश के जरिए न सिर्फ अपनी दोनों संतानों (एक पुत्र व एक पुत्री) को अच्छी शिक्षा दिला सके, बल्कि आज दोनों संतानें बहुराष्ट्रीय कंपनियों में ऊंचे ओहदों पर कार्यरत हैं. चाइल्ड इंश्योरैंस प्लान ‘टर्म प्लान’ भी हो सकता है. ये प्लान एक से अधिक भी लिए जा सकते हैं. रियल एस्टेट में निवेश में रिटर्न 20-25 फीसदी सालाना हो सकता है. यह निवेश मुद्रास्फीति को तेजी से मात देता है पर पूंजी अधिक निवेश करनी पड़ती है.
चुनिंदा स्टौक में निवेश से लंबी अवधि में अच्छा रिटर्न मिलता है. कुछ स्टौक लंबी अवधि के लिए काफी फायदेमंद माने जाते हैं, जैसे एसबीआई, एलएंडटी, नेसले, ब्रिटानिया, कोलगेट, कैस्ट्रोल, केडिला हैल्थकेयर, डाबर, कोल इंडिया आदि. ‘सिप’ के जरिए श्रेष्ठ म्युचुअल फंड में निवेश 15 वर्षों में औसतन आप की रकम में 400 फीसदी इजाफा कर सकते हैं. वास्तविक सोने या गोल्ड ईटीएफ में निवेश भी अच्छा है. औसतन 18-20 फीसदी का रिटर्न देने वाला यह निवेश महंगाई की मार से आप को बचाता है और आप की पूंजी को सुरक्षित भी रखता है.
बहरहाल, जहां चाइल्ड प्लान में 10 हजार रुपए प्रति माह की बचत पर आप को 15 साल में करीब 61 लाख रुपए मिलेंगे, वहीं ऊपर दर्शाए गए निवेश के अलगअलग सेगमैंट के अनुसार इसी अवधि में लगभग 1 करोड़ 15 लाख का रिटर्न प्राप्त हो सकता है. चूंकि मुद्रास्फीति की दर भी औसतन 8 फीसदी रहती है, इसलिए महंगाई का मुकाबला करते हुए अपने बढ़ते नौनिहालों को महंगी शिक्षा देने और उन्हें ‘नंबर वन’ पर रखने के लिए निवेश करने में समझदारी ही नहीं बल्कि तत्परता भी दिखानी होगी यानी चाइल्ड इंश्योरैंस प्लान भी लें और मार्केट में सूझबूझ से पैसे भी लगाएं.