एक दिन सीमा की बेटी कविता की तबीयत अचानक खराब हो गई. उस दिन रविवार था. बैंक बंद थे और एटीएम घर से बहुत दूर थे. घर में 6-7 सौ रुपए ही थे. सीमा के पति विवेक के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उन्होंने कहा कि किसी से पैसा उधार लेना होगा. पता नहीं कोई देगा या नहीं. पति को बेचैन देख कर सीमा ने कहा कि मेरे पास कुछ रुपए हैं, उन से काम चल जाएगा. विवेक ने हैरानी से उस की ओर देख कर कहा कि तुम्हारे पास पैसे कहां से आए? जितने रुपए देता हूं वे तो खर्च ही हो जाते हैं? तब सीमा ने बताया कि वह हर महीने उन के दिए पैसों से कुछ बचा कर रख लेती थी. विवेक ने उसे गले से लगा लिया और कहा कि तुम ने तो मुझे किसी के सामने हाथ फैलाने से बचा लिया. इसी तरह प्रियंका बताती हैं कि एक रात उस की सास की तबीयत अचानक खराब हो गई. पति बाहर गए हुए थे. वे उसे कुछ रुपए दे कर गए थे, पर उतने कम रुपयों से सास का इलाज मुमकिन नहीं था. पड़ोसी एंबुलैंस मंगा कर सास को अस्पताल ले जाने की तैयारी करने लगे. प्रियंका ने अपनी अलमारी खोली और अपने बचत किए गए पैसों को जोड़ा तो करीब 10 हजार रुपए निकल आए. तब जा कर उस की जान में जान आई. सासूमां को सही समय पर अस्पताल ले जाया गया और बेहतर इलाज कराया गया. 3 दिन के बाद प्रियंका के पति लौटे तो छूटते ही उन्होंने पूछा कि इतने रुपए कहां से आए? किसी से कर्ज लिया क्या? जब प्रियंका ने उन्हें सारा माजरा बताया तो बीवी की बचत करने की आदत पर फख्र से उन का सीना चौड़ा हो गया.

छोटी बचत बड़ा समाधान

इस तरह के वाकेआ यही सीख देते हैं कि छोटीछोटी बचत बूंदबूंद से सागर भरने की तरह ही है, जो ऐन मौके पर आई किसी परेशानी से बचाने में मददगार साबित होती है. आईसीआईसीआई बैंक के सीनियर अफसर संजीव दयाल कहते हैं कि छोटी बचत से बड़ी परेशानी से निबटा जा सकता है. हमारे आसपास इस के कई उदाहरण मिल जाते हैं. पुराने जमाने में गुल्लक का इस्तेमाल इसी के लिए किया जाता था. हमें अपने बच्चों में भी बचत करने की आदत डालनी चाहिए. उन्हें बताना चाहिए कि उन्हें जो भी जेबखर्च मिलता है, उस का 5-10% गुल्लक में डालने की आदत डालें. ज्यादातर पत्नियां पति से छिपा कर कुछ बचत करती रहती हैं और कठिन हालातों में उस रकम से अपने पति की मदद करती हैं. अनुपमा के किस्से से हरेक औरत सीख ले सकती है. अनुपमा बताती हैं कि शादी के बाद वह पति के साथ हनीमून मनाने नेपाल गई थी. वीरगंज, काठमांडू और पोखरा में घूमते हुए 7 दिन बीत गए. दोनों ने खूब मौजमस्ती की. बढि़या होटलों में ठहरे और जम कर शौपिंग की. वापसी के 1 दिन पहले अनुपमा ने पति को कुछ परेशान देखा. परेशानी की वजह पूछी तो पति ने कहा कि उन के सारे पैसे खर्च हो चुके हैं. होटल का बिल चुकाने और गाड़ी का भाड़ा तो हो जाएगा, फिर भी घर से इतनी दूर हैं, तो कुछ रुपए तो हाथ में होने चाहिए.

पति की परेशानी देख अनुपमा ने अपने पर्स से 7 हजार रुपए निकाल कर उन के हाथ में रख दिए. अनुपमा बताती है कि पति के दिल खोल कर खर्च करने के तरीके को देखते हुए उस ने शौपिंग के दौरान ही कुछ पैसे चुपके से बचा लिए थे.

नामुमकिन नहीं बचत करना

पारिवारिक खर्चों के बढ़ते बोझ का हवाला देते हुए कई औरतें यह तर्क देती हैं कि बचत करना मुमकिन ही नहीं है. जब घर का खर्च ही ठीक से नहीं चलता है, तो ऐसे में बचत की बात करना ही बेकार है. किराने का सामान, दूध, गैस, बच्चों के स्कूल की फीस, मकान का किराया आदि के बाद हाथ में कुछ बचता ही नहीं है. ऐसी सोच वाले लोगों के लिए एक बड़ी कंपनी के फाइनैंस मैनेजर रजनीश कहते हैं कि बचत करने की आदत और सोच से ही बचत की जा सकती है. हर महीने के तयशुदा खर्चे के बाद एक मिडिल क्लास फैमिली के हाथ में सच में कुछ नहीं बचता है, पर रोज 10-20 या हर महीने 500-1,000 रुपए तक की बचत की ही जा सकती है. कई औरतें तमाम खर्चों के बाद भी कुछ न कुछ बचत कर ही लेती हैं. खर्च का कोई अंत नहीं है और हर महीने कुछ न कुछ नया खर्च सामने आ खड़ा होता है. इस के बाद भी बचत करने की सोच हो तो कुछ न कुछ बचत की ही जा सकती है, जो मौकेबेमौके काम दे ही जाती है.

हर औरत को कुछ न कुछ बचत करने की आदत डालनी ही चाहिए. औरत को ही क्यों मर्द और बच्चों को भी बचत की आदत बना लेनी चाहिए. इस से अचानक आई माली परेशानी से बचा जा सकता है

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