अगर आप हाल फिलहाल रिटायर हुए हैं और रिटायरमैंट के वक्त प्राप्त राशि को कहीं जमा करने की सोच रहे हैं तो आप को सब से आसान विकल्प बैंक फिक्स्ड डिपौजिट लगता होगा. लेकिन ब्याज दरों में जिस तरह गिरावट आई है, उस से आप को न तो बढ़िया नियमित आय प्राप्त होगी और न ही धन की वृद्धि होगी. इसलिए उचित है कि आप अलगअलग विकल्पों का पता लगाएं और एक विविधिकृत रिटायरमैंट आय पोर्टफोलियो तैयार करें जिन पर रिटर्न भी बढ़िया मिलता है.

कहां निवेश करें, इस के विकल्पों  की चर्चा करने से पहले यह जानना जरूरी है कि कहां निवेश नहीं करें.

जब ब्याज दर लगातार कम हो रही हो तो ऐसी स्थिति में अनेक लोगों को नियमों का कम पालन करने वाले और ज्यादा ब्याज दर का दावा करने वाले उत्पादों का लोभ हो सकता है. स्वर्ण जमा योजनाएं, चिटफंड योजनाएं और इस तरह की अनेक नईनई योजनाएं इस दायरे में आती हैं. इन में से कुछ तो अंत में धोखाधड़ी वाली पोंजी योजनाएं साबित हुई हैं और अनेक दूसरी योजनाओं की नियति भी वैसी ही हो सकती है.

अर्थशास्त्री रौबर्ट शिलर ने अपने शोधपत्र में पोंजी योजना की परिभाषा दी थी और आज मीडिया में उस की अकसर चर्चा होती है- ‘‘इस (पोंजी स्कीम) योजना में शामिल होने वाले नए सदस्यों से मिलने वाली रकम से पुराने निवेशकों को भुगतान कर के नए निवेशकों को ऊंची दर पर लाभ देने का भ्रम पैदा किया जाता है. योजना में नए निवेशकों की प्रतिक्रिया कमजोर होती है, लेकिन जैसा कि बाद के दौर में ऊंचे प्रतिलाभ से जोश बढ़ता है, योजना में लोगों का विश्वास और निवेशकों की उत्कंठा बढ़ती जाती है. अंत में जब नए निवेशक योजना में शामिल होने से कतराने लगते हैं, तब यह औंधेमुंह गिर जाती है.’’

कहने की जरूरत नहीं कि रिटायरमैंट के करीब या रिटायर हो चुके अनेक लोग इस तरह की योजनाओं के मुख्य निशाने पर होते हैं. इसलिए हम आप को निवेश के बुनियादी सिद्धांत की याद दिलाना जरूरी समझते हैं : ज्यादा जोखिम से ज्यादा प्रतिलाभ मिलता है, यह तभी सही होता है जब कम अवधि में प्रतिलाभ मिल जाता है. रिटायर हो चुके व्यक्ति के नाते आप को चिंता हो सकती है कि आप की रिटायरमैंट की राशि रोजमर्रे के खर्च के लिए कम पड़ सकती है और इसलिए उच्च प्रतिलाभ उत्पन्न करने के रास्ते पर दुसाहसिक कदम बढ़ाने को उत्सुक हो सकते हैं. लेकिन याद रखें कि इस प्रतिलाभ के लोभ में आप की पूंजी डूब सकती है.

इस के बाद अब आप के टैक्स स्लैब के आधार पर सही विकल्पों और प्रत्येक विकल्प की उपयुक्तता की बात करते हैं.

डाकघर वरिष्ठ नागरिक योजना

अक्तूबर 2017 से 8.3 प्रतिशत प्रति वर्ष (प्रत्येक तिमाही समायोजन की शर्त पर) की दर पर यह मौजूदा माहौल में 60 वर्ष से अधिक उम्र वालों के लिए सब से बढि़या दर है. यह दर 5 वर्षों के लिए यानी परिपक्वता तक निश्चित होगी. भले ही प्रत्येक तिमाही में नई दरें (बाजार में सरकारी प्रतिभूति प्रतिफल से संबद्ध) घोषित की जाएंगी. यह अनेक कारणों से एक आदर्श विकल्प है, जैसे कि : पहला, डाकघर की ब्याजदर के बैंक की ब्याजदरों से ज्यादा रहने की संभावना होगी. दूसरा, तिमाही ब्याज भुगतान से आप को आवश्यक आय मिलती रहेगी. तीसरा, यह आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत कटौती के योग्य होती है और अगर आप टैक्स के दायरे में हैं तो कटौती का लाभ मिलता है.

यह समस्त टैक्स स्लैब वाले सभी रिटायर्ड निवेशकों के लिए उपयुक्त है. लेकिन याद रखें कि ब्याज से मिली आय आप के स्लैब के दर में करयोग्य होती है. रिटायरमैंट के वर्ष में, विशेषकर धारा 80सी का कर लाभ लेने के लिए, यह निवेश का एक आदर्श विकल्प है.

कौर्पोरेट फिक्स्ड डिपौजिट्स

हालांकि आप को वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष दरों का फायदा मिलेगा लेकिन दरों में गिरावट को देखते हुए अधिकांश राशि बैंक में या दूसरी जमा स्कीमों में रखने के लिए यह निसंदेह सही समय नहीं है. सुरक्षा और विविधीकरण के लिए कुछ राशि बैंक में रखनी जरूरी है तो भी अगर आप को ज्यादा आमदनी की जरूरत हो तो दूसरे विकल्पों पर भी विचार करना चाहिए. साथ ही, आप के स्लैब दर पर ब्याज करयोग्य होता है.

बैंकों के अलावा, सर्वोच्च मूल्यांकन (एएए रेटिंग) वाले विभिन्न एनबीएफसी के कौर्पोरेट डिपौजिट्स भी बढ़िया विकल्प हैं क्योंकि उन से आप को बैंक की एफडी से थोड़ा ज्यादा प्रतिलाभ मिल सकता है.

बौंड और अपरिवर्तनीय डिबैंचर बौंड्स भी निश्चित ब्याज प्राप्त करने का विकल्प होते हैं. अगर आप खरीदारी कर रहे हैं तो प्रारंभिक प्रस्ताव के वक्त आप को पक्का कर लेना चाहिए कि आप किसी ऐसी कंपनी का ही बौंड खरीद रहे हैं जिस की साख और वित्तीय स्थिति काफी मजबूत है. अनेक निवेशक आजकल परिपक्वता के समय तक नियमित करमुक्त ब्याज पाने के लिए द्वितीयक बाजार में खरीदारी का विकल्प खोज रहे हैं. तथापि, यहां याद रखने वाला तथ्य यह है कि आप के दूसरे विकल्पों के करोपरांत प्रतिलाभ की तुलना में अगर इस का प्रतिलाभ आकर्षक नहीं है तो यह आप के लिए सब से आकर्षक विकल्प नहीं होना चाहिए.

असल में, अगर आप कर के दायरे में नहीं हैं, तब बेहतर है कि आप इन बौंड्स के बदले पीओएससीएस का रुख करें. अगर आप किसी भी टैक्स स्लैब में हैं तो भी आप को इन विकल्पों के साथ पीओएससीएस के करोपरांत गणना की तुलना कर लेनी चाहिए.

अगर आप का डीमैट और ट्रेडिंग खाता है तो बौंड्स और अपरिवर्तनीय डिबैंचर (एनसीडी) को भी द्वितीय बाजार में खरीदा जा सकता है. लेकिन यह नहीं भूलें कि द्वितीयक बाजार में जब तक मूल्य छूट पर कारोबार नहीं करते हैं (जो गिरते दर के माहौल में आमतौर पर नहीं होता है), तब तक इन बौंडों को खरीदने के लिए आप को ज्यादा रकम चुकानी होगी. दूसरे शब्दों में द्वितीयक बाजार में बौंड्स खरीदने के लिए ब्याजदर और मूल्यों में उतारचढ़ाव को समझना जरूरी है.

डेट म्यूचुअल फंड्स

1-2 दशकों पहले, जब फिक्स्ड डिपौजिट्स और डाकघर योजनाओं पर करीब दहाई अंक में प्रतिलाभ मिला करता था, अधिकांश रिटायर्ड लोग प्रतिलाभ के लिए केवल इन विकल्पों को ही अपनाते थे. किंतु ब्याजदरों में लगातार गिरावट के कारण अनेक निवेशकों का ध्यान एक व्यवस्थित, पारदर्शी उत्पाद के रूप में म्यूचुअल फंड्स की ओर आकृष्ट हुआ है. एक रिटायर्ड व्यक्ति के लिए, जो पूंजी की सुरक्षा या कुछ आय चाहते हैं, ऋण निधियां एक बेहतर विकल्प है. इक्विटी फंड्स के साथ जोखिम जुड़ा होता है और इन के लिए न्यूनतम 5 वर्षों का समय जरूरी होता है.

डेट म्यूचुअल फंड्स के फायदे हैं-

अत्यधिक तरलता : निर्धारित लौकइन अवधि वाले फिक्स्ड डिपौजिट्स के विपरीत कभी भी पैसा निकाला जा सकता है.

सक्रिय प्रबंधन :  घटतीबढ़ती ब्याजदर के चक्र से प्रतिलाभ उत्पन्न होता है. दूसरी ओर फिक्स्ड डिपौजिट्स के साथ पुनर्निवेश जोखिम जुड़ा रहता है. जमा राशि का समय पूरा हो जाने पर अगर उसे दोबारा निवेश करना चाहें तो आप को कम ब्याज दर व्यवस्था का सामना करना पड़ सकता है और पहले की अपेक्षा कम प्रतिलाभ हासिल होगा.

उच्चतर प्रतिलाभ :   लंबी अवधि वाले ऋण फंड्स परंपरागत तौर पर फिक्स्ड डिपौजिट्स की अपेक्षा बेहतर प्रतिलाभ देते हैं, क्योंकि इस में रकम को एफडी की तुलना में ज्यादा प्रतिलाभ देने वाले विविध ऋण विपत्रों में निवेश किया जाता है.

कर लाभ के लिए काफी बढि़या : लंबी अवधि के पूंजीगत लाभार्जन पर (3 साल से ज्यादा समय तक जमा के लिए) सूचीकरण के साथ 20 प्रतिशत की दर पर टैक्स लगता है. हालांकि, फिक्स्ड डिपौजिट पर ब्याज आप की आय पर कराधान किया जाता है.

उच्च लचीलापन : क्रमिक रूप से निवेश के अलावा आप क्रमिक रूप से पैसों की निकासी भी कर सकते हैं और आप को नियमित नकद राशि मिलती रहेगी. किंतु, आप के जोखिम विवरण के आधार पर डेट फंड्स की सही श्रेणी का चुनाव करना आवश्यक है. उदाहरण के लिए, तात्कालिक तौर पर पैसा रखने के लिए लिक्विड फंड बढि़या विकल्प हो सकता है, जबकि अल्पकालिक डेट फंड्स और आय फंड्स में एफडी के बदले निवेश किया जा सकता है.

अगर आप आय फंड जैसे किसी दीर्घकालिक फंड में निवेश करते हैं तो कुछ दिनों तक ऋणात्मक प्रतिलाभ पर गौर करें कि वह आप के लिए फायदेमंद है या नहीं. ऐसा इसलिए कि इन फंड्स के साथ अल्पकाल में कुछ जोखिम जुड़ा रहता है, लेकिन लंबी अवधि में यह जोखिम समाप्त हो जाता है. अगर आप अल्पकाल की अस्थिरता की आशंका झेलना नहीं चाहते तो आप के लिए लिक्विड या अत्यंत अल्पकालिक फंड्स उचित होंगे.

डेट म्यूचुअल फंड्स से मिलने वाले लाभार्जन को अगर आप 3 वर्षों के भीतर बेचते हैं तो उस पर आप के स्लैब की दर पर कर आरोपित होता है. अगर 3 वर्षों से अधिक समय तक जमा रखा जाए तब कर न केवल 20 प्रतिशत तक कम हो जाता है बल्कि पूंजीकत लाभार्जन के रूप में सूचीकरण का लाभ भी मिलता है. ऐसे मामलों में आप की धारित जमा के वर्षों में मुद्रास्फीति दिखलाने के लिए आप के निवेश की लागत बढ़ा दी जाती है. मतलब कि करों का भुगतान करने के लिए आप का लाभार्जन वास्तविक लाभार्जन से कम होगा.

अगर आप अपने डेट म्यूचुअल फंड्स से नियमित आय पाना चाहते हैं तो लाभांश भुगतान विकल्प आप के लिए उचित नहीं होंगे क्योंकि ऐसे मामले में आप के एनएवी से ही 28.3 प्रतिशत का लाभांश वितरण कर की कटौती की जाएगी.

इस का अर्थ यह है कि इस तरह के करारोपण के कारण आप के पास कम पैसा है. साथ ही, म्यूचुअल फंड्स में नियमित लाभांश भुगतान की गारंटी नहीं होती. किंतु, आप क्रमिक निकासी योजनाओं (एसडब्लूपी) के सहारे अपनी खुद की नियमित आय की आमद तैयार कर सकते हैं.

एसडब्लूपी से आप को निर्धारित नकदी आमदनी होती है और यह उम्मीद से ज्यादा टैक्स एफिशिएंट (कर कुशल) हो सकता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आप के द्वारा की गई निकासी की प्रत्येक किस्त के लिए केवल लाभार्जन हिस्सा ही कर योग्य होता है (अगर आप कर के दायरे में होंगे तभी) और मूलधन पर कोई कर नहीं लगता है. साथ ही, धारित अवधि के 3 वर्षों के बाद आप को ऋण फंड्स के लिए पूंजीगत लाभार्जन सूचीकरण लाभ का आनंद मिलता है. इस से आप के टैक्स और भी कम हो जाएंगे. आप अपने रिटायरमैंट फंड्स पर प्रतिलाभ बढ़ाने के लिए म्यूचुअल फंड्स का इस्तेमाल कर सकते हैं.

इन बातों पर भी दें ध्यान यहां कुछ बिंदु दिए जा रहे हैं, जिन पर आप रिटायरमैंट के पश्चात निवेशों की योजना बनाते समय विचार कर सकते हैं

  • अगर आप के पास रिटायरमैंट के बाद आय का कोई दूसरा स्रोत (जैसे कि पैंशन, मकान भाड़ा आदि) नहीं है, तो आप को अपनी रिटायरमैंट राशि को जोखिमभरे उपक्रमों में निवेश करने से बचना चाहिए. आप का उद्देश्य अपनी पूंजी की हिफाजत और नियमित मासिक आय उत्पन्न करना होना चाहिए. डाकघर, वरिष्ठ नागरिक योजना, बैंक की एफडी में कुछ जमा और सर्वोच्च मूल्यांकन वाले कौर्पोरेट डिपौजिट्स के साथसाथ कुछ हिस्सा निम्न जोखिम वाले अल्पकालिक डेट फंड्स में रखना ही आप के हित में होगा.
  • अगर आप के पास पैंशन जैसा कोई मासिक आय का स्रोत उपलब्ध है, तब आप कम जोखिम वाले डेट म्यूचुअल फंड्स में थोड़ा अधिक निवेश का विचार कर सकते हैं. जमाधन जोखिम वाली श्रेणियों (जिन्हें क्रैडिट अवसर फंड्स कहा जाता है) से या ब्याजदर जोखिम (दीर्घकालिक गिल्ट फंड्स) वाले निवेशों से बचें.
  • अगर आप के पास पर्याप्त मात्रा में दूसरी आय है और फिर भी आप धनवृद्धि करना चाहते हैं तो इस के लिए आप अपनी रकम को एसआईपी के रास्ते थोड़ाथोड़ा इक्विटी म्युचूअल फंड्स में विविधीकृत कर सकते हैं. इसे कम से कम 5 वर्षों तक जमा रखना होगा.

कुशलतापूर्वक विचार कर के निवेश करें ताकि आप अपना रिटायर्ड जीवन शांतिपूर्वक बिता सकें.       

(लेखिका फंड्स इंडिया की म्यूचुअल फंड शोध प्रमुख हैं).

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