भारत एक ऐसा देश है, जहां हर साल विश्व की तुलना में सब से अधिक प्रीमैच्योर जन्म लेने वाले बच्चों की मृत्यु होती है. इस की वजहें गर्भधारण के बाद से मां को सही पोषण न मिलना, गर्भधारण के बाद भी मां का वजनी काम करना, प्रीमैच्योर बच्चा जन्म लेने के बाद आधुनिक तकनीकी व्यवस्था का अस्पताल में न होना आदि कई हैं. इस के अलावा कुछ प्रीमैच्योर बच्चे 1 महीना ही जीवित रह पाते हैं.
तकनीक है आसान
इस बारे में नियोनेटोलौजी चैप्टर, ‘इंडियन ऐकेडेमी औफ पीडिएट्रिक्स’ के नियोनेटोलौजिस्ट डा. नवीन बजाज ‘इंटरनैशनल कंगारू केयर अवेयरनैस डे’ पर कहते है कि कंगारू केयर प्रीमैच्योर और नवजात शिशुओं के देखभाल की एक तकनीक है.
अधिकतर जिन शिशुओं का जन्म समय से पहले होने पर वजन कम हो, उन के लिए कंगारू केयर का प्रयोग किया जाता है. इस में बच्चे को मातापिता के खुले सीने से चिपका कर रखा जाता है, जिस से पेरैंट की त्वचा से शिशु की त्वचा का सीधा संपर्क होता रहता है, जो बहुत प्रभावशाली होने के साथसाथ प्रयोग में भी आसान होता है और शिशु का स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है. इस तकनीक को समय से पहले या समय पूरा होने के बाद पैदा हुए सभी बच्चों की अच्छी देखभाल के लिए लाभकारी होता है.
डा. नवीन कहते हैं कि कंगारू केयर तकनीक से शिशु की देखभाल के लिए सब से सही व्यक्ति उस की मां होती है, लेकिन कई बार कुछ वजहों से मां बच्चे को कंगारू केयर नहीं दे पाती. ऐसे में पिता या परिवार का कोई भी करीबी सदस्य, जो बच्चे की जिम्मेदारी संभाल सकें, मसलन भाईबहन, दादादादी, नानानानी, चाचीमौसी, बूआ, चाचा आदि में से कोई भी बच्चे को कंगारू केयर दे कर मां की जिम्मेदारी का कुछ भाग बांट सकता है.
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