होली पर हर इंसान कुछ नया करना चाहता है खासतौर पर गृहिणियां अपने घर की सजावट को ले कर बड़ी फिक्रमंद रहती हैं. होली में ऐसा क्या करें, क्या बदल दें कि घर के कोनेकोने में नएपन का एहसास जाग उठे? नए साल में क्या नया ले आएं कि देखते ही सब वाहवाह कर उठें? सब से खास होता है घर का ड्राइंगरूम, जिस में बाहर के लोग और पति के दोस्त आदि आ कर बैठते हैं.

वे ड्राइंगरूम के लुक से ही गृहिणी की पसंद, सलीका और क्रिएटिविटी का अंदाजा लगा लेते हैं. इसलिए अधिकतर महिलाएं नए साल में नया सोफा, नए परदे, नया कालीन खरीद कर ड्राइंगरूम का लुक बदलने को बेताब रहती हैं. इंटीरियर डैकोरेटर से भी खूब सलाहमशवरा करती हैं. इस सब में उन का काफी पैसा भी लग जाता है.

मगर इस बार नए साल में हम आप को घर में जो चेंज लाने की सलाह दे रहे हैं उस में न सिर्फ आप के पैसों की बचत होगी, बल्कि घर का लुक भी कुछ ऐसा बदल जाएगा कि लोग आप की सोच और कलात्मकता की तारीफ करते नहीं थकेंगे. इस के साथ ही आप के घर का यह नया लुक आप के अपनों के बीच संबंधों को भी प्रगाढ़ करेगा. आप एकदूसरे से गजब की नजदीकियां महसूस करेंगे. तो आइए जानें क्या है यह नया अंदाज:

कमरे की शोभा

आमतौर पर मध्यवर्गीय या उच्चवर्गीय घरों में प्रवेश करते ही सामने सुंदर फर्नीचर, परदे, शोपीस आदि से सुसज्जित ड्राइंगरूम नजर आता है. बंगले या कोठी में भी पहला बड़ा कमरा बैठक के रूप में अच्छे सोफासैट और सैंट्रल टेबल से सजा होता है. खिड़कीदरवाजों पर खूबसूरत परदे, साइड टेबल पर शोपीस, फ्लौवर पौट या इनडोर प्लांट्स कमरे की शोभा बढ़ाते हैं.

आजकल टू बीएचके और थ्री बीएचके फ्लैट में एक बड़े हौल में पार्टीशन कर के सामने की तरफ ड्राइंगरूम और पीछे की तरफ डाइनिंगरूम बनाया जाता है. कहींकहीं दोनों पोर्शन के बीच पतला परदा डाल कर अलग कर देते हैं, तो कहींकहीं इस की जरूरत महसूस नहीं होती है. ड्राइंगरूम और डाइनिंग एक ही हौल में होते हैं.

डाइनिंगरूम में डाइनिंग टेबल के साथ कुरसियां, लकड़ी के शोकेस में सजी क्रौकरी और दीवार में अलमारियां, अधिकांश घरों की रूपरेखा कुछ ऐसी ही होती है. बैडरूम भी महंगे बैड, ड्रैसिंग टेबल, साइड टेबल्स, अलमारियों आदि से सुसज्जित होता है. फिर बच्चों का स्टडीरूम, जिस में कंप्यूटर टेबल चेयर, किताबों की अलमारी, छोटी सेट्टी, बैड, स्टूल, बीन बैग जैसी बहुत सी चीजें भरी होती हैं.

एक नया घर खरीदें तो उस में फर्नीचर पर होने वाला खर्चा लाखों में आता है. अमीर व्यक्ति हों तो करोड़ों खर्च देते हैं फर्नीचर पर. लेकिन विभा ने अमीर होते हुए भी घर को सजाने में फर्नीचर को महत्त्व नहीं दिया. उन के घर में नाममात्र का फर्नीचर कहींकहीं ही दिखता है. विभा का पूरा घर जमीन पर सजा हुआ है. ड्राइंग से ले कर बैडरूम तक फर्श पर है.

कलात्मक और रईसी लुक

विभा के घर के फाटक में प्रवेश करते ही हरेभरे बगीचे के बीच बनी पत्थर की एक सड़क पोर्टिको तक जाती है. 3 छोटी सीढि़यों के दोनों सिरों पर एक के ऊपर एक रखे 3-3 कलात्मक कलश और उन पर रखे फूल आगंतुकों का स्वागत करते हैं. सीढि़यां चढ़ते ही बाईं साइड पर जूतेचप्पल उतारने की व्यवस्था है क्योंकि दरवाजे के पास से ही उन का पूरा ड्राइंगरूम खूबसूरत मखमली कारपेट से आच्छादित है.

सामने की दीवार से ले कर आधे कमरे तक ऊंचे गद्दों पर रंगीन चादर के ऊपर विभिन्न रंगों और डिजाइनों के अनेक गावतकिए किसी राजेमहाराजे के दरबार सा एहसास दिलाते हैं. बीचबीच में चायपानी आदि के कपगिलास रखने के लिए साधारण लकड़ी के जो छोटे स्टूल्स हैं उन के टौप पर विभा ने स्वयं औयल पेंट से खूबसूरत बेलबूटे उकेरे हैं, जो देखने में कलात्मक लगते हैं और रईसी लुक देते हैं.

ड्राइंगरूम के दूसरे कोने पर छोटे गद्दे पर मखमली चादर और गावतकिए लगा कर संगीत कौर्नर बनाया गया है जहां विभा ने तानपुरा और हारमोनियम रख रखा है. फुरसत के क्षणों में वे इस कोने में बैठ कर खुद रागरागनियों में डूब जाती हैं. कलात्मक नेचर की विभा के अधिकतर दोस्त गीतसंगीत में रुचि रखने वाले हैं.

वीकैंड पार्टी या किसी के जन्मदिन के अवसर पर आए मेहमानों के लिए मुख्य आकर्षण यह संगीत कौर्नर ही होता है. वाद्ययंत्र छेड़ते ही हरकोई गाने के लिए उत्सुक दिखने लगता है.

गावतकियों के सहारे फर्श पर सजी महफिल जो मजा देती है वह लुत्फ महंगे सोफों पर बैठ कर तो कतई नहीं उठाया जा सकता है. जमीन पर सब के साथ बैठने से अजनबियों के बीच भी घर जैसा वातावरण बन जाता है और बातचीत में आत्मीयता स्वयं ही उत्पन्न हो जाती है.

सुंदर दिखेगा कोनाकोना

ड्राइंगरूम की एक दीवार में बनी शैल्फ में प्रसिद्ध लेखकों की किताबें करीने से सजी हुई हैं, शैल्फ के नीचे 2 छोटे बीन बैग रखे हैं, जहां आराम से बैठ कर किताबें पढ़ने का आनंद लिया जा सकता है. कोनों में रखी तिपाइयों पर फ्लौवर पौट में ताजे फूल और सुंदर कैंडल स्टैंड में सुगंधित कैंडल्स लगी हैं. कुल मिला कर विभा का ड्राइंगरूम एक सुंदर आश्रम सा प्रतीत होता है.

घर के भीतर एक छोटे बरामदे के साथ ओपन किचन और डाइनिंग एकसाथ हैं. डाइनिंगहौल के फर्श पर भी कारपेट बिछा है. विभा ने प्राचीन पद्धति के अनुरूप 1 फुट की ऊंचाई वाले लंबे तख्त को डाइनिंग टेबल का रूप दे कर उसे कमरे के बीचोंबीच लगाया है. इस पर सफेद चादर बिछा कर बीच में एक छोटा फ्लौवर पौट ताजे फूलों का रखा है. इस नीची टेबल के चारों तरफ बैठने के लिए कारपेट पर चौकोर गद्दियां बिछाई गई हैं जिन पर खाने के लिए पुराने स्टाइल में आलथीपालथी मार कर बैठते हैं. फर्श से कम स्तर पर उठा हुआ यह मंच फर्श पर बैठने को अधिक आरामदायक और सुविधाजनक बनाता है खासकर वृद्ध लोगों के लिए.

विभा कहती हैं कि पुराने ग्रंथों में भोजन करने का यह तरीका बहुत उत्तम माना गया है. किचन से गरमगरम खाना और चपातियां आतीजाती हैं और घर के सभी सदस्य एकसाथ नीचे बैठ कर खाने का लुत्फ उठाते हैं. विभा के घर आने वाले मेहमानों को भोजन परोसने का यह तरीका बहुत लुभाता है.

पुराने समय की अलग बात

पुराने समय को याद करें तो भारतीय भोजन पद्धति में भी रसोईघर में चूल्हे के निकट ही आसन बिछा कर गृहिणी सब को भोजन परोसती थी और तवे से उतरी गरमगरम रोटी 1-1 कर सब की थाली में डालती जाती थी.

विभा अपने अधिकतर काम नीचे जमीन पर बैठ कर करती हैं. इस से उन के कूल्हों, पैरों और घुटनों की अच्छी ऐक्सरसाइज होती है. विभा के घर के किसी भी सदस्य को मोटापे और जोड़ों के दर्द की समस्या नहीं है और उस की वजह है रहनसहन का यह तरीका, जिस में सभी कार्य जमीन पर बैठ कर किए जाते हैं. यहां तक कि इस घर में सब के सोने की व्यवस्था भी जमीन पर ही की गई है.

घर के किसी कमरे में कोई पलंग नहीं है. इस की जगह कारपेट पर मोटे गद्दे और उन पर चादरतकिए की व्यवस्था है. प्रत्येक गद्दे के सिरहाने दोनों साइड पर रखे छोटे स्टूल पर टेबल लैंप लगा है, साथ ही आवश्यक सामान रखने की व्यवस्था है.

बाजार की चकाचौंध

पारंपरिक रूप से भी भारतीय घरों में लोग हमेशा फर्श पर कम ऊंचाई पर बैठने के तख्त रखते थे या फर्श पर ही बैठने का इंतजाम करते थे. इन दिनों सिमटते घरों के कारण फर्नीचर के बजाय एक बार फिर यही परंपरा लोकप्रिय हो रही है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जगह घेरने वाले फर्नीचर को हटा देने से कमरे में अच्छीखासी जगह हो जाती है और अधिक लोगों को वहां संयोजित किया जा सकता है.

फर्श पर बैठने से भारी, महंगे फर्नीचर का खर्च भी बचता है और उस बचत को हम किसी अन्य जरूरी कार्य के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. हर चीज फर्श पर होने से छोटे बच्चो के ऊंचाई से गिरने और चोट लगने, फर्नीचर से गिर कर या उस से टकरा कर अपने को जख्मी कर लेने का खतरा भी नहीं रहता है. फर्श पर बैठक रखने से बच्चों की सुरक्षा की चिंता करने की जरूरत नहीं रहती है.

बाजार ने अपनी चकाचौंध से हमें आकर्षित किया और हम ने अपने घरों को अनावश्यक और महंगे फर्नीचर से भर लिया. बाजार हर पल किसी न किसी नई चीज से हमें लुभाने की कोशिशों में रहते हैं. पर क्या कभी हम ने इस बात पर ध्यान दिया है कि सोफे या ऊंची कुरसियों पर अलगअलग बैठ कर हम कितना संकुचित सा महसूस करते हैं, एकदूसरे से कैसे फौर्मल यानी औपचारिक से होते हैं, जबकि जमीन पर इकट्ठे बैठने से हमारे बीच आत्मीयता बढ़ती है. हम खुल कर हंसीमजाक करते हैं. हमारे बीच कोई बनावटीपन नहीं रहता.

याद करिए जब जाड़े की नर्म धूप में मां चटाई बिछा कर बैठती थीं तो कैसे सभी धीरेधीरे उस चटाई पर आ जमते थे. वहीं बैठ कर खाना खाते और गलबहियां करते दिन गुजारते थे. वैसी इंटिमेसी महंगे फर्नीचर पर बैठ कर तो कभी पैदा नहीं हो सकती है. तो आइए इस नए साल में प्रवेश करते हुए हम अपनों से नजदीकियां बढ़ाएं और घर को फर्नीचर से आजाद करें.

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