होली रंगो का त्योहार है ,रंग-गुलाल हमारे जीवन में महत्वर्पूण भूमिका अदा करती है. आदि काल से मानव सभ्यता मे रंगो का महत्वर्पूण भूमिका रहा है. रंगो के इतिहास , कृत्रिम रंगो की जानकारी ,प्राकृतिक रंगो और मिलावटी रंगो के बारे में जानकारी देता , यह आलेख.

( राधा-कृष्णा की गुलाल से यादगार बनने वाली होली समय के साथ अपने बदलते स्वरूपो के साथ मानव-सभ्यता पर अपना असर डालते हुए होली के रंग, आज के समय मे पूरी तरह बदल गया है. जिन रंगो को कपडे, जूट,मशीन या प्लास्टिक रंगने के लिए बनाया गया था , आज उन्ही रंगो से हम अपने अंग रंगते है.)

रंगो का इतिहास

रंगो का इतिहास काफी पुराना है. मानवविकास के पहले चरण से रंगो का खुल कर प्रयोग करता आ रहा है.कई मानव सभ्यता इस बात की गवाही देती नजर आती हैं. रामायण काल मे ंरंगो का उपयोग बखूबी होता था ,तभी तो महारानी कैकयी अपने कक्ष को रंगो से सजवाया करती थी , महाभारत काल मे भी पंडावो का इन्द्रप्रथरंगो के उपस्थिति को बताता है. भारत के कई मध्यकालीन शासक रंगो का जमकर उपयोग करते थे , तभी तो चित्रकला उन शासको के पसंदिदा र्काय में से एक होता था. हडप्पा-मोहनजोदडो की सभ्यता अपने आप मे मानव की सबसे बडी सभ्यता मानी जाती है , इस सभ्यता काल में भी रंगो का उपयोग मानव द्वारा किया जाता था , जैसे कि खोदई से प्राप्त अवशेष बता रहे है .

यह कहना गलत नही होगा कि रंग भारतीय परंपरायो मे आदि काल से ही रचा बसा है.अगर आप सोच रहे है कि रंगो का उपयोग कब से हो रहा है , तो इस सवाल का जवाब देना थोडा मुश्किल जरूर है ,क्योकि प्रमाणिक रूप से रंगो के पहले प्रयोग का कोई जिक्र नही है. हां बस इतना कहा जाता है कि पांच हजार र्वष पूर्व रंग मानव जीवन के अहम अंग बन चुके है. तभी तो वेद , पुराण एवम् उपनिष्दो मे हर जगह रंगो का जिक्र है. आदि काल से आधुनिक काल तक रंगो का उपयोग नित्य हमारे जीवन मे नया जगह बनाने लगा , तभी तो चित्रकारी , छायाकारी, सौदर्य और सजावट को इतना बढावा मिला. पहले भी रंग हमारे जीवन के अहम अंगो मे एक हुआ करते थे और आज भी है. यही वजह है कि इस आधुनिक काल मे भी हमलोग शुभ-अशुभ कार्यो के लिए अलग-अलग रंगो का उपयोग करते है.कृत्रिम रंगदुनिया का पहला कृत्रिम रंग तब बना ,जब प्रोफेसर विलियन पार्किन एनीलीन से मलेरिया की दवा कुनैन बनाने का प्रयास कर रहे थे, परन्तु कुनैन तो नही बना लेकिन पर्पल यानी जामुनी रंग की उत्पति हुई.राँयल कालेज आँफ केमिस्टी में 1856 में र्निमित यह रंग दुनिया का पहला कृत्रिम रंग था. इस के बाद प्रयोगशाला में कृत्रिम रंगबनाने के कार्य मे वैज्ञानिको को कई सफलता मिलते रही और बनता रहा कृत्रिम रंग. कुछ ही बर्षो मे कई प्रकार के कृत्रिम रंग बन कर तैयार हो गए.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...