आज की भागदौड़ भरी जिंदगी के बीच रंगोली बनाने के तौर तरीके भी काफी तेजी से बदल रहे हैं. रंगोली जमीन या कपड़े पर बनाई जाती है, पर आजकल कागज, प्लाईवुड, हार्ड बोर्ड, सनमाइका, कैनवास आदि पर भी बनाई जाने लगी है.
पहले त्योहारों के आने से पहले ही महिलाएं रंगोली बनाने की तैयारी में जुट जाती थीं, लेकिन अब तो त्योहारों के मौके पर कागज और प्लास्टिक पेपर पर प्रिंटेड रंगोली भी धड़ल्ले से बिकती है. जिन्हें रंगोली बनाना नहीं आता या जिन के पास समय की कमी है, वे अपने घरों में रंगोली का स्टीकर चिपका कर ही उत्सवी माहौल बनाने की कोशिश करते हैं.
अद्भुत कला
पटना में रंगोली के स्टीकरों का थोक कारोबार करने वाले विनीता सेल्स के उपेंद्र सिंह बताते हैं कि हर साल दीवाली के मौके पर करीब 3 करोड़ के रंगोली के स्टीकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में बिक जाते हैं. खुदरा बाजार में एक स्टीकर साइज के हिसाब से 20 से 250 तक में बिकता है.
आमतौर पर रंगोली बनाने के लिए फूलों, रंगों, अबीर, चावल दोनों और लेई आदि का इस्तेमाल किया जाता है. देखने में बिना किसी तामझाम वाली इस कला का अपना अलग आकर्षण, खूबसूरती और पहचान है. इस में भारतीय कला की बुनियादी सोच छिपी हुई है.
नया रंग नई उमंग
पटना के गुरुदेव पेंटिंग क्लासेज की कलाकार अनुपम कहती हैं कि हमारे देश में कभी भी कला के लिए कला वाली सोच नहीं मानी गई. यहां हर कला के पीछे कोई न कोई मकसद जरूर होता है. हर त्योहार, रस्म में कला का खूबसूरती से इस्तेमाल कर माहौल को रंगीन और उत्सवी बना दिया जाता रहा है.
रंगोली बनाने में ज्यादातर कमल और सूरजमुखी के फूल, शंख, दीपक, सूरज, पक्षी, मछली आदि के चित्र उकेरे जाते हैं. खास बात यह है कि ज्यादातर रंगोली गोलाई में ही बनाई जाती है. इसे हाथ की उंगलियों, बांस की सींक, कपड़े आदि से बनाया जाता है.
रंगोली बनाने में सफेद रंग का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इसे शांति का प्रतीक माना जाता है और जहां शांति का माहौल होता है, वहीं तरक्की आती है. भारत की काफी पुरानी कला परंपरा में रंगोली शामिल है और भारतीय कला में इसे 64वीं कला का नाम दिया गया है.
रंगोली की खास बात
दक्षिण भारत में रंगोली की परंपरा काफी मजबूत है. रंगोली की खूबसूरती और इस का मोह आज के भागदौड़ भरे जीवन में भी कायम है. लोग खुद भले ही रंगोली न बना सकते हों पर बाजार में मौजूद रंगोली के स्टीकरों को चिपका कर अपनी संस्कृति से जुड़ाव को महसूस तो कर ही सकते हैं.
ओडिशा के मशहूर कलाकार अनिल कुमार बल बताते हैं कि बिहार और मध्य प्रदेश में रंगोली के तरह-तरह के नमूने मशहूर हैं.
बिहार के दरभंगा जिले में ‘धूली चित्रा’ के नाम से बनाई जाने वाली रंगोली चावल के घोल से बनाई जाती है. मध्य प्रदेश में मौनसून के खत्म होने पर घरों के दरवाजों पर फूलों और पत्तियों से रंगोली बनाई जाती है. राजस्थान की रंगोली की सब से खास बात यह है कि उस में चटक रंगों का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है.
विविध नाम व रूप
केरल में ओणम के मौके पर बनाई जाने वाली रंगोली में फूलों का इस्तेमाल किया जाता है. फर्श पर रंगोली का चित्र बना कर खाली जगहों को गुलाब, गेंदा, सूरजमुखी, चमेली आदि फूलों की पंखुडि़यों को सलीके से भरा जाता है.
हर राज्य में रंगोली को अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है. बिहार में इसे अरिपन तो उत्तर प्रदेश में चौक पूरना कहा जाता है. राजस्थान में इसे मांडना के नाम से पुकारा जाता है, तो बंगाल में अल्पना कहा जाता है. कर्नाटक में रंगवल्ली तो तमिलनाडु में कोल्लम के नाम से पुकारा जाता है.