रसोई छोटी हो या बड़ी, वह परिवार की मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक जरूरतों को पूरा करती है, कुकिंग करने वाले का परफैक्ट मूड बनाती है. यानी हर रसोई कुछ कहती है. कैसे, बता रही हैं ललिता गोयल.

बचपन में मेरे पास एक किचन सैट था जो मुझे मेरी मां ने गिफ्ट किया था. उस किचन सैट से जुड़ी यादें, भावनाएं आज भी मेरे जेहन में ताजा हैं. विवाह के बाद अपनी रसोई डिजाइन करवाते समय मैं ने अपने डिजाइनर से उन्हीं खास यादों, रंगों, खुशनुमा पलों को समेटने को कहा ताकि वे यादें, खुशनुमा पल मेरी जिंदगी, मेरे परिवार में हमेशा रहें और मैं अपने परिवार को वे सारी खुशियां अपनी रसोई के माध्यम से परोस सकूं जो मैं अपने छोटे से किचन सैट से खेलखेल कर महसूस करती थी.

आप हैरान हो रहे होंगे कि क्या बचपन की यादों का रसोई की डिजाइन पर असर होता है. जी हां, वास्तव में ऐसा होता है. रसोई के डिजाइन के पीछे हर व्यक्ति की एक मनोवैज्ञानिक सोच होती है जो उस के आपसी रिश्तों, आदतों, सेहत पर प्रभाव डालती है. कोई भी व्यक्ति ऐसी रसोई कभी नहीं चाहेगा जो उसे उस स्थान की याद दिलाए जहां उस ने अपने मातापिता को सदैव लड़तेझगड़ते देखा था. हर व्यक्ति ऐसी रसोई चाहता है जहां से पूरे परिवार की खुशियां जुड़ी हों और जहां से आने वाले व्यंजनों की खुशबू सारी चिंताओं को दूर कर के आपसी रिश्तों में मिठास भर दे. इसलिए एक अच्छा किचन डिजाइनर किसी के लिए भी किचन डिजाइन करते समय उस के परिवार की जरूरतों, उस के इतिहास, उस के स्वभाव व आपसी रिश्तों की जानकारी भी लेता है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें