खाने पीने की वस्तुओं में आज मिलावट की जा रही है. शुद्ध हरी सब्जियों का मिलना मुश्किल हो गया है. लौकी, तुरई, पालक, फूलगोभी, पत्तागोभी आदि सब्जियों में तरहतरह की रायायनिक खाद के साथ ही जहरीले कीटनाशक मिला कर खुलेआम बेचा जा रहा है. हम न चाहते हुए भी जहरीली सब्जियां खाने को मजबूर हैं.
मध्य प्रदेश के भोपाल शहर में रहने वाले रिटायर्ड अफसर जी एस कौशल अपने घर की छत पर साल के बारहों महीने हरी सब्जियां उगाते हैं. इस बारे में वे बताते हैं कि जहरीली सब्जियों से नजात पाने के लिए उन के दिमाग में यह बात आई.
घर से निकलने वाले गचरे, खाने के जूठन को वे फेंकते नहीं हैं, बल्कि इस से वे खाद तैयार करते हैं, जो छत में लगे पौधों को देने के काम में आती है. जी एस कौशल अपने दोमंजिले मकान की छत पर सब्जियों के अलावा अमरूद, नीबू, अनार और मुनगा के पेड़ भी लगाए हुए हैं.
कृषि विभाग से सेवानिवृत्त हुए जी एस कौशल बताते हैं, ‘‘वे कभी सब्जी के लिए बाजार का रुख नहीं करते. मुझे घर की छत पर तैयार नर्सरी से सब्जी मिल जाती है, जो एकदम तरोताजा होती है. इन सब्जियों की एक खास बात यह भी है कि मैं देशी बीजों से ही सब्जी की फसल तैयार करता हूं. पौधों में स्वनिर्मित जैविक खाद का प्रयोग करता हूं. खाद निर्माण के लिए छत पर एक हिस्से में व्यवस्था कर रखी है. गोबर, गौमूत्र, गुड़, सड़ेले फल, छिलके और हरा कचरा मिला कर खाद तैयार करता हूं. इस के लिए सभी वस्तुओं को पानी में डाल कर उस में गुड़ डाल देता हूं. 2 से 3 महीनों में जैविक खाद बन कर तैयार हो जाती है.’’