बचपन में मेरे पास एक किचन सैट था जो मुझे मेरी मां ने गिफ्ट किया था. उस किचन सैट से जुड़ी यादें, भावनाएं आज भी मेरे जेहन में ताजा हैं. विवाह के बाद अपनी रसोई डिजाइन करवाते समय मैं ने अपने डिजाइनर से उन्हीं खास यादों, रंगों, खुशनुमा पलों को समेटने को कहा ताकि वे यादें, खुशनुमा पल मेरी जिंदगी, मेरे परिवार में हमेशा रहें और मैं अपने परिवार को वे सारी खुशियां अपनी रसोई के माध्यम से परोस सकूं जो मैं अपने छोटे से किचन सैट से खेलखेल कर महसूस करती थी.

आप हैरान हो रहे होंगे कि क्या बचपन की यादों का रसोई की डिजाइन पर असर होता है. जी हां, वास्तव में ऐसा होता है. रसोई के डिजाइन के पीछे हर व्यक्ति की एक मनोवैज्ञानिक सोच होती है जो उस के आपसी रिश्तों, आदतों, सेहत पर प्रभाव डालती है. कोई भी व्यक्ति ऐसी रसोई कभी नहीं चाहेगा जो उसे उस स्थान की याद दिलाए जहां उस ने अपने मातापिता को सदैव लड़तेझगड़ते देखा था. हर व्यक्ति ऐसी रसोई चाहता है जहां से पूरे परिवार की खुशियां जुड़ी हों और जहां से आने वाले व्यंजनों की खुशबू सारी चिंताओं को दूर कर के आपसी रिश्तों में मिठास भर दे. इसलिए एक अच्छा किचन डिजाइनर किसी के लिए भी किचन डिजाइन करते समय उस के परिवार की जरूरतों, उस के इतिहास, उस के स्वभाव व आपसी रिश्तों की जानकारी भी लेता है.

किचन रिवोल्यूशन

रसोई डिजाइन करते समय इस बात का ध्यान भी रखा जाता है कि उस में अधिक से अधिक सामान आ जाए और वह फैलीफैली न लगे. एक ऐसी रसोई जिस के रंग, लाइट, खिड़कियां, वहां रखा सामान काम करने वाले की मनोवैज्ञानिक जरूरत के आधार पर हों तो वे उस व्यक्ति को सेहतमंद व स्वादिष्ठ खाना बनाने के लिए प्रेरित करते हैं.

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