घर चाहे जितना भी बड़ा हो अगर उस में गृहवाटिका न हो तो आकर्षक नहीं लगता. गृहवाटिका ही घर को खूबसूरत लुक देती है. यदि आप की भी पेड़पौधों में रुचि है और आप के घर में पर्याप्त जगह है तो आप भी अपने घर में गृहवाटिका लगा सकते हैं.
गृहवाटिका में पौधों की वृद्धि व उत्पादन आदि वाटिका के प्रबंध पर निर्भर करते हैं. रोजाना की जरूरत के मुताबिक, फूल, सब्जियां व फल प्राप्त करने के लिए गृहवाटिका का प्रबंध इस तरह करना चाहिए कि कम से कम लागत व समय में, अधिकतम उत्पादन तो मिले ही, साथ ही वह स्वच्छ तथा सुंदर भी बनी रहे.
निराईगुड़ाई
पौधों की उत्तम वृद्धि व उपज के लिए क्यारियों व गमलों की सफाई जरूरी है. इस के लिए समय से निराईगुड़ाई करनी चाहिए. निराईगुड़ाई करने से खरपतवार नियंत्रण के साथसाथ भूमि में वायु संचार बढ़ जाता है जिस से जड़ों को अपना कार्य करने में आसानी रहती है, पोषक तत्त्व जड़क्षेत्र तक पहुंच जाते हैं और वाष्पन की क्रिया अवरुद्ध होने से सिंचाई की आवश्यकता कम हो जाती है.
फसल के साथ उगे अवांछित पौधे यानी खरपतवार भी फसल के पौधों के साथसाथ जमीन से पोषक तत्त्व व पानी ले लेते हैं और वे पत्तियों तक प्रकाश के पहुंचने में बाधक भी होते हैं. ऐसी स्थिति से बचने के लिए समय से निराईगुड़ाई करनी जरूरी है. निराईगुड़ाई करते समय पौधे के तने पर किसी प्रकार की खरोंच लग जाने पर उस में बोडो पेस्ट लगा देना चाहिए.
गृहवाटिका में निराईगुड़ाई करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :
- निराईगुड़ाई इस तरह करनी चाहिए कि पौधों की जड़ों व तने को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे.
- यदि खड़ी फसल में उर्वरक दी जाती है तो उसे जमीन में मिलाने के लिए निराईगुड़ाई जरूरी होती है.
- बीज की बुआई के बाद क्यारी की मिट्टी कड़ी हो जाने पर उसे भुरभुरी बनाने के लिए हलकी निराईगुड़ाई करनी चाहिए.
- बरसात में गुड़ाई करने के बाद पौधों पर मिट्टी भी चढ़ा देनी चाहिए ताकि उन्हें पानी की अधिकता से बचाया जा सके.
- पौधशाला में निराई के लिए किसी पतली खुरपी का प्रयोग करना चाहिए ताकि पौध को किसी तरह का नुकसान न हो.
- फलदार पौधों में निराईगुड़ाई सक्रिय जड़ क्षेत्र में करनी चाहिए. गुड़ाई करने के बाद उन्हें 2-3 दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिए, फिर हलकी सिंचाई करनी चाहिए.
पलवार लगाना
पानी की कमी वाले क्षेत्रों में गृहवाटिका में पलवार लगाने से सिंचाई की संख्या में कमी आती है, खरपतवार कम उगते हैं जबकि पैदावार बढ़ती है और उपज के दूसरे गुणों में भी बढ़ोत्तरी होती है. पलवार लगाने से पहले क्यारियों की सफाई कर देनी चाहिए और एक हलकी सिंचाई भी करनी चाहिए. इस के बाद पलवार की 5-10 सैंटीमीटर मोटी परत खाली जगहों पर बिछा देनी चाहिए. पलवार बिछाते समय यह ध्यान रखें कि कोई भी शाखा पलवार के अंदर दबी न रह जाए. पलवार की मोटाई सभी जगह एकसमान रहनी चाहिए.
सहारा देना
लतावली फसलों जैसे लौकी, तोरई, खीरा, करेला, अंगूर, स्वीट-पी आदि में यदि पौधों को सुचारु रूप से सहारा दे दिया जाए तो फसल की बढ़वार सही होती है व फलों की गुणवत्ता भी सुधरती है. लौकी में देखा गया है कि यदि पौधों को सुचारु ढंग से सहारा दिया जाए और फलों को लटकने का अवसर मिल जाए तो फल लंबे, चिकने व सुंदर प्राप्त होते हैं. इस तरह के पौधों को ज्यादातर बाड़ के पास उगाना चाहिए ताकि ये बाद में बाड़ पर चढ़ जाएं और अच्छी उपज मिल सके. डहेलिया, ग्लेडिओलस, गुलदाऊदी आदि फूलों को सीधा रखने के लिए बांस की रंगीन खपच्चियों से भी सहारा दिया जा सकता है. वहीं, अंगूर की लता को सहारा देने के लिए तार का उपयोग भी किया जा सकता है.
गृहवाटिका की सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है जितनी कि उसे लगाना. अवांछित पशुपक्षियों के अलावा राहगीरों व बच्चों से भी गृहवाटिका के पौधों का बचाव करना पड़ता है. यदि घर के चारों ओर पक्की चारदीवारी नहीं है तो कांटेदार तार या उपयुक्त पौधों की बाड़ की रोक लगा देनी चाहिए.
खाद व उर्वरक प्रबंध
पौधों की वृद्धि व उत्पादन के लिए 16 पोषक तत्त्वों की आवश्यकता पड़ती है. इन पोषक तत्त्वों के अभाव में पौधों की वृद्धि रुक जाती है और पैदावार में कमी आ जाती है. पौधों के पोषक तत्त्वों को 3 भागों में बांटा गया है. पहले वे पोषक तत्त्व जिन की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है, मुख्य तत्त्व कहलाते हैं, जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटैशियम. दूसरे, वे पोषक तत्त्व जिन की आवश्यकता मध्यम मात्रा में होती है, द्वितीयक तत्त्व कहलाते हैं, जैसे गंधक, कैल्शियम व मैग्नीशियम. तीसरे, ऐसे पोषक तत्त्व जिन की कम मात्रा में आवश्यकता होती है, उन्हें सूक्ष्म तत्त्व कहते हैं, जैसे लोहा, जस्ता, तांबा, क्लोरीन व मैग्नीज.
पौधों की वृद्धि में सहायक पोषक तत्त्वों की आवश्यकता की पूर्ति आमतौर पर मिट्टी से हो जाती है. पर कुछ समय बाद मिट्टी में इन की कमी होने लगती है, ऐसी स्थिति में खाद व उर्वरकों की आवश्यकता होती है. पौधों को संतुलित पोषण प्रदान करने के लिए गोबर की खाद (60 भाग), उपजाऊ मृदा (3 भाग), बालू मृदा (2 भाग), नीम की खली (3 भाग), वर्मी कंपोस्ट (7 भाग), तालाब की मृदा (5 भाग), कंपोस्ट खाद (5 भाग), काकोपिट (5 भाग), एनपी के उर्वरक मिश्रण (10 भाग) व जिप्सम (अल्प मात्रा) का संयुक्त मिश्रण बना कर उसे पौधे के जड़क्षेत्र व गमलों में पौधों के उत्पादन व उम्र के आधार पर थोड़ीथोड़ी मात्रा में देते रहना चाहिए.
कटाईछंटाई
गृहवाटिका में कुछ बहुवर्षीय पौधे भी लगाए जाते हैं, जिन की कटाईछंटाई की आवश्यकता होती है. शोभाकारी झाडि़यों, फलदार वृक्षों (जैसे अंगूर, आड़ू, संतरा, आलूबुखारा, नीबू आदि) और कुछ बहुवर्षी सब्जियों (जैसे परमल, कुंदरू आदि) में कटाईछंटाई की आवश्यकता पड़ती है.
अधिकांश पर्णपाती पौधों में कटाईछंटाई दिसंबर से मार्च तक की जाती है जबकि सदाबहार पौधों में जूनजुलाई व फरवरीमार्च, दोनों मौसमों में कर सकते हैं. रोगग्रस्त व अनावश्यक शाखाओं को निकाल देना चाहिए. ऐसी शाखाओं को काटने के लिए तेज चाकू का प्रयोग करना चाहिए तथा कटाईछंटाई के बाद बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए.
खाद व उर्वरकों के प्रयोग में सावधानियां
- फसल की जरूरत के मुताबिक ही खाद और उर्वरक दिए जाएं. यदि आवश्यकता से अधिक उर्वरक दिए जाएंगे तो पौधों के अंकुरण पर कुप्रभाव पड़ेगा.
- खाद और उर्वरक समय पर ही दिए जाएं. यदि वे समय से पहले या बाद में दिए जाते हैं तो उन का सदुपयोग नहीं हो पाता है.
- खाद और उर्वरक देते समय जमीन में नमी की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए वरना फसल पर कुप्रभाव पड़ता है.
- यदि उर्वरक घोल के रूप में दिया जा रहा है तो पानी में उन की निर्धारित मात्रा ही घोली जानी चाहिए वरना पौधों को नुकसान पहुंच सकता है.
- यदि उर्वरक ‘टौप ड्रैसिंग’ के रूप में दिया जा रहा है तो मौसम साफ होना चाहिए. उर्वरक तने के पास नहीं डालना चाहिए और ओस पड़ी हुई नहीं होनी चाहिए.