हुनर जहां भी होता है वह कोई न कोई रचनात्मक काम कर ही लेता है. जंगलों में पाए जाने वाले पेड़ों से टूट कर गिरने वाली पत्तियों और फलों का पहले कोई उपयोग नहीं होता था. लेकिन अब पहाड़ी इलाकों में रहने वालों ने इन पत्तियों और फलों का उपयोग कर के लकड़ी के फूल और फ्लावर पौट बना कर घरों की सजावट में इन का उपयोग करना शुरू कर दिया है. पर्यावरण के प्रति जागरूक रहने वाले तो इन लकड़ी के फूलों को प्लास्टिक के सजावटी फूलों से भी ज्यादा पसंद करने लगे हैं. लकड़ी के फूलों के बढ़ते उपयोग ने पहाड़ों पर रहने वालों को रोजगार का नया रास्ता दिखा दिया है. जंगलों में पड़ी बेकार पत्तियां और फल अब मुनाफे का धंधा बन गए हैं.
मणिपुर के बिसुनपुर जिले में साइतोन गांव में रहने वाली अब्राहम प्रेमिला चानु कहती हैं, ‘‘लकड़ी के सजावटी फूल और फ्लावर पौट का निर्माण सिखाने का कोई स्कूल नहीं है. हमारे आसपास के लोग इन्हें बनाते हैं. उन्हें बनाते देख कर और उन के साथ काम कर के हम लोगों ने यह काम सीख लिया. ग्रामीण विकास विभाग देश के विभिन्न हिस्सों में हस्तकला को प्रोत्साहन देने के लिए जब प्रदर्शनियां लगाता है, तब हमें भी वहां अपने वुडन फ्लावर बेचने का मौका मिल जाता है.’’ प्रेमिला अपनी बहन मेघामला और भाई रमानंदा के साथ वुडन फ्लावर बनाने का काम करती हैं.
पेड़ों की पत्तियों का उपयोग
वुडन फ्लावर में लिए सब से ज्यादा इस्तेमाल पेड़ों की सूख चली पत्तियों का होता है. प्रेमिला चानु बताती हैं, ‘‘पीपल और साखू के पत्तों के अंदर पाए जाने वाले रेशे मजबूत होते हैं, इसलिए इन की पत्तियों को पानी में डाल कर सड़ाया जाता है. जब पत्तियों का हरा वाला हिस्सा पूरी तरह से सड़ जाता है तब उन्हें बहुत सावधानी से साफ किया जाता है. ‘‘साफ होने के बाद पत्तियों में केवल रेशे रह जाते हैं. तब इन पत्तियों को सूखने के लिए रख दिया जाता है. सूखने के बाद ये सफेद रंग की हो जाती हैं. अब इन्हें मनचाहे रंग में रंगा जा सकता है. इन्हें मोड़ कर लकड़ी की पतली सींक पर चिपका दिया जाता है. पत्तियां चिपकाने से पहले लकड़ी की सींक को पेंट कर के खूबसूरत बनाया जाता है. एक सींक 10 से 20 रुपए प्रति फ्लावर के हिसाब से बिकती है.’’