रवीना अपने 6 वर्षीय बेटे प्रख्यात के साथ शाम को घूम रही थी कि तभी उसके सामने से एक काली बिल्ली निकली जिसे देखकर प्रख्यात एकदम डर गया और घबराते हुए अपनी मां से बोला, "मां अब क्या होगा हमारे सामने से तो काली बिल्ली रास्ता काटकर चली गयी."

"होगा क्या कुछ नहीं बिल्ली के निकल जाने से क्या होता है."

"अरे आपको नहीं पता दादी कहतीं हैं कि यदि काली बिल्ली सामने से रास्ता काट जाती है तो बहुत अपशकुन होता है."

प्रख्यात की ये बातें सुनकर रवीना एकदम परेशान हो गयी क्योंकि वह बिल्कुल भी नहीं चाहती थी कि इतनी कम उम्र में प्रख्यात किसी भी अंधविश्वास के चक्कर में पड़े. घर आकर उसने प्रख्यात को तो समझाया ही साथ ही अपनी सास को भी प्रख्यात को किसी भी तरह के अंधविश्वास वाली कहानियां न सुनाने को कहा.

वास्तव में क़िस्से कहानियां हमारे जीवन के अभिन्न अंग होते हैं मोबाइल और टी वी के आगमन से पहले कहानियां बच्चों को जीवन के मूल्यों को सिखाने और मनोरंजन का एक सशक्त माध्यम हुआ करतीं थीं, रात्रि को सोने से पहले अपनी दादी नानी से कहानी सुनना हर रात का बहुत महत्वपूर्ण काम होता था परंतु जैसे जैसे तकनीक का विकास होता गया वैसे वैसे क़िस्से कहानियों का अस्तित्व भी कम होता गया आज इस सबका स्थान मोबाइल फ़ोन और टी वी ने ले लिया है बच्चे से लेकर बड़े तक सभी लगभग ६ इंच के इस जादुई पिटारे में घुसे ही नज़र आते हैं जिससे न केवल उनकी आँखें बल्कि शरीर और मानसिक क्षमता भी बहुत अधिक प्रभावित हो रही है, बच्चों की क्रियाशीलता और रचनात्मक क्षमता ख़त्म होती जा रही है बच्चों के समुचित विकास के लिए उन्हें क़िस्से कहानियों से परिचित कराना तो अत्यंत आवश्यक है परन्तु सबसे जरूरी है कि उन्हें जो भी कहानियां सुनाई जाएं उनमें किसी भी अंधविश्वास, धार्मिक कुरीतियां, कपोल कल्पनाएं  और ढकोसले न हों क्योकि जो बच्चे आज सुनेगें वही आगे चलकर अपनाएंगे भी. अक्सर कहानियां सुनाते समय हम उन्हें धार्मिक, ऐतिहासिक पात्रों की कहानियां सुनाते हैं जिनमें कपोल कल्पनाएं और अनेकों अतार्किक घटनाएं होतीं हैं, बच्चे बहुत भोले और नादान होते हैं जिससे इन कहानियों के पात्र उनके मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं और वे इन्हें ही सच मानना प्रारम्भ कर देते हैं इसलिए आवश्यक है कि उन्हें तार्किक वास्तविक घटनाओं पर देशभक्ति, विज्ञान और तकनीक पर आधारित ऐसी कहानियां सुनाई जाएं जो उनके व्यक्तित्व का विकास तो करें ही साथ ही समाज और धर्म के प्रति उनके दृष्टिकोण को भी तार्किक रूप से विकास करे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
  • 2000+ फूड रेसिपीज
  • 6000+ कहानियां
  • 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
 
गृहशोभा इवेंट्स में इन्विटेशन

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें

गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
  • 2000+ फूड रेसिपीज
  • 6000+ कहानियां
  • 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
  • 24 प्रिंट मैगजीन
गृहशोभा इवेंट्स में इन्विटेशन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...