लॉक डाउन के चलते पिछले कई महीनों से स्कूल बंद है. कब खुलेंगे ये भी किसी को पता नहीं है, क्योंकि कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ने की दिशा में है, ऐसे में बच्चों की शारीरिक और मानसिक अवस्था को ठीक रखना माता-पिता के लिए चुनौती है. इतना ही नहीं बच्चे पार्क या किसी सार्वजनिक स्थानों पर भी नहीं जा पा रहे है, ताकि वे खुश रह सकें. ये समस्या वयस्कों को ही नहीं हर उम्र के बच्चों को बहुत हद तक प्रभावित किया है. हाल ही में एक सर्वेक्षण से पता चला है कि यूके, जर्मनी, फ़िनलैंड, स्पेन और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में 65 प्रतिशत बच्चों ने अकेलेपन और बोरिंग का सामना किया है. लॉकडाउन की वजह से विश्व में करीब 1.3 बिलियन हर उम्र के बच्चे प्रभावित हुए है.

इस बारें में गोदरेज सोल्यूशन्स, चाइल्ड साइकोलोजिस्ट चांदनी भगत कहती है कि लॉक डाउन में माता- पिता बच्चों के करीब रहकर उन्हें कई अच्छी चीजे सिखा सकते है, क्योंकि वे दिन-रात उनके साथ है, ऐसा करने से बाद में वे तनावमुक्त हो सकेंगे, क्योंकि स्कूल खुलने से पहले कामकाजी महिलाओं को ऑफिस जाना पड़ सकता है. उस समय कोई सार्वजानिक स्थल पर जाना या क्रेच में बच्चों को रखना मुश्किल होगा, क्योंकि हायजिन और सोशल डिस्टेंसिंग  का पालन वहां संभव नहीं, इसलिए अब अगर उन्हें सही तरह से निर्देश इस दौरान दे दिया जाय तो बच्चे आसानी से उसे फोलो कर घर पर रह सकेंगे. वैसे बच्चे लॉक डाउन की वजह से घर पर रहने की आदत कुछ हद तक सीख चुके है, ऐसे में कुछ दिशा निर्देश अगर माता-पिता सावधानी पूर्वक उनमें डालने की कोशिश करेंगे तो अच्छा होगा. 

1. अच्छा संवाद बनाये 

लॉक डाउन में बच्चे अपने दोस्तों के साथ मिलने-जुलने या खेलने में असमर्थ है. इस वजह से वे कई बार चिडचिडे और मूडी हो जा रहे है. किसी बात को न सुनने की जिद उनमें पनपती जा रही है, ऐसे में उन्हें सम्हालना पेरेंट्स के लिए टेढ़ी खीर हो रही है. माता-पिता को इस समय धीरज के साथ उन्हें समझाने और उनकी बातों को सुनने की जरुरत है. उन्हें स्थिति की गंभीरता के बारें में बताने की आवश्यकता है.  ये सब उनकी उम्र को देखते हुए करने की जरुरत है, ताकि वे सहजता से इसे समझ सके और आपको उनके मन की बात भी पता चले.

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2. तकनीक का करे उपयोग 

अधिकांश माता-पिता बच्चे को तकनीक का प्रयोग करने देने से डरते है, क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से वे उसके एडिक्ट बन जायेंगे. ये सही भी है कि ऐसा बच्चों के साथ होता है, क्योंकि उनमें जिज्ञासा अधिक होती है. इसके लिए पेरेंट्स को उनपर थोड़ी नजर रखने की आवश्यकता है. इसके अलावा उन्हें उनकी पसंदीदा शो देखने कि आज़ादी दें. ये 30 मिनट से एक घंटे तक ही ठीक रहता है. वीडियोज, लर्निंग एप्स, स्निपेट्स आदि छोटे-छोटे विजुअल कम्युनिकेशन के ज़रिये बच्चे किसी भी चीज को अच्छा सीख सकते है. साथ ही मजेदार डांसिंग वीडियोज देखकर उन्हें डांस करने के लिए प्रोत्साहित करें इससे उनकी शारीरिक एक्टिविटीज भी अच्छी रहेगी. 

3. करे तैयार भविष्य के लिए 

बच्चों को व्यक्तिगत सुरक्षा के महत्व को बताना आवश्यक होता है. 8 साल से कम उम्र के बच्चे अधिकतर फ़ोन चलाना जानते है. उन्हें इमरजेंसी कॉल करने की जानकारी नंबरों के साथ दें और सिखाये कि इमरजेंसी में वे इस तकनीक का उपयोग कैसे कर सकते है. इसके अलावा घर में होम कैमरा लगवा लें, जिससे आप कही भी रहकर अपने बच्चे की देखभाल कर सकते है. इसका प्रशिक्षण अभी से देना शुरू कर दें. स्वास्थ्य और सुरक्षा के महत्व के बारें में उन्हें बार-बार बताएं. इसके अलावा वीडियो डोर ओपन करना सिखाएं और उन्‍हें बतायें कि वो किसी भी अपरिचित के लिए दरवाजा न खोलें. खुद अपने वीडियो डोर फोन या होम कैमरा से कनेक्‍ट करने वाले अपने फोन एप्‍प के जरिए इसकी निगरानी करके देखें कि वे बतायी गयी बातों का ठीक से पालन कर पाते हैं या नहीं. 

4. घर से पढ़ाई करने के बारें में उन्हें दे जानकारी 

अभी भी लॉकडाउन ही चल रहा है, इसलिए सभी उम्र के बच्‍चों को चाहिए कि वो ऑनलाइन क्‍लासेज करें. हालांकि, इसकी वजह से बच्चों को लंबे समय तक कंप्‍यूटर के सामने बैठना पड़ता है, जो हमेशा के लिए खासकर 10 वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों के लिए यह बेहतर विकल्‍प नहीं है। इस नयी व्‍यवस्‍था के साथ बच्‍चों को सहज बनाने का एक तरीका यह है कि उन्‍हें प्रैक्टिकल एप्लिकेशन-आधारित लर्निंग गेम्‍स दें. शिक्षक विभिन्‍न विषयों के लिए वर्कबुक्‍स दे सकते हैं. कम-से-कम दो घंटे बच्‍चों के साथ एजुकेशनल गेम्‍स व क्विज खेलना अच्छा होता है. इससे उन्‍हें उनके साथ समय बिताने का अच्‍छा मौका भी मिल जाता है और इससे बच्‍चे स्‍क्रीन से दूर भी रह पाते हैं. बड़े बच्‍चे नये मानकों के अनुरूप ऑनलाइन परीक्षाओं व प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कर सकते है. उनके लिए कक्षाएं और लेक्‍चर्स ऑनलाइन ही दिया जाना सही है, ताकि वे स्टडी से दूर न रहे. इसके अलावा  12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्‍चों के लिए, सेल्‍फ-डिसिप्‍लीन की जरूरत अधिक होती है. उन्हें ऑनलाइन व ऑफलाइन की पढ़ाई का समय बांट लेना जरुरी है. होम कैमरा के जरिए उन पर नजर रखकर यह देखा भी जा सकता है कि वो कंप्‍यूटर पर कितना समय बीता रहे हैं और अगर वे अधिक समय बिताते है तो उन्हें बैठकर समझाना या थोड़ी डांट भी दिया जा सकता है. 

5. रूटीन बनाएं

 अधिकांश गतिविधियों पर ताला लग चुका है, ऐसे में बच्‍चों के सामने यह समस्‍या है कि वो किस पैटर्न को अपनायें और माता-पिता का उनपर हमेशा ख्याल रखना भी संभव नहीं होता, ऐसे में एक नियमित रूटीन बनाने से कुछ हद तक इसे फोलो किया जा सकता है, जिसमें बच्‍चों के साथ खेलना, पहेलियां बुझाना या साथ मिलकर होमवर्क करना, उन्‍हें नये कंसेप्‍ट्स सीखाना आदि होने की जरुरत है. 6 से 7  वर्ष की उम्र के बच्‍चों को गतिविधियों में व्‍यस्‍त रखने का सबसे शानदार तरीका यह है कि माता या पिता खाना पकाने के दौरान भी उन्‍हें छोटी-छोटी चीजें करने के लिए कहें. इससे बच्चे अपने आप को अकेला महसूस नहीं करेंगे. 

6. उन्‍हें दे प्रोत्‍साहन 

 घर के किसी काम करने के बाद उन्हें प्रोत्साहन दें, ये रिवार्ड्स पॉइंट्स के रूप में भी हो सकते हैं। जब कोई कार्य पूरा न हो पाया हो, तो उसके बदले में एक पॉइंट काट लें. यह बच्‍चों को यह बताने के लिए भी शानदार मौका है कि दैनिक कार्य किसी लिंग-विशेष के व्‍यक्ति के ही करने के लिए नहीं होते हैं, बल्कि इसका लड़का या लड़की, पुरुष या महिला होने से कोई लेन-देन नहीं होता. एक निश्चित पॉइंट हासिल कर लेने के बाद, आप उनके स्‍क्रीन टाइम को थोड़ा बढ़ा सकते हैं या उनके पसंद की कोई स्‍वादिष्‍ट चीज उन्‍हें दे सकते हैं.

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7. डिजिटल प्‍लेडेट्स 

अभी डिजिटल का जमाना है, ऐसे में बच्चे अपने दोस्तों के साथ फ़ोन पर भी बात कर लेते है. इंटरेक्टिव तकनीक के जरिए बच्‍चों को उसके दोस्‍तों के साथ प्‍ले डेट्स एरेंज किया जा सकता है. जैसे ऑनलाइन गेम्‍स,पहेलियां, छोटी बर्थडे पार्टी आदि. इससे उन्‍हें उनके दोस्‍तों के साथ जुड़े रहने में मदद मिल सकती है  और वे खुश भी रह सकते है. 

असल में लॉकडाउन में घर में लगातार रहना किसी के लिए भी आसान नहीं है। हमें पुराने नियमों को छोड़ नये नियमों, नये मानकों को अपनाना होगा. जहां माता-पिता को इस दौरान अपने बच्‍चों के लिए नई आदतें डालने की आवश्‍यकता है, वहीं पेरेंट्स के लिए यह भी समान रूप से महत्‍वपूर्ण है कि वो ऐसे कार्य करें जिससे इस अवधि का उपयोग बच्‍चों के सर्वांगीण विकास के लिए हो. 

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