जिस व्यक्ति से आप प्यार कर रहे हैं, वह आप के प्यार के काबिल नहीं है तो फिर क्या करें ‘है तुझे भी इजाजत कर ले तू भी मुहब्बत...’ यही गाना बज रहा था और मैं सोचने लगी की मुहब्बत करने के लिए किसी से इजाजत लेनी पड़ती है क्या? मुहब्बत के बारे में तो कहा जाता है कि यह वह आग है जो लगाए न लगे और बु झाए न बु झे. तो अगर यह आग किसी के मन में किसी के प्रति लग गई तो वह स्त्री या पुरुष क्या करे.
अब क्या ही फर्क पड़ता है कि वह शादीशुदा है या कुंआरी. अगर शादीशुदा जिंदगी में बहुत फीकापन है. बस जिंदगी को काटा जा रहा है. जिम्मेदारी के बोझ को अनचाहे ढोना ही जिंदगी नहीं कहलाती है.
अपने जीवनसाथी से वैचारिक मतभेद है या मन नहीं मिल रहा है और आप बच्चों और घरपरिवार की खातिर समाज में एकसाथ है. मन में कोई उमंग या तरंग नहीं है तो ऐसे में आप को कोई अच्छा लगता है जिस से आप अपना मन सा झा कर लेती हैं या वह आप से 2 प्रेम के शब्द बोल देता है? और उन शब्दों का जादू आप दिन भर महसूस करती हैं, गुनगुनाती हैं, आईना देख खुद को संवारती हैं तो इस में क्या गलत है? मेरे हिसाब से तो कुछ गलत नहीं है.
खुद की संतुष्टि जरूरी
आप अपने तनमन की संतुष्टि कर सकती हैं और इश्कमुहब्बत हर काल में हुआ था, हो रहा है और आगे भी होगा. माना कि शादीशुदा जिंदगी में किसी परपुरुष से प्यार नहीं होना चाहिए किंतु अगर शादीशुदा जिंदगी में आपस में प्यार नहीं है तो फिर अगर बाहर किसी से प्यार हो जाता है तो उस में गलत तो कुछ नहीं है.